Property dispute : औलाद नालायक ही क्यों न हो, माता पिता इस सम्पत्ति से नहीं कर सकते बेदखल
माता पिता सारी उम्र अपने बच्चों के लिए कमाते हैं और उनके लिए प्रॉपर्टी से लेकर धन तक अर्जित करते हैं। माता पिता की सेवा करना भी बच्चों का पहला फ़र्ज़ बनता है पर कई बार औलाद नालायक निकल जाती है और इससे माता पिता को काफी कष्ट होता है। ऐसी औलाद को माता पिता अपनी प्रॉपर्टी से बेदखल करना चाहता है पर मम्मी पापा ऐसा नहीं कर सकते, औलाद किसी भी हो पर माता पिता उसे इस प्रॉपर्टी से निकाल नहीं सकते। आइये जानते हैं इसके बारे में
HR Breaking News, New Delhi : माँ बाप पूरा ज़ोर लगा देते हैं की उनकी औलाद लायक निकले, जीवन में कोई अच्छा काम करे, पर इस बात की कोई भी गारंटी नहीं ले सकता की बच्चे कैसे निकलेंगे और आगे जाकर माता पिता के कहने में होंगे या नहीं। अगर तो औलाद लायक निकलती है तो माता पिता का बुढ़ापा भी सुखी गुज़रता है पर अगर बच्चे नालायक निकले तो उन्हें पूरी उम्र ही रोना पड़ता है। ऐसे में माता पिता सोचते हैं की नालायक औलाद को प्रॉपर्टी से बेदखल (property news hindi) कर दिया जाए , अगर आपकी संतान ‘नालायक’ है तो आप एसडीएम के पास जाकर उसे संपत्ति से बेदखल (evicted from property) करने के लिए अर्जी दायर कर सकते हैं.
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अगर आपके पिता या दादा कोई संपत्ति छोड़कर गए हैं तो उससे आप अपनी संतान को बेदखल नहीं कर सकते हैं. भले ही वह कितना ही बड़ा नालायक क्यों न हो. पैतृक संपत्ति (ancestral property) में आपकी संतान का अधिकार भी घर के बाकी लोगों की तरह ही होगा. पैतृक संपत्ति से जुड़ा कानून (ancestral property rules) कहता है कि माता-पिता अपने बच्चों को पैतृक संपत्ति (kya hoti hai paitrik sampatti) की वसीयत से बाहर नहीं कर सकते. अगर माता-पिता ऐसा करते हैं तो बच्चों के पास कोर्ट (court news) जाने का अधिकार है. ऐसे अधिकांश मामलों में कोर्ट बच्चों के पक्ष में फैसला देता है.
क्या होती है नालायक औलाद
नालायक से यहां मतलब यह है कि 18 वर्ष की आयु के बाद आपकी संतान आपके साथ और आपके सहारे पर रहती है. इसके साथ ही वह आपको तंग करती है, आपको यातना देती है और आपकी नजर में वह किसी काम की नहीं है. ऐसे में आप अपनी संतान को नालायक कहकर कुछ कागजी कार्रवाइयों के बाद उसे संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं.
क्या होती है पैतृक संपत्ति
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पैतृक संपत्ति (kya hoti hai paitrik sampatti) का मतलब दादा-परदादा से विरासत में मिली संपत्ति होती है. पैतृक संपत्ति हमेशा पिता के परिवार की ओर से आई संपत्ति को ही कहा जाता है. यह प्रॉपर्टी कम-से-कम 4 पीढ़ियों से चलती आ रही हो. कानूनी प्रावधानों के अनुसार, बेटे और बेटी दोनों को पैतृक संपत्ति पर समान अधिकार है. एक बात यहां ध्यान देने वाली है कि अगर चार पीढ़ियों से चली आ रही संपत्ति में कहीं भी बंटवारा हुआ तो उससे पैतृक संपत्ति का दर्जा हट जाएगा और वह फिर स्व-अर्जित संपत्ति हो जाएगी. इस स्थिति में माता-पिता अपने बच्चों को बेदखल कर सकते हैं. 1956 का हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, विशेष रूप से धारा 4, 8, और 19, पैतृक संपत्ति से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है.
हिस्सेदारी में बदलाव
पैतृक संपत्ति के हिस्से में हर पीढ़ी के साथ बदलाव होता चला जाता है. जैसे-जैसे परिवार बढ़ता है वैसे-वैसे हिस्सेदारी घटती जाती है. अगर परिवार के किसी सदस्य की केवल एक संतान है तो उसका पूरा हिस्सा उस संतान के हक में जाएगा. वहीं, अगर किसी दूसरे सदस्य की 2 या 3 संतान हैं तो उसका हिस्सा इन लोगों में समान रूप से बंट जाएगा. इस तरह किसी के पास ज्यादा हिस्सा और किसी के पास कम.
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