Supreme Court Decision : क्या औलाद को प्रोपर्टी से बेदखल कर सकते हैं माता-पिता, सुप्रीम कोर्ट के फैसले में मिला जवाब

Supreme Court Decision : आमतौर पर प्रोपर्टी से जुड़े नियमों और कानूनाें को लेकर लोगों में जानकारी का अभाव होता है. इसी कड़ी में आज हम आपको अपनी इस खबर में सुप्रीम कोर्ट की ओर से आए एक फैसले के मुताबिक ये बताएंगे कि क्या औलाद को माता-पिता प्राेपर्टी से बेदखल कर सकते है या नहीं-

 

HR Breaking News, Digital Desk- (Senior Citizens Property Dispute) यह सवाल कई बार उठता है कि क्या सीनियर सिटीजन अपने बच्चों या रिश्तेदारों को अपनी संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं? दरअसल कई बार ऐसे केस सामने आए हैं जिनमें रिश्तेदार या बच्चों ने बुजुर्ग माता-पिता को प्रताड़ित करते हैं। ऐसे ही एक केश की सुप्रीम कोर्ट (supreme court) में सुनवाई हुई जिसमें अदालत ने एक सीनियर सिटीजन के द्वारा अपने बेटे को घर से निकालने के लिए दायर किए गए मुकदमे को खारिज कर दिया।

यह मुकदमा माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act), 2007 (सीनियर सिटीजन्स एक्ट) के तहत दायर किया गया था। यह अधिनियम उपेक्षित बुजुर्ग माता-पिता को, जिनके पास अक्सर कोई आर्थिक सहारा नहीं होता, अपने बच्चों से भरण-पोषण प्राप्त करने का कानूनी अधिकार देता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वरिष्ठ नागरिकों को सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए आवश्यक सहायता मिले।

हालांकि यह Act माता-पिता को अपने बच्चों या रिश्तेदारों को घर से निकालने का अधिकार नहीं देता लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने प्रॉपर्टी ट्रांसफर्स से संबंधित कुछ परिस्थितियों में ऐसा करने की अनुमति दी है।

क्या कहता है ये Act?

वरिष्ठ नागरिक अधिनियम (Senior Citizens Act) 60 वर्ष से अधिक उम्र के माता-पिता को, जो अपनी कमाई या संपत्ति से गुज़ारा नहीं कर सकते, अपने बच्चों या रिश्तेदारों से भरण-पोषण मांगने का अधिकार देता है। यह अधिनियम बच्चों और रिश्तेदारों पर माता-पिता की देखभाल की ज़िम्मेदारी डालता है, ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें। ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए विशेष ट्रिब्यूनल बनाए गए हैं।

Senior Citizens Act की धारा 23 क्या है?

यह भी समझना जरूरी होगा कि Senior Citizens Act की धारा 23 क्या कहती है। यह धारा कहती है कि अगर माता-पिता अपनी संपत्ति दे देते हैं या ट्रांसफर कर देते हैं, उसके बाद भी maintenance यानी भरण-पोषण हासिल कर सकते हैं। धारा 23(1) के तहत कोई सीनियर सिटीजन अपनी संपत्ति को यह शर्त रखकर दे सकता है कि जिसे यह संपत्ति दी गई है, वह उन्हें “बुनियादी सुविधाएं और शारीरिक जरूरतें” उपलब्ध कराएगा।

अगर यह शर्त पूरी नहीं होती है तो यह माना जाएगा कि संपत्ति का ट्रांसफर “धोखाधड़ी, जबरदस्ती या गलत प्रभाव” के तहत किया गया है और अगर सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल के पास जाते हैं तो उसके पास इसे रद्द करने का अधिकार होगा।

Senior Citizens Act की धारा 23(2) कहती है कि सीनियर सिटीजन (senior citizen) को अपनी संपत्ति से भरण-पोषण हासिल करने का पूरा अधिकार है और अगर यह संपत्ति (पूरी तरह या आंशिक रूप से) ट्रांसफर हो जाती है तो यह अधिकार नए मालिक के खिलाफ लागू हो सकता है, बशर्ते उसे इस बारे में जानकारी हो।

बहू को निकालने की मांग पर क्या कहा था?

साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) को एक मामले में फैसला करना था जिसमें बुजुर्ग माता-पिता और उनके बेटे ने अपनी बहू (daughter-in-law) को घर से निकालने की मांग की थी और उन्होंने Senior Citizens Act के तहत ही मुकदमा दर्ज किया था। इन दोनों पक्षों के बीच कुछ और मुकदमे भी चल रहे थे जैसे तलाक का मामला व अन्य।

जून 2015 में, बेंगलुरु के नॉर्थ सब डिवीजन के सहायक आयुक्त ने फैसला दिया था कि यह प्रॉपर्टी माता-पिता की है और बहू का उस पर कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह वहां सिर्फ रह रही थी। बहू ने इस फैसले के खिलाफ 2020 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि Women from Domestic Violence Act, 2005 के तहत बहू को घर से निकाला नहीं जा सकता, भले ही उसका उस घर पर कोई अधिकार ना हो। लेकिन शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि क्या Senior Citizens Act के तहत ट्रिब्यूनल बेदखल करने या घर से निकालने का आदेश दे सकता है या नहीं?

तत्कालीन CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की बेंच ने फैसला दिया कि ट्रिब्यूनल बेदखली का आदेश दे सकता है, “अगर यह सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण और सुरक्षा के लिए जरूरी हो”। कोर्ट ने कहा कि धारा 23(2) में बेदखल करने का अधिकार शामिल है।

अदालत ने यह भी माना कि अगर बच्चे या रिश्तेदार सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण की जिम्मेदारी को पूरा नहीं करते हैं तो ट्रिब्यूनल उन्हें संपत्ति से बेदखल करने का आदेश दे सकता है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि बेदखल करने का आदेश देने से पहले दूसरे पक्ष के दावों पर विचार करना जरूरी है।

अब सवाल यह है कि जो मामला अदालत में आया था, उसमें सुप्रीम कोर्ट ने बेटे को घर से निकालने से इनकार क्यों किया?

इस मामले में माता-पिता ने अपने बेटे को घर से निकालने के लिए मुकदमा दायर किया था। उन्होंने अदालत से कहा कि उनका बेटा उनकी देखभाल नहीं कर रहा और उन्हें मानसिक व शारीरिक रूप से परेशान कर रहा है। 2019 में, ट्रिब्यूनल ने माता-पिता को राहत दी और बेटे को आदेश दिया कि वह माता-पिता की अनुमति के बिना घर में दखल न दे। ट्रिब्यूनल ने उसे अपनी बर्तन की दुकान और अपने परिवार के साथ रहने वाले कमरे तक ही रहने को कहा।

सुप्रीम कोर्ट पहुंचे माता-पिता-

अदालत ने ट्रिब्यूनल के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि बेटे को बेदखल करने की कार्यवाही तभी फिर से शुरू हो सकती है, जब वह दोबारा दुर्व्यवहार करे। माता-पिता ने 2023 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन अदालत ने पाया कि ट्रिब्यूनल (tribunal) के आदेश के बाद बेटे द्वारा दुर्व्यवहार का कोई सबूत नहीं है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हर मामले में बेदखली का आदेश आवश्यक नहीं होता है।