नरमा कपास में हरा तेला व उखेड़ा रोग के प्रति सचेत रहें किसान : कुलपति प्रोफेसर बी.आर. काम्बोज
एचआर ब्रेकिंग न्यूज। हिसार। मानसून की बारिश के बाद नरमा कपास की फसल में हरा तेला, पैराविल्ट या उखेड़ा रोग व जड़ गलन रोग की समस्या देखने को मिल रही है। ऐसे में किसानों को घबराने की जरूरत नहीं है बल्कि उन्हें कृषि वैज्ञानिकों से सलाह के उपरांत फसल में फैली बीमारी के समाधान की आवश्यकता है। ये सलाह चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बी.आर. काम्बोज ने प्रदेश के किसानों को दी है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक लगातार कपास उत्पादित क्षेत्रों में दौरा कर फसलों का जायजा ले रहे हैं और फसल में आने वाली समस्याओं की निगरानी करते हुए किसानों की समस्याओं का समाधान कर रहे हैं। इन दिनों कपास की फसल में हरा तेला का प्रकोप दिख रहा है जिसमें पौधों की पतियां किनारों से पीली होकर नीचे की तरफ मुड़ने लगती हैं और बाद में पत्तियों पर जंग लगने जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
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इसकी रोकथाम के लिए किसानों को 40 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड(कांफीडोर) 200 एस.एल. या 40 ग्राम थायामिथॉक्साम(एकतारा) 25 डब्लू.जी. को 150-175 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ में छिडक़ाव करें। इसी प्रकार जड़ गलन रोग खेत में कहीं-कहीं दिखाई देता है और इसमें शुरूआती दौर में पौधे की ऊपरी पत्तियां मुरझा जाती हैं और 24 घंटे के अंदर ही पौधा पूर्ण रूप से मुरझा जाता है। रोग ग्रस्त पौधों की जड़ें गली हुई लगती हैं और छाल उतरने लगती है। ऐसे में प्रभावित पौधे के साथ स्वस्थ पौधे को 0.2. प्रतिशत बाविस्टिन के घोल से उपचारित करें। साथ ही 100 से 200 मिलीलीटर घोल प्रति पौधा जड़ों में डालें। कुलपति ने बताया कि पैराविल्ट, सूखा रोग, उखेड़ा रोग का प्रभाव सबसे ज्यादा रेतीले इलाकों में देखने को मिल रहा है जहां लंबे समय तक सूखा रहने के पश्चात सिंचाई की जाती है या फिर एक साथ भारी बारिश हो जाती है। इसमें पौधे अचानक मुरझा जाते हैं और तेजी से सूखने लगते हैं लेकिन पौधों की जड़ें सामान्य रहती हैं। इसलिए इस समस्या से निजात पाने के लिए किसान अपने खेत की लगातार निगरानी करते रहें और समस्या होने पर 48 घंटों के अंदर कोबाल्ट क्लोराइड 2 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ छिडक़ाव करें।