पिता की संपति में बेटियों के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने लिया बड़ा फैसला

वसीयत किए बिना अगर होती है पिता की मृत्यु तो बेटियों को मिलेगा संपत्ति में हक । महिलाओं के हक में सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिया गया यह फैसला बड़ा फैसला बनकर साबित होगा। तो आइए जानते है इस फैसले के बारे में। 
 

सुप्रीम कोर्ट ने 20 जनवरी 2022 के दिन एक अहम फैसला लिया। जिसमें कोर्ट ने कहा कि यदि किसी हिंदू व्यक्ति की बगैर वसीयत किए ही मृत्यु हो जाती है तो उसकी स्वअर्जित व अन्य संपत्तियों में उसकी बेटी को हक दिया जाएगा।

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फैसले से जुड़े सवालों के विषय में जानने के लिए हमने हमारे क्सपर्ट  से बात की उन्होंने हमें बताया कि यह फैसला महिलाओं के हक में एक बड़ा फैसला बनकर साबित होगा।

बता दें कि कोर्ट का यह फैसला हिंदू महिलाओं व विधवाओं के हिंदू उत्तराधिकार कानून में संपत्तियों के अधिकारों को लेकर दिया गया है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई हिंदू व्यक्ति बिना वसीयत किए ही मर जाता है तो उसकी संपत्ति में बेटियों की हिस्सेदारी रहेगी। इसके अलावा बेटियों को मृत पिता के भाई के बच्चों की तुलना में संपत्ति में वरीयता दी जाएगी। मृत पिता की संपत्ति का बंटवारा उसके बच्चों द्वारा आपस में किया जाएगा।

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क्या है फैसले से जुड़ा पूरा मामला- 
तमिलनाडु के एक केस का अंत करते हुए जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने यह 51 पन्ने का फैसला दिया है। बता दें कि इस मामले में पिता की मृत्यु साल 1949 में हो गई थी और उन्होंने अपनी कमाई हुई वसीयत किसी भी सदस्य के नाम नहीं की थी। उस समय मद्रास हाई कोर्ट ने  ज्वाइंट फैमिली में रहने वाले मृत पुरुष की संपत्ति पर बेटी को बजाए उसके भाई के बेटों को अधिकार दे दिया था।

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जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के पास गया तो फैसला बेटी के हक में सुनाया है, बता दें कि यह मुकदमा बेटी के वारिस लड़ रहे थे और इसी के साथ उन्होंने यह केस जीत लिया है।


क्या है हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 
एक्सपर्ट स्वगिता ने हमें बताया कि महिलाओं को संपत्ति में अधिकार देने के लिए संसद ने 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम बनाया था, जिसके तहत महिलाओं को संपत्ति में अधिकार दिए गए। इस कानून ने कई विरोधाभासों को खत्म करने की कोशिश की गई थी,

कानून के अनुसार बेटी और बेटों को बराबर का अधिकार दिया गया, वहीं अगर बेटी की शादी भी हो जाए तब भी पिता की संपत्ति पर उसका अधिकार होता है।

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2005 में किया गया संशोधन- 


इस कानून में 2005 में संशोधन किया गया, जिसके तहत महिलाओं को पैतृक संपत्ति में जन्म से ही साझेदार बनाया गया। बेटा और बेटी दोनो ही पिता की संपत्ति में बराबरी के अधिकारी माने गए।

वहीं इस संशोधन के बाद बेटियों को इस बात का भी अधिकार दिया गया कि वो पिता की कृषि भूमि का बंटवारा भी कर सकती थी। यानी इस कानून के तहत पिता के घर पर बेटी का भी उतना ही अधिकार होता है, जिनता कि उसके भाई का।


पिता की संपत्ति पर बेटियों को बराबर का अधिकार- 


सुप्रीम कोर्ट में यह माना कि हिंदू उत्तराधिकार कानून बेटियों को पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार देता है। कोर्ट ने यह कहा कि यह इस कानून के लागू होने से पहले की धार्मिक व्यवस्था में भी महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को मान्यता प्राप्त थी। ऐसा पहले कई अन्य फैसलों में भी स्थापित हो चुका है कि अगर किसी व्यक्ति का कोई बेटा नहीं है, तो भी उसकी संपत्ति पर पहला अधिकार उसके भाई के बेटों का नहीं बल्कि उसकी बेटी का होगा।

इतना ही नहीं कोर्ट ने यह भी कहा कि यह व्यवस्था व्यक्ति की अपनी निजी संपत्ति के साथ-साथ खानदानी बंटवारे में मिली संपत्ति पर भी लागू होती है।