High Court : बहू की चिकचिक नहीं सुनेंगे अब सास ससुर, हाईकोर्ट ने दिया ये अधिकार
HR Breaking News - (High court decision) कोर्ट में कई घरेलू विवाद के केस सामने आते हैं। सास-ससूर और बहु में अनबन को लेकर विवाद दिखाई पड़ते हैं। कई सास-ससुर अपने घर की बहू की रोज-रोज की झिकझिक से परेशान होते हैं, लेकिन कोर्ट के इस अधिकार को देने के बाद बहू की यह झिकझिक अब नहीं चलने वाली है। बुजुर्ग मां-बाप को शांतिपूर्ण जिंदगी जीने के लिए कोर्ट ने सास-ससुर(Saas Sasur ke rights)को यह अधिकार दिया है।
जानिए क्या है पूरा मामला
हाल ही में एक ऐसा केस कोर्ट (High Court's Judgement) के सामने आया था, जिसमे सास-ससूर अपने बेटे-बहू के रोजाना के झगड़े से तंग आ चुके थें। बेटा भी बहू (husband wife dispute) की रोज की चिकचिक से परेशान आ चुका था और इस वजह से कुछ समय के बाद वह छोड़कर किराए के मकान में शिफ्ट हो गया, लेकिन बेटे के साथ न जाकर बहू अपने बुजुर्ग सास-ससुर के साथ ही रही, क्योंकि वह घर छोड़कर जाना नहीं चाहती थी और रोज की झिकझिक के चलते सास-ससूर बहू को निकालना चाहते थें। इसके लिए ससुर ने भी कोर्ट में याचिका दायर की थी।
निचली अदालत ने किसके हक में सुनाया फैसला
इसके चलते ससुर (Saas-sasur ke adhikar) ने 2016 में निचली अदालत के सामने इसी आधार पर कब्जे के लिए एक मुकदमा दायर किया था और इसमे उन्होंने बताया कि उनकी संपत्ति पर वो खुद पूर्ण मालिक हैं और उनका बेटा भी अपनी वाइफ की रोज की झिकझिक के चलते किसी अन्य स्थान पर रहता है और वह अपनी बहू को साथ नहीं रखना चाहता।
इसके जवाब में बहू (woman's rights of property) यानी याचिकाकर्ता का कहना है कि ये संपत्ति परिवार की संयुक्त पूंजी के साथ ही पैतृक संपत्ति की बिक्री से हुई आय से खरीदी गई थी, इस वजह से उस घर में रहने का उसका पूर्ण अधिकार है।
हालांकि, दोनो पक्षों के तर्क को जानने के बाद निचली अदालत ने प्रतिवादी (ससूर)के पक्ष में फैसला सुनाया था और कब्जे का आदेश पारित किया था निचली अदालत (trial court) का कहना है कि याचिकाकर्ता यानी बहू को वहां रहने का कोई अधिकार नहीं है।
दिल्ली हाई कोर्ट में दी फैसले को चुनौती
न्यायमूर्ति निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रहे थे, इसके लिए बहू याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाई कोर्ट (delhi high court news) में मुकदमा दायर किया। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि बुजुर्ग सास-ससूर बहू की रोजाना की झिकझिक से परेशान न होकर शांतिपूर्ण जीवन जीने के हकदार हैं।
ऐसे में अगर रोजाना बेटे-बहू की झिकझिक होती है तो किसी बहू (Bahu ke adhikar) को संयुक्त घर में रहने का अधिकार नहीं है और ससुराल के बुजुर्ग लोग उसे घर से बेदखल कर सकते हैं।
वैकल्पिक आवास को लेकर निर्णय
कोर्ट ने यह साफ कहा कि एक संयुक्त घर के मामले में संबंधित तथ्यों से जुड़े विवादों को लेकर संपत्ति के मालिक अपनी बहू को बेदखल कर सकते हैं। उनका कहना है कि इस मामले में अगर बहू (Daughter-in-law evicted from property) झगड़ालू प्रवृत्ति नहीं छोड़ती है तो उचित रहेगा कि बहू को उसकी शादी जारी रहने तक कोई अलग आवास की सुविधा दी जाए। उनके अनुसार इस मौजूदा मामले में दोनों ससुराल वाले वरिष्ठ नागरिक हैं और वे शांतिपूर्ण जीवन जीने के हकदार है। अगर वो रोज-रोज की बेटे-बहू की चिकचिक से परेशान है तो वो ऐसा कर सकते हैं।
जानिए कानून में तनावपूर्ण संबंध के लिए प्रावधान
पति-पत्नी में रोजाना पारिवारिक कलह देखे जा रहे थें ऐसे में पति द्वारा भी पत्नी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी। हालांकि उसने संबंधित संपत्ति पर किसी भी तरह का दावा नहीं जताया है।पति और पत्नी के रिश्ते में तनाव बढ़ रहा था। ऐसे में न्यायाधीश (delhi high court decision) ने अपने फैसले में कहा, कि दोनों पक्षों यानी पति-पत्नी के बीच तनावपूर्ण संबंध हैं,
तो ऐसे में अलग होने तक सास-ससुर के लिए याचिकाकर्ता यानी बहू के साथ रहना ज्यादा सही हो सकता है। इसलिए यह सही होगी की बहू को घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम की धारा (Sections of Protection of Women Act) 19(1)(एएफ) के तहत रहने के लिए कोई अलग जगह मुहैया कराई जाए।
हाई कोर्ट का फैसला
उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने इस मामले को देखते हुए कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा-19 के तहत आवास का अधिकार ज्वाइंट फैमिली में रहने का एक स्वचालित अधिकार नहीं है, खासकर ऐसे मामलों में जहां एक बहू अपने बुजुर्ग सास-ससुर (Parents-in-law) के खिलाफ खड़ी है। अदालत ने इस मामले को देखते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के सास-ससुर लगभग 74 और 69 साल के बुजुर्ग हैं और उन्हें अपने जीवन के अंतिम चरण मे बेटे-बहू के बीच के झगडों से दुर शांति से जीने का हक रखते हैं।
इसके चलते उच्च न्यायालय (High Court's decision) ने याचिकाकर्ता की अपील को खारिज कर दिया और प्रतिवादी ससुर के हलफनामे को स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि बेटे-बहू के वैवाहिक संबंध जारी रहने तक बहू को वैकल्पि निवास प्रदान किया जाएगा।