Daughter's Rights in Ancestral Property : क्या पैतृक संपत्ति में बेटियों का हक होता है या नही? जान लें क्या कहता है देश का कानून
HR Breaking News, Digital Desk : वर्तमान समय में हमारी सामाजिक व्यवस्था में काफी बदलाव आ गया है. लेकिन अभी भी सोच पूरी तरह से बदल नहीं पाई है. लोगों की आज भी सोच हैं कि पिता की जायदाद या फिर पैतर्क संपत्ति पर पहला हक बेटों का होता है. जबकि भारत में बेटियों के हक में कई कानून बने हैं. उसके बाद भी समाज में कई पुरानी परंपरा आज भी मौजूद है. आज भी सामाजिक स्तर पर पिता की प्रॉपर्टी पर पहला हक (Right on father's property) पुत्र को दिया जाता है.
बेटी की शादी होने के बाद वह अपने ससुराल चली जाती है. तो कहा जाता है कि उसका जायदाद से हिस्सा खत्म हो गया. ऐसे में सवाल है कि क्या पैतर्क प्रॉपर्टी पर शादीशुदा बेटी अपना मालिकाना हक जता सकती है? सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बेटियों के पैतृक संपत्ति पर हक को लेकर एक टिप्पणी करते हुए कहा कि बेटे तो सिर्फ शादी तक बेटे रहते हैं, लेकिन बेटी हमेशा बेटी ही रहती है। विवाह के बाद बेटों की नीयत और व्यवहार में बदलाव आ जाता है, लेकिन एक बेटी अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक माता-पिता के लिए प्यारी बेटी ही होती है। विवाह के बाद माता-पिता के लिए बेटियों का प्यार और बढ़ जाता है। इसलिए बेटी पैतृक संपत्ति में बराबर की हकदार बनी रहती है।
बता दें कि 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून में संशोधन (Amendment to Hindu Succession Law in 2005) हुआ था। जिसमें पहली बार बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में अधिकार दिया गया था, लेकिन ये अधिकार उन्हीं को मिलता था, जिनके पिता की मृत्यु 9 सितंबर 2005 के बाद हुई हो। सुप्रीम कोर्ट ने इसमें तारीख और वर्ष वाली शर्त खत्म कर दी है। तो अब महिलाओं के पैतृक संपत्ति में क्या अधिकार हैं ये जानना बेहद जरूरी है।
अगर पैतृक संपत्ति हो तो...
हिंदू लॉ (hindu law) के मुताबिक संपत्ति को दो श्रेणियों में बांटा गया है- पैतृक और स्वअर्जित संपत्ति (ancestral and self acquired property)। पैतृक संपत्ति में चार पीढ़ी पहले तक पुरुषों की वैसी अर्जित संपत्तियां आती हैं जिनका कभी बंटवारा नहीं हुआ हो। ऐसी संपत्तियों पर संतानों का, वह चाहे बेटा हो या बेटी, जन्मसिद्ध अधिकार होता है। साल 2005 से पहले ऐसी संपत्तियों पर सिर्फ बेटों को अधिकार होता था, लेकिन संशोधन के बाद पिता ऐसी संपत्तियों के बंटवारे में बेटी को हिस्सा देने से इनकार नहीं कर सकता। कानूनी तौर पर बेटी के जन्म लेते ही, उसका पैतृक संपत्ति पर अधिकार हो जाता है।
पिता द्वारा स्वअर्जित की गई संपत्ति
अगर बात पिता की स्वअर्जित संपत्ति (father's self-acquired property) की हो तो इस मामले में बेटी का पक्ष कमजोर होता है। अगर पिता ने अपने पैसे से जमीन खरीदी है, मकान बनवाया है या खरीदा है तो वह जिसे चाहे यह संपत्ति दे सकता है। स्वअर्जित संपत्ति को अपनी मर्जी से किसी को भी देना पिता का कानूनी अधिकार है। यानी, अगर पिता ने बेटी को खुद की संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर दिया तो बेटी कुछ नहीं कर सकती है।
वसीयत लिखे बिना पिता की मौत हो जाने पर...
मान लों अगर वसीयत लिखने से पहले पिता की मौत (Father dies before writing his will) हो जाती है तो सभी कानूनी उत्तराधिकारियों को उनकी संपत्ति पर बराबर का अधिकार होगा। हिंदू उत्तराधिकार कानून में पुरुष उत्तराधिकारियों को चार श्रेणियों में बांटा है और पिता की संपत्ति पर पहला हक पहली श्रेणी के उत्तराधिकारियों का होता है। जिनमें बेटियां भी शामिल हैं। इसका मतलब है कि बेटी को अपने पिता की संपत्ति पर पूरा हक है।
बेटी के शादीशुदा होने पर...
साल 2005 से पहले हिंदू उत्तराधिकार कानून में बेटियां सिर्फ हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की सदस्य मानी जाती थीं, यानी समान उत्तराधिकारी नहीं थीं। बेटी की शादी हो जाने पर उसे हिंदू अविभाजित परिवार का भी हिस्सा नहीं माना जाता था। 2005 के संशोधन के बाद बेटी को समान उत्तराधिकारी माना गया है। अब बेटी के विवाह से पिता की संपत्ति पर उसके अधिकार में कोई बदलाव नहीं आता है। यानी, विवाह के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार रहता है।
यदि 2005 से पहले बेटी पैदा हुई हो, लेकिन पिता की मृत्यु हो गई हो तो...
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हिंदू उत्तराधिकार कानून (hindu succession law) में हुआ संशोधन 9 सितंबर, 2005 से लागू हुआ। कानून कहता है कि कोई फर्क नहीं पड़ता है कि बेटी का जन्म इस तारीख से पहले हुआ है या बाद में, उसका पिता की संपत्ति में अपने भाई के बराबर ही हिस्सा होगा।