Allahabad High Court : किराएदार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दिया तगड़ा झटका, मकान मालिकों के हक में अहम फैसला

Allahabad Court : मकान मालिक और किराएदार का रिश्ता काफी खट्टा मीठा होता है। कभी-कभी किराएदार और मकान मालिक में नौंक-झौंक देखने को मिलती है तो कई बार किराएदार और मकान मालिक में परिवार वालों के जैसे संबंध बन जाते हैं। परंतु, कई बार ऐसा भी हो जाता है कि किराएदार और मकान मालिक का विवाद कोर्ट तक पहुंच जाता है। ऐसे ही एक विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला आया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से किराएदार को तगड़ा झटका दिया गया है। 

 

HR Breaking News (court decision) इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर से बड़ा फैसला किया गया है। अक्सर देखने को मिलता है कि संपत्ति के मामले में कोर्ट के डिसीजन ऐतिहासिक साबित होते हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट का मकान मालिक के पक्ष में किया गया यह फैसला भी ऐतिहासिक है। 

 

 

किराएदारी कानून के मामले महत्वपूर्ण है फैसला

 
इलाहाबाद हाईकोर्ट (allahabad high court) का यह फैसला मकान मालिक की संपत्ति को लेकर दिया गया है। किराएदारी कानून में यह फैसला बहुत महत्व रखेगा। हाईकोर्ट के फैसले (allahabad high court decision) में स्पष्ट तौर पर मकान मालिक की संपत्ति के बारे में विवरण किया गया है। इससे किराएदार को भी अपने अधिकार का दायरा पता लग जाएगा। 

संपत्ति के प्रयोग पर दिया फैसला 


इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर से किराएदारी कानून (tenant rights) के मामले में बड़ा फैसला दिया गया है। किराएदारों को लेकर जो फैसला आया है वह मकान मालिकों (landlord rights) के पक्ष में है। हाई कोर्ट की ओर से आदेश में साफ कर दिया गया है कि मकान मालिक अपनी संपत्ति को किस तरह से प्रयोग कर सकता है। 

किराएदार को करनी होगी संपत्ति खाली 


इलाहाबाद हाई कोर्ट (allahabad high court) ने फैसले में स्पष्ट किया है कि संपत्ति में मकान मालिक मनचाहा प्रयोग कर सकता है। किराए पर अगर किसी को प्रॉपर्टी (property rights) दी है तो मालिक जरूरत पड़ने पर उसे खाली करा सकता है। मकान मालिक के कहने पर किराएदार को यह प्रॉपर्टी खाली करनी होगी।

इलाहाबाद हाई कोर्ट में मेरठ के जुल्फिकर अहमद की ओर से याचिका लगाई गई थी, जिसको इलाहाबाद कोर्ट के जस्टिस अजीत कुमार ने आदेश देते हुए खारिज कर दिया है। 

जानिए क्या है पूरा मामला 


दरअसल मेरठ निवासी सीनियर सिटीजन जहांगीर आलम ने दिल्ली रोड पर अपने तीन में से दो प्रॉपर्टी(property uses)  को जुल्फिकार अहमद को किराए पर दिया था। यह प्रॉपर्टी दुकान के रूप में थी।

जहांगीर खुद किराए की दुकान में मोटरसाइकिल की मरम्मत का काम करता था। दुकान मालिक ने किराएदार जुल्फिकार को दुकान खाली करने के लिए जब नोटिस दिया तो जुल्फिकार ने दुकान खाली करने से मना कर दिया। 

मामला कोर्ट में पहुंच गया और किराएदार (allahabad high court) का दुकान खाली करने का कोर्ट से आदेश आ गया। इस आदेश के खिलाफ किराएदार की अपील को भी खारिज कर दिया गया है। किराएदार हाई कोर्ट भी पहुंच गया था, जहां से भी किराएदार को झटका ही लगा है। 

किराएदार ने कोर्ट में दी यह दलील   


दरअसल जुल्फिकार के वकील की ओर से कोर्ट (court verdict) में दलील दी गई थी कि मकान या दुकान का मालिक अपनी तीसरे प्रॉपर्टी में अपने व्यवसाय को चला सकता है। दलील दी गई थी कि किराएदारी कानून के अनुसार किराएदार की समस्याएं और हित सबसे पहले आता है।

कोर्ट में कहा गया कि व्यवसाय के लिए दुकान मालिक किराएदार का सुझाव मानने के लिए बाध्य है। जबकि संपत्ति के मालिक (property owner) ने इस याचिका का विरोध करते हुए उनके वकील रजत ऐरन और राज कुमार सिंह ने कहा कि संपत्ति मलिक ने अपनी आवश्यकता को साक्ष्य सहित सिद्ध किया है। 

मकान मालिक के वकीलों की दलील पर कोर्ट ने जताई सहमति 


मकान मालिक के वकीलों की दलील पर कोर्ट की ओर से सहमति जताई गई। वकीलों ने कहा कि मकान मालिक (allahabad high court verdict) को व्यवसाय के लिए तीनों दुकानों की आवश्यकता है। संपत्ति मालिक अपनी संपत्ति और आवश्यकताओं को लेकर निर्णय खुद ले सकता है और उनका यह अधिकार है।

एक किराएदार को संपत्ति मलिक के निर्णय में किसी भी प्रकार से दखल देने का अधिकार नहीं बनता है। दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि अपनी संपत्ति होने के बावजूद मकान मालिक किराए की दुकान पर अपना व्यवसाय चलाने के लिए विवश नहीं हो सकता।

कोर्ट ने कहा कि मकान मालिक खुद की संपत्ति के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार रखता है। मकान मालिक का निर्णय किराएदार को मानना पड़ेगा। साथ में हाईकोर्ट ने जुल्फिकार की याचिका को भी खारिज कर दिया।