Loan Recovery : क्या लोन रिकवरी कार्रवाई को कोर्ट में दे सकते हैं चुनौती, हाईकोर्ट ने फैसले में किया साफ
HR Breaking News, Digital Desk- सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में व्यवस्था दी है कि बैंक द्वारा की जा रही लोन रिकवरी की कार्यवाही के खिलाफ (सरफेयसी एक्ट) कर्जदार द्वारा कोर्ट में रिट याचिका दायर नहीं की जा सकती। कोर्ट ने निर्देश दिया कि अदालतों को ऐसा करने से बचना चाहिए। कोर्ट के इस आदेश से बैंकों को बड़ी राहत मिली है।
जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने यह व्यवस्था देते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया। जिसमें बैंक की एसेट रिकवरी एजेंसी (एआरसी) को 117 करोड़ रुपये के बैंक लोन की रिकवरी करने से रोक दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि यदि कर्जदार सरफेयसी एक्ट- लोन रिकवरी के लिए नीलामी, (धारा 13 के तहत) कार्यवाही से कोई राहत लेना चाहता है तो वह उसे सरफेयसी एक्ट की धारा 17 के तहत बने न्यायाधिकरण में ही लेनी होगी।
इसके लिए वह रिट क्षेत्राधिकार में न्यायालय नहीं जा सकता। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को यह समझना चाहिए था कि अनुच्छेद 226 के तहत दायर याचिका इस मामले में विचारणीय नहीं हो सकती। बैंक लोन देते समय कोई सार्वजनिक कार्य नहीं कर रहा होता है, जिसके खिलाफ रिट दायर की जा सके। वह लोन देता है तो उसे लोन की वसूली का भी अधिकार है। इसके बीच में कोर्ट नहीं आ सकता। न ही उनके खिलाफ रिट दायर की जा सकती है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक माह पूर्व दिए फैसले में को-ऑपरेटिव बैंकों को भी सरफेयसी एक्ट के तहत लोन रिकवरी करने के लिए अधिकृत किया था।