Allahabad High Court : इस स्थिति में सरकारी कर्मचारियों को नहीं मिलेगी सैलरी, जानिये इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा निर्णय

Allahabad High Court Verdict : किसी भी कर्मचारी के लिए उसकी सैलरी बहुत मायने रखती है। सैलरी न मिले तो कर्मचारी के साथ साथ उसके परिवार को भी समस्याएं हो जाती हैं। परंतु, ऐसा हो सकता है कि कर्मचारी को सैलरी न मिले। इसपर उत्तर प्रदेश की इलाहबाद हाईकोर्ट का भी बड़ा फैसला आया है। आइए जानते हैं पूरे फैसले के बारे में-

 

HR Breaking News (Allahabad High Court Decision) कानून की दृष्टि सभी के लिए एक समान है। चाहे वह आम नागरिक हो या फिर कोई कर्मचारी। कर्मचारियों के लिए भी कई तरह के रूल बने हुए हैं।

 

 

बहुत से नियमों का कर्मचारियों को भी नहीं पता होगा। एक विशेष स्थिति में ऐसा भी हो सकता है कि कर्मचारियों को सैलरी भी ना मिले, इसको लेकर हाईकोर्ट का भी एक फैसला आया है।

 

 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया फैसला


इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की ओर से एक मामले में कर्मचारी को एक निश्चित समय अवधि के दौरान के वेतन के मामले में राहत देने से इनकार कर दिया है। इसपर कोर्ट की ओर से स्थिति को स्पष्ट भी कर दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि कई मामलों में वेतन नहीं का सिद्धांत लागू होता है।

विद्युत प्राधिकरण से किया था संपर्क


याची की ओर से एक समय अवधि के दौरान मजदूरी न दिए जाने के मामले में विद्युत प्राधिकरण से संपर्क किया थी। वहां से जवाब आया कि कोई काम नहीं किया तो कोई वेतन नहीं मिलेगा। यहां नो वर्क, नो सैलरी सिद्धांत (High court decision) के आधार पर अनुरोध को खारिज कर दिया गया।

इसके बाद याची ने कोर्ट (court rule) में याचिका डाली। इसपर कोर्ट की ओर से बोला गया कि मात्र दुर्लभ मामलों में ही यह सैलरी मिल सकती है। इसमें अगर नियोक्ता की ओर से कर्मचारी के कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा डाली गई गई है और काम नहीं हो पाया है तो तब काम नहीं तो वेतन नहीं के सिद्धांत वेतन मिल सकता है।  

जेल में बंद होने पर नहीं मिलेगा वेतन


हाईकोर्ट (High Court Decision) की ओर से कहा गया है कि रणछोड़जी चतुरजी ठाकोर बनाम अधीक्षक अभियंता गुजरात विद्युत बोर्ड हिम्मतनगर (गुजरात) और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से माना गया है कि जब कोई एंप्लोई किसी कथित अपराध की खातिर जेल में जाता है तो कारावस की अवधि का पैसा देने के लिए नियोक्ता को बाध्य नहीं किया जा सकता। अगर मामला ऐसा है, जिसमें कोई अनुशासनात्म जांच हुई है और वह अवैध भी न हो तो ऐसे में तो बिल्कुल वेतन देने के लिए बाध्य नहीं है। 

यह है था मामला


न्यायमूर्ति अजय भनोट की ओर से शिवाकर सिंह की याचिका को खारिज किया गया है। दरअसल, याचिका (high court decision) लगाने वाले पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 13(1)(बी) के साथ धारा 13(1) के तहत एफआईआर दर्ज है। यह केस बिजली ग्राहकों से कनेक्शन के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी।

जेल में बंद था आरोपी, वेतन देना होगा अनुचित
 

आरोपी एफआईआर के बाद 23 जनवरी 2015 से 18 दिसंबर 2018 तक जेल में बंद था। याची ने जेल में रहने के दौरान का वेतन (no work no salary) मांगा, लेकिन कोर्ट की ओर से काम नहीं तो वेतन नहीं मामले का सिद्धांत लागू रहने की बात कही।

कोर्ट ने माना की वेतन नहीं के सिद्धांत से इतर अगर वेतन दे दिया जाता है तो इससे याचिका कर्ता को अनुचित लाभ मिलेगा और राज्य के खजाने को भी काफी नुकसान होगा। याचिका लगाने वाले को जेल में बंद रहने के दौरान किसी प्रकार के वेतन का अधिकार नहीं है।