Bihar में अब जमीन खरीद बिक्री में नहीं होगा फर्जीवाड़ा, सरकार ने उठाया ये बड़ा कदम

bihar news : ज़मीन का फर्ज़ीवाड़ा करना आम बात है बिहार इसमें पीछे नहीं है | हर साल यहां पर करोड़ों रूपए की ज़मीन का फर्जीवाड़ा होता है और ये काम काफी तेज़ी से बढ़ रहा था पर अब इस आम पर रोक लगेगी क्योंकि सरकार ने ज़मीन का फर्जीवाड़ा रोकने के लिए ये सख्त कदम उठाया है | आइये जानते हैं सरकार के इस फैसले के बारे में
 

HR Breaking News, New Delhi : निबंधन विभाग से सीधे जमीन का रिकॉर्ड ऑनलाइन जुड़ेगा. इससे जमीन की खरीद-बिक्री के समय निबंधन विभाग में भी सत्यता की जांच हो जायेगी. इससे फर्जीवाड़े पर निबंधन विभाग के स्तर पर भी रोक लगायी जा सकेगी. साथ ही गैर कृषि कार्यों के लिए जमीन परिवर्तन करने का काम भी ऑनलाइन होगा. इसके लिए इंटीग्रेटेड लैंड रिकॉर्डस मैनेजमेंट सिस्टम विकसित किया जायेगा. बैंकिंग सेवाओं के आधार पर ये आधार से लिंक होगा. इस पूरे सिस्टम में बैंकों की तरह ट्रांजैक्शन भी सिक्योर बनाया जायेगा.

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बिहार लैंड रिकॉर्ड्स मैनेजमेंट सोसायटी करेगा प्रबंधन

जानकारी के अनुसार इसका प्रबंधन बिहार लैंड रिकॉर्ड्स मैनेजमेंट सोसायटी के माध्यम से कराया जायेगा. इसके माध्यम से ऑनलाइन दाखिल खारिज, ऑनलाइन भू लगान भुगतान, जमाबंदी को अपग्रेड करने तथा आधार सीडिंग का भी काम होगा. चौथे कृषि रोड मैप में इसकी स्वीकृति दे दी गयी है. इसके तहत एक बार साॅफ्टवेयर का निर्माण किया जायेगा. इस साॅफ्टवेयर के रख-रखाव की प्रतिवर्ष जरूरत पड़ेगी. तृतीय कृषि रोडमैप से जमाबंदी कार्य का कंप्यूटराइजेशन कार्य किया गया था. इसके तहत ऑनलाइन दाखिल खारिज, भूमि दखल-कब्जा व ऑनलाइन भुगतान का कार्यकिया गया है.


इंटीग्टरेड लैंड रिकॉर्डस मैनेजमेंट सिस्टम से कार्य भी होंगे

ऑनलाइन दखल-कब्जा प्रमाण पत्र, ऑनलाइन भूमि खेसरा मानचित्र तथा सभी राजस्व अभिलेखों को ऑनलाइन देखने और डाउनलोड करने की सुविधा होगी. कोर्ट केस, भू-अर्जन की कार्यवाही और अन्य आदेशों की जानकारी भी इस पर मिलेगी. ऑनलाइन भू-मापी तथा एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस के द्वारा अन्य विभागों से भी जोड़़ा जायेगा.

खर्च होंगे 29 करोड़ 90 लाख रुपये 

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इंटीग्रेटेड लैंड रिकॉर्ड्स मैनेजमेंट सिस्टम के रख-रखाव की हर साल जरूरत पड़ेगी. इस पर 29 करोड़ 90 लाख रुपये पांच पांच वर्षों में खर्च किये जायेंगे. वर्ष 2023-24 में 1622.50 लाख तथा 2024 से 2028 तक प्रतिवर्ष 324.50 लाख रुपये प्रतिवर्ष खर्च किये जायेंगे. इसकी स्वीकृति दे दी गयी है. विभागीय लोगों की माने तो इस सिस्टम के बन जाने से जमीन की खरीद और बिक्री में होनेवाले 90 प्रतिशत मामले कम हो जायेंगे. जमीन मामले में सबसे बड़ी दिक्कत कागजों की उपलब्धता ही रही है. नकली दस्तावेज बनाकर एक ही जमीन कई लोग बेच देते हैं.