property rights : ससुराल के साझे घर में बहू के अधिकार पर दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
Delhi High Court : प्रॉपर्टी बंटवारे को लेकर बनाए गए नियमों की बहुत कम लोगों को जानकारी है। बस इसी कारण से प्रॉपर्टी से जुड़े विवाद लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। ऐसे में आज की इस खबर के माध्यम से हम आपको बताने जा रहे हैं दिल्ली हाई कोर्ट के एक बड़े फैसले के बारे में जिसमें बताया गया है कि ससुराल के साझे घर में बहू का कितना होता है अधिकार।
HR Breaking News : (property rights in hindi) संपत्ति बंटवारे को लेकर देश में कई तरह के नियम बनाए गए हैं जिनकी जानकारी होना बहुत जरूरी है वरना प्यार भरे रिश्ते में भी खटास आ जाती है। साझे घर में निवास के अधिकार को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने महत्वपूर्ण फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि साझे घर में पत्नी के रहने का अधिकार स्थायी नहीं है, खासकर जब संपत्ति के मालिक ससुरालवाले हों और वे उसे बेदखल करना चाहते हों। सास-ससुर के साथ रहने वाली एक बहू ने घर से बेदखल किए जाने के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अर्जी दी थी। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा, 'घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act) के तहत निवास का अधिकार साझा घर में अपरिहार्य अधिकार नहीं है, खासकर जब बहू अपने बुजुर्ग सास-ससुर के खिलाफ खड़ी हो।'
कोर्ट ने कहा कि संयुक्त घर के मामले में संबंधित संपत्ति (property rights)के मालिक पर अपनी बहू को बेदखल करने को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है। ससुर ने 2016 में निचली अदालत के समक्ष इस आधार पर कब्जे के लिए मुकदमा दायर किया था कि वह संपत्ति के पूर्ण मालिक हैं, उनका बेटा किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित हो गया है और वह अपनी बहू के साथ रहने के इच्छुक नहीं हैं।
सास-ससुर शांति से रहने के हकदार-
जस्टिस योगेश खन्ना ने आगे कहा कि इस केस में सास-ससुर वरिष्ठ नागरिक हैं और उनकी उम्र 74 साल और 69 साल है। अपने जीवन के इस पड़ाव पर वे शांतिपूर्वक ढंग से रहने के हकदार हैं। उन्हें अपने बेटे और बहू के बीच विवाद में परेशान नहीं किया जाना चाहिए।
लेकिन बहू को तब तक नहीं निकाल सकते...
हालांकि, हाई कोर्ट(Delhi High Court) ने यह भी साफ किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत महिलाओं को मिले सुरक्षा के प्रावधानों के तहत पति के अपनी पत्नी को रहने की वैकल्पिक जगह उपलब्ध कराने तक उसे घर से नहीं निकाला जा सकता।
महिला ने अपनी अर्जी में कहा था कि कानूनी रूप से विवाहित पत्नी (property related news) होने के नाते वह अपने दो नाबालिग बेटियों के साथ एक कमरे और उसके साथ लगी बालकनी में रह रही हैं। इस घर पर मालिकाना हक सास-ससुर का है। उन्होंने याचिका में दावा किया था कि यह संपत्ति संयुक्त रूप से घर के पैसे और ससुरालवालों की पैतृक संपत्ति बेचकर खरीदी गई थी। ऐसे में यह परिवार की प्रॉपर्टी हुई और इसमें रहने का हक उसका भी है।
ट्रायल कोर्ट ने फैसला दिया था कि प्रॉपर्टी उसके ससुर ने खरीदी थी और वह बहू के तौर पर उसमें रह रही थी। अगर ससुराल पक्ष उसे रखना नहीं चाहता तो उसके पास रहने का कोई अधिकार नहीं है। पत्नी ने इस आदेश को चुनौती दी और फिर हाई कोर्ट का फैसला (Delhi High Court Decision)भी उसके खिलाफ आया।