Stubble Burning: किसान को पराली जलाने से रोकने का काम करेगा यह फॉर्मूला, दिल्ली की हवा साफ होने के साथ किसानों को होगा फायदा

Stubble Burning: हरियाणा-पंजाब में हर साल करीब 1.2 करोड़ टन पराली जलाई जाती है। इसके चलते हर बार ठंड की शुरुआत के साथ ही दिल्ली की हवा दूषित (Pollution in Delhi) हो जाती है। अब एक तरीका निकाला गया है, जिससे पराली को खाद में बदला जा सकता है। इसके लिए एक खास पाउडर बनाया गया है, जिसे पानी में मिलकर खेत में स्प्रे करना होता है
 
 

HR Breaking News, नई दिल्ली: भारत में दिल्ली जैसे शहरों के लिए सबसे बड़ी समस्या है प्रदूषण, जो अक्टूबर-नवंबर में और अधिक बढ़ जाता है। इसकी सबसे बड़ी वजह होती है पंजाब और हरियाणा में किसानों की तरफ से पराली का जलाया (Stubble Burning) जाना।

 

हरियाणा-पंजाब में करीब 1.2 करोड़ टन पराली जलने से उठने वाला धुआं हर बार ठंड की शुरुआत के साथ ही दिल्ली की हवा को दूषित (Pollution in Delhi) करता है। मामला कोर्ट-कचहरी तक पहुंच चुका है, लेकिन अभी भी पराली का जलना नहीं रुक रहा है।

 

पराली जलाने को गैर-कानूनी तक करार दिया गया है, लेकिन किसान पराली जलाते हैं और पॉलीटीशियन उनके खिलाफ कोई भी कदम उठाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। यहां सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर किसान पराली को जलाते ही क्यों हैं और इससे कैसे निपटा जाए।


आखिर किसान क्यों जलाते हैं पराली? (Why do farmers burn stubble?)


 

पंजाब-हरियाणा ही नहीं, देश के तमाम हिस्सों में किसान पराली जलाते हैं। पराली ही नहीं, बल्कि गन्ने के पत्ते, गेहूं की जड़ें या कई अन्य तरह की फसलों के बचे हुए हिस्सों को भी जलाया जाता है। दरअसल, एक फसल के बाद दूसरी फसल लगाने के लिए खेत को खाली करना होता है और इसका सबसे आसान तरीका होता है पराली को जला देना।

अगर पराली को जमा भी कर लें तो उसका कुछ खास इस्तेमाल नहीं हो सकता है। उसकी खाद बनाने की सोचें तो लंबा इंतजार करना होगा और खाद बनाने के लिए जगह और मेहनत भी लगेगी। साथ ही पराली को इकट्ठा करने में भी खर्च होगा। वहीं दो फसलों के बीच कम वक्त मिलने के चलते भी बहुत से किसान यह सब कवायद करने के बजाय पराली को जला देते हैं।

ऐसे निपटा जा सकता है पराली जलाने से (This can be dealt with by burning stubble)


 

कुछ साल पहले इंडियन एग्रिकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट (IARI) ने 8 तरह के फंगीसाइट का इस्तेमाल करते हुए एक बायो डीकंपोजर बनाया है, जिसे पराली पर स्प्रे करने से वह पराली कुछ दिनों में खाद में तब्दील हो जाती है। इससे पराली जलना रुक सकता था और जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती। लेकिन इसकी ओरिजनल प्रक्रिया में स्प्रे से पहले डीकंपोजर को बेसन के साथ मिलाकर उसे फर्मेंट करना होता है और दो फसलों के बीच मिलने वाली थोड़े से समय में यह सब कर पाना किसानों के लिए आसान नहीं।

अब नहीं जलानी पड़ेगी पराली ( Now you will not have to burn stubble)


 

आईएआरआई और भारत की सबसे बड़ी पेस्टिसाइड कंपनी यूपीएल ने एक ज्वाइंट वेंचर किया है, जिसके चलते अब पराली जलाया जाना रुक सकता है। यूपीएल ने इस डीकंपोजर को पाउडर की तरह बनाने का तरीका इजात किया है, जिससे इसका ट्रांसपोर्टेशन बहुत ही आसान हो गया है। इसे सीधे पानी में मिलना होता है और पराली पर स्प्रे कर देना होता है।

यूपीएल ने इसे स्प्रे करने के लिए खास मशीनें भी बनाई हैं, जिनमें दो 10-10 फुट के हैंडल हैं, जिनमें हर एक फुट पर एक नोजल है, जिससे स्प्रे होता है। इसमें कुल 20 नोजल हैं। इससे एक व्यक्ति हर रोज कई एकड़ खेत में स्प्रे कर सकता है। 2021 में ऐसी करीब 700 मशीनें लगाई गई थीं, इस साल 3000 तक मशीनें काम पर लगाई जाने की उम्मीद है।

मुफ्त सेवा दे रही कंपनी, तो पैसे कैसे कमाएगी? (If a company giving free service, then how will it earn money?)


 

अब यह आसानी से मुमकिन हो सकता है, क्योंकि यूपीएल की तरफ से मुफ्त में सेवा दी जा रही है। कंपनी ने करीब 50 करोड़ रुपये पहले सीजन में खर्च किए हैं। अब सवाल ये उठता है कि कंपनी की कमाई कैसे होगी? दरअसल, कंपनी को जलवायु परिवर्तन पर चल रहीं क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस एग्रिमेंट जैसी स्कीमों से कार्बन क्रेडिट मिलते हैं।

इन स्कीमों के तहत एक तय सीमा से अधिक प्रदूषण करने वाली कंपनियों को उन कंपनियों से कार्बन क्रेडिट खरीदने होते हैं, जो कार्बन प्रदूषण को कम करने का काम कर रही हैं। हालांकि, इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि इससे कंपनी की कमाई होगी ही और ये भी नहीं कहा जा सकता कि कब से कमाई होगी। 2021 में स्प्रे के जरिए यूपीएल ने कार्बन डाई ऑक्साइड 1.04 मिलियन टन, राख 1.41 लाख टन, कार्बन मोनोऑक्साइड 43,697 टन, पर्टिकुलेट मैटर 2135 टन और सल्फर डाईऑक्साइड 1423 टन की कटौती देखने को मिली है।