Chanakya Niti : ऐसी लड़कियों से रहना चाहिए बचकर, भूल कर भी न करें शादी 

चाणक्य ने लड़कियों के चरित्र के बारे में बताते हुए लड़कों को ये बताया है के कभी भी इस तरह की लड़कियों से शादी नहीं करनी चाहिए और जितना हो सके इनसे बचकर रहना चाहिए क्योंकि ये लड़कियां आपको बर्बाद कर देंगी और कहीं का नहीं छोड़ेगी
 

HR Breaking News, New Delhi : विवाह के संदर्भ में, चाणक्य ने कुल के भेदभाव की बात नहीं मानी है। उनका कहना है कि नीच कुल में उत्पन्न कन्या भी यदि अच्छे गुणों से युक्त है तो उससे विवाह करने में कोई हानि नहीं। विस्तार से पढ़ें 

वरयेत् कुलजां प्राज्ञो विरूपामपि कन्यकाम् ।
रूपवतीं न नीचस्य विवाहः सदृशे कुले ।।


आचार्य चाणक्य ने प्रथम अध्याय के चौदहवें श्लोक में लिखा है कि बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न हुई कुरूप अर्थात् सौंदर्यहीन कन्या से भी विवाह कर ले, परन्तु नीच कुल में उत्पन्न हुई सुंदर कन्या से विवाह न करे । वैसे विवाह अपने समान कुल में ही करना चाहिए।

आचार्य चाणक्य ने यह बहुत सुंदर बात कही है। शादी-विवाह के लिए सुंदर कन्या देखी जाती है। सुंदरता के कारण लोग न कन्या के गुणों को देखते हैं, न उसके कुल को। ऐसी कन्या से विवाह करना सदा ही दुखदायी होता है, क्योंकि नीच कुल की कन्या के संस्कार भी नीच ही होंगे। उसके सोचने, बातचीत करने या उठने-बैठने का स्तर भी निम्न होगा, जबकि उच्च और श्रेष्ठ कुल की कन्या का आचरण अपने कुल के अनुसार होगा, भले ही वह कन्या कुरूप व सौंदर्यहीन हो।

वह जो भी कार्य करेगी, उससे अपने कुल का मान ही बढ़ेगा और नीच कुल की कन्या तो अपने व्यवहार से परिवार की प्रतिष्ठा ही बिगाड़ेगी। वैसे भी विवाह सदा अपने समान कुल में ही करना उचित होता है, अपने से नीच कुल में नहीं। यहां ‘ कुल ‘ से तात्पर्य धन – संपदा से नहीं, परिवार के चरित्र से है।

विषादप्यमृतं ग्राह्यममेधयादपि काञ्चनम्।
नीचादप्युत्तमा विद्या स्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि।।

वहीं सोलहवें श्लोक में लिखा है कि विष में भी यदि अमृत हो तो उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। अपवित्र और अशुद्ध वस्तुओं में भी यदि सोना अथवा मूल्यवान वस्तु पड़ी हो तो वह भी उठा लेने के योग्य होती है। यदि नीच मनुष्य के पास कोई अच्छी विद्या, कला अथवा गुण है तो उसे सीखने में कोई हानि नहीं। इसी प्रकार दुष्ट कुल में उत्पन्न अच्छे गुणों से युक्त स्त्री रूपी रत्न को ग्रहण कर लेना चाहिए।

इस श्लोक में आचार्य गुण ग्रहण करने की बात कर रहे हैं। यदि किसी नीच व्यक्ति के पास कोई उत्तम गुण अथवा विद्या है तो वह विद्या उससे सीख लेनी चाहिए अर्थात व्यक्ति को सदैव इस बात का प्रयत्न करना चाहिए कि जहां से उसे किसी अच्छी वस्तु की प्राप्ति हो, अच्छे गुणों और कला को सीखने का अवसर प्राप्त हो तो उसे हाथ से जाने नहीं देना चाहिए। विष में अमृत और गंदगी में सोने से तात्पर्य नीच के पास गुण से है।