Land Acquisition Act : भूमि अधिग्रहण को कोर्ट में चुनौती नहीं दे सकते ये जमीन मालिक, सुप्रीम कोर्ट का आया बड़ा फैसला

Land Acquisition Act : हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में ये साफ कर दिया है कि भूमि अधिग्रहण को कोर्ट में चुनौती नहीं दे सकते ये जमीन मालिक... कोर्ट की ओर से आए इस फैसले को विस्तार से जानने के लिए खबर को पूरा पढ़े। 
 

HR Breaking News, Digital Desk- भूमि अधिग्रहण कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अहम फैसला सुनाते हुए कहा, जो जमीन मालिक मुआवजा लेने से इनकार करते हैं, वे भूमि अधिग्रहण रद्द करने का दबाव नहीं डाल सकते। जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुआई वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला भूमि अधिग्रहण कानून, 2013 की धारा 24 की व्याख्या करते हुए दिया। पीठ ने कहा, उसकी मंशा यही है कि असली जमीन मालिक को लाभ मिल सके। अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू होने के बाद बीच में कई मध्यस्थ आ जाते हैं, जो जमीन की ज्यादा कीमत सरकार से वसूलने के लिए प्रक्रिया में अड़ंगा लगाते हैं।

पीठ ने कहा कि मुआवजे की रकम कोर्ट में जमा न करने से अधिग्रहण समाप्त नहीं मान सकते। सिर्फ उन्हीं मामलों में पुराने कानून के तहत शुरू अधिग्रहण प्रक्रिया रद्द होगी, जिनमें वर्ष 2013 के अधिनियम के प्रभावी होने वाले दिन (एक जनवरी 2014) से पांच वर्ष या इससे अधिक तक सरकार ने न तो मुआवजा दिया हो और न ही जमीन पर कब्जा लिया हो। पीठ ने भूमि अधिग्रहण कानून की व्याख्या को लेकर 2014 में पुणे नगर निगम और 2018 में इंदौर विकास प्राधिकरण मामलों में आए फैसलों को निरस्त कर दिया।

 



पीठ में जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत शरण, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस रवींद्र भट्ट भी हैं। कोर्ट ने कहा, अगर जमीन मालिक जानबूझ कर मुआवजा नहीं ले रहा तो सरकार की गलती नहीं कह सकते। अगर सरकार मुआवजा दे चुकी है, लेकिन किसी मुकदमे के चलते कब्जा नहीं ले पाई, तो इसे भी सरकार की गलती नहीं मान सकते। सरकार की गलती तभी मानी जाएगी जब उसकी लापरवाही हो। जैसे अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू करने के बावजूद न मुआवजा दिया हो और न कब्जा लिया हो।

जरूरी नहीं कि मुआवजा कोर्ट में जमा हो-

कोर्ट ने माना कि अगर अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू होने के बाद सरकार ने मुआवजे का एलान कर दिया और उसे सरकारी कोष में जमा करा दिया है, तो यह जरूरी नहीं कि कोर्ट में जमा कराया जाए। एक पुराने फैसले के तहत इस बात का प्रावधान था कि अगर किसान मुआवजा नहीं ले रहा है तो सरकार उसे कोर्ट में जमा कराए, नहीं तो अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी नहीं मानी जाएगी। अब पीठ ने कहा, अगर सरकार ने मुआवजे के लिए मंजूर राशि अपने कोष में जमा करा रखी है तो फिर भूमि मालिक की तरफ से वहां से पैसा नहीं उठाना सरकार की गलती नहीं मानी जाएगी।

धारा 24 (2), जिसकी कोर्ट ने की व्याख्या-

2013 में पारित भू-अधिग्रहण कानून की धारा 24 (2) में प्रावधान है कि अगर अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू करने के पांच साल के भीतर सरकार या तो जमीन पर कब्जा नहीं लेती या मुआवजा नहीं देती तो अधिग्रहण रद्द माना जाएगा। पीठ को यह तय करना था कि सरकार द्वारा राजकोष में जमा कराए मुआवजे को ‘मुआवजा अदा किया गया’ माना जाए या नहीं। कोर्ट को भूमि अधिग्रहण कानून, 2013 की धारा 24(2) की व्याख्या करनी थी। प्रावधान के तहत यदि 2013 के नए भूमि अधिग्रहण कानून के लागू होने तक 1894 के अधिग्रहण कानून के तहत मुआवजा नहीं दिया जाता तो पुरानी कार्यवाही ‘खत्म’ मानी जाएगी और नए सिरे से मुआवजा प्रक्रिया शुरू होगी। कोर्ट ने कहा, धारा 24(2) में लिखे ‘अथवा’ शब्द को ‘और’ पढ़ा जाना चाहिए।

जस्टिस मिश्रा ने सुनवाई से हटने से किया था इनकार-

बीते साल जस्टिस मिश्रा ने इस केस की सुनवाई से हटने से इनकार किया था। बीते 15 अक्तूबर को इसकी सुनवाई शुरू हुई। इस दौरान किसानों के एक संगठन ने जस्टिस मिश्रा से इस मामले से हटने की मांग की। किसानों का कहना था कि जिस फैसले का परीक्षण किया जा रहा है, उसे लिखने वाले जस्टिस मिश्रा थे। जस्टिस मिश्रा ने एक फैसले में कहा था कि सरकारी एजेंसी द्वारा किया गया भूमि अधिग्रहण इस आधार पर रद्द नहीं हो सकता कि भू स्वामी ने पांच साल के भीतर क्षतिपूर्ति नहीं ली।