बाल विवाह के बढ़ते मामलों पर हाईकोर्ट चिंतित: सरकारों को याद दिलाए सुप्रीम कोर्ट के सुझाव

HR BREAKING NEWSपंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने बाल विवाह के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई है। प्रेमी जोड़े की सुरक्षा से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने हरियाणा, पंजाब व चंडीगढ़ को सुप्रीम कोर्ट के सुझावों की याद दिलाई है। साथ ही उच्च न्यायालय ने कर्नाटक की तर्ज पर कदम उठाने के लिए कहा है।
 

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पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने बाल विवाह के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई है। प्रेमी जोड़े की सुरक्षा से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने हरियाणा, पंजाब व चंडीगढ़ को सुप्रीम कोर्ट के सुझावों की याद दिलाई है। साथ ही उच्च न्यायालय ने कर्नाटक की तर्ज पर कदम उठाने के लिए कहा है। हाईकोर्ट ने कहा कि आदेश व सुझावों को 4 साल बीत जाने के बाद भी पालन नहीं हुआ, इसलिए अब हमें इसे याद दिलाना जरूरी है।

एक प्रेमी जोड़े ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी कि वह सहमति संबंध में रह रहे हैं और उन्हें उनके घर वालों से जान का खतरा है। इस मामले में लड़का और लड़की दोनों ही शादी की न्यूनतम आयु की शर्त को पूरा नहीं करते थे। हालांकि दोनों ने कहा कि वह साथ रहना चाहते हैं और शादी की आयु होने पर विवाह भी कर लेंगे। 

हाईकोर्ट ने कहा कि प्रेमी जोड़े जीवन की सुरक्षा के सांविधानिक अधिकारों की बात करते हुए सुरक्षा की गुहार लगा देते हैं। जीवन के अधिकार को शाब्दिक अर्थ में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि इसमें बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा भी निहित है। हाईकोर्ट ने कहा कि देश में बाल विवाह निषेध कानून मौजूद है, लेकिन फिर भी बड़ी संख्या में बाल विवाह के मामले सामने आ रहे हैं। 

सुप्रीम कोर्ट अपने आदेश में इस पर लगाम लगाने की बात कह चुका है और कर्नाटक ने इसको लेकर 20 अप्रैल 2017 को कानून में संशोधन भी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक की तर्ज पर ही ऐसे कदम उठाने का केंद्र व राज्य सरकारों को सुझाव दिया था। लंबा समय बीत जाने के बाद भी हरियाणा, पंजाब व चंडीगढ़ ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। अब हाईकोर्ट के लिए यह जरूरी हो गया है कि तीनों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की याद दिलाए ताकि इस पर लगाम लगाई जा सके।

कर्नाटक ने बाल विवाह को शुरू से अमान्य माना
कर्नाटक विधान मंडल ने राज्य के अधिनियम की धारा 3 में एक उपधारा (1ए) शामिल किया और कहा कि अब हर बाल विवाह को शुरू से अमान्य माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को कर्नाटक विधान मंडल द्वारा उठाए गए मार्ग को अपनाने की सिफारिश की।