प्रोपर्टी रजिस्ट्रेशन को लेकर Supreme Court ने सुनाया अहम फैसला, अब रजिस्ट्री से नहीं मिलेगा प्रोपर्टी का मालिकान हक

Supreme Court - आमतौर पर प्रापर्टी से जुड़े निमयों और कानूनों को लेकर लोगों में जानकारी का अभाव होता है। इसी कड़ी में आज हम आपको अपनी इस खबर में सुप्रीम कोर्ट की ओर से आए एक फैसले के मुताबिक बता दें कि अब रजिस्ट्री से नहीं मिलेगा प्रोपर्टी का मालिकान हक-

 

HR Breaking News, Digital Desk- (Property) : अगर आप प्रॉपर्टी (property) खरीदने की सोच रहे हैं, तो सिर्फ रजिस्ट्री से आप उसके मालिक नहीं बन जाते। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में साफ किया है कि केवल रजिस्ट्रेशन मालिकाना हक का सबूत नहीं है। इस फैसले से प्रॉपर्टी खरीदने वाले और रियल एस्टेट एजेंट दोनों हैरान हैं, क्योंकि अब सिर्फ रजिस्टर्ड दस्तावेज़ के आधार पर मालिकाना हक (Ownership) का दावा नहीं किया जा सकता।

इससे प्रॉपर्टी से जुड़े धोखाधड़ी के मामलों पर रोक लग सकती है, लेकिन साथ ही खरीदारों को पहले से ज्यादा सतर्क रहना होगा। कोई भी प्रॉप्रर्टी खरीदने से पहले ये चेक कर लें कि पूरी ओनरशिप चेन कानूनी है या नहीं (Before buying a property, check whether the entire ownership chain is legal or not)। सारे जरूरी डॉक्यूमेंट देखने के बाद ही कोई फैसला लें।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

यह मामला तेलंगाना की एक जमीन से जुड़ा था। 1982 में एक कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी (Cooperative Housing Society) ने यह जमीन बिना रजिस्टर्ड एग्रीमेंट (regiesterd aggrement) के खरीदी थी। बाद में सोसायटी ने यह जमीन आगे बेच दी। बाद में जिन लोगों ने यह जमीन खरीदी, उन्होंने कोर्ट में दावा किया कि वे उसके मालिक हैं क्योंकि उनके पास रजिस्टर्ड पेपर्स हैं और जमीन पर कब्जा भी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर बेसिक सेल एग्रीमेंट (sale agreement) रजिस्टर्ड नहीं है, तो बाद में होने वाला रजिस्ट्रेशन या कब्जा भी मालिकाना हक साबित नहीं कर सकता।

क्यों नहीं है सिर्फ रजिस्ट्रेशन ही काफी?

अगर जिस व्यक्ति से आपने प्रॉपर्टी खरीदी है, उसके पास भी सही कागज नहीं हैं या उसका मालिकाना हक कानूनी रूप से पक्का नहीं है, तो आपकी रजिस्ट्री भी काफी नहीं मानी जाएगी। यानी, सिर्फ रजिस्ट्रेशन के भरोसे प्रॉपर्टी खरीदना अब सेफ नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट यह सुनिश्चित करना चाहता है कि पूरी प्रॉपर्टी ट्रांजैक्शन चेन (ownership chain) कानूनी हो। इसलिए अब रजिस्ट्रेशन के साथ अन्य डॉक्यूमेंट भी जरूरी होंगे।

मालिकाना हक साबित करने के लिए जरूरी डॉक्यूमेंट-

सेल डीड (Sale Deed) – यह प्रॉपर्टी की सेल का सबसे अहम डॉक्यूमेंट होता है।

टाइटल डीड (Title Deed) – इसमें साफ-साफ लिखा होता है कि प्रॉपर्टी का मालिक कौन है।

म्यूटेशन सर्टिफिकेट – यह लोकल रिकॉर्ड (local record) में नाम ट्रांसफर का सबूत होता है।

एनकंब्रेंस सर्टिफिकेट – यह दिखाता है कि प्रॉपर्टी पर कोई लोन या कानूनी झंझट नहीं है।

प्रॉपर्टी टैक्स रसीद – यह दिखाता है कि प्रॉपर्टी का मालिक टैक्स भर रहा है।

पजेशन लेटर – यह बताता है कि मालिक ने वास्तव में प्रॉपर्टी का कब्जा (possession of property) ले लिया है।

वसीयत या गिफ्ट डीड – अगर प्रॉपर्टी विरासत में मिली है, तो ये डॉक्यूमेंट जरूरी होते हैं।

रजिस्ट्रेशन का मकसद क्या है?

रजिस्ट्रेशन से प्रॉपर्टी ट्रांजैक्शन (property transaction) का सरकारी रिकॉर्ड बनता है, जो पारदर्शिता बढ़ाता है और भविष्य में झगड़े से बचाता है। इससे टैक्स वसूली में आसानी होती है और यह डॉक्यूमेंट सेफ (document safe) रहते हैं। इससे फर्जीवाड़े की संभावना कम हो जाती है।

इस फैसले का असर क्या होगा?

रीयल एस्टेट (real estate) लेनदेन में, खरीदारों को अब अधिक सतर्क रहना होगा। उन्हें केवल रजिस्ट्री पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। रीयल एस्टेट एजेंटों को भी अपने दस्तावेज़ों को मजबूत करना होगा। कानूनी प्रक्रिया (legal process) लंबी और महंगी हो सकती है, लेकिन यह पारदर्शिता लाएगी। इसमें भले ही थोड़ा समय और पैसा लगे, पर यह भविष्य में बड़ी समस्याओं से बचाएगा और आपकी संपत्ति खरीद-फरोख्त (Property purchase and sale) को सुरक्षित बनाएगा।