Success Story : बेटे की पढ़ाई के लिए पिता ने बेची जमीन, IAS बन पिता का उतारा कर्ज 

IAS Officer Govind Jaiswal Success Story : "आज राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा, राजा वो ही बनेगा जो हकदार होगा" जी हाँ ऐसा ही कुछ कर दिखाया है एक रिक्शा वाले के बेटे ने । IAS बनकर गोविन्द ने न केवल अपने परिवार का नाम रोशन किया है, बल्कि कई लोगों की बोलती भी बंद की है ।
 

HR Breaking News (ब्यूरो) : कक्षा 12वीं के बाद गोविंद नें इंजीनियरिंग करने का फैसला किया था, लेकिन जब उन्हें पता चला की एप्लिकेशन फॉर्म भरने की फीस 500 रुपए है, तो उन्होंने अपने घर के आर्थिक हालात देखते हुए इंजीनियरिंग करने का आइडिया ड्रोप कर दिया था। 

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थ्री आइज (3I) का कोई  मुकाबला नहीं 


हमारे देश में अगर करियर की बात की जाए तो उसमें थ्री आइज (3I) का  कोई  मुकाबला नही है। इन थ्री आइज़ में IIT, IIM और IAS शामिल हैं। हालांकि, इस तीनों में से एक IAS का रुतबा सबसे अधिक होता है। IAS ऑफिसर बनने के लिए हमारे देश नें लाखों छात्र यूपीएससी की सिविल सर्विसेस की परीक्षा देते हैं, लेकिन उनमें से मात्र 100-150  या उससे भी कम छात्र IAS का पद हासिल कर पाते हैं। ऐसे में जो लोग इस परीक्षा को पास करके IAS का पद हासिल करते हैं, उनके लिए समाज में इज्जत काफी हद तक बढ़ जाती है। खास कर उनके लिए तो ऐसा जरूर होता है, जो किसी ऐसे घर से आते हैं जहां संसाधनों का आभाव काफी अधिक होता है। ऐसे में आज हम भी आपको एक ऐसे आईएएस ऑफिसर की सक्सेस स्टोरी के बारे में बताएंगे, जिन्होंने हजारों दिक्कतों का सामना करने के बावजूद अपने दृढ निश्चय और मेहनत के बल पर अपने IAS officer बनने के सपने को पूरा किया।


बड़ी मुश्किल से होता था दो वक्त की रोटी का गुजारा


हम बात कर रहें हैं आईएएस ऑफिसर गोविंद जयसवाल की। इनके पिता एक रिक्शा चालक थे। बनारस की तंग गलियों में 12 x 8 के किराये के मकान में रहने वाला गोविंद का परिवार दो वक्त की रोटी का भी बड़ी मुश्किल से गुजारा कर पाता था। बता दें कि गोविंद के घर में उनके माता-पिता के अलावा उनकी दो बहनें भी हैं।  


घर के आस-पास था भयंकर शोर


ऊपर से उनका घर ऐसी जगह पर था, जहां शोर-गुल की कोई कमी नहीं थी। उनके घर के आस-पास मौजूद फक्ट्रियों और जनरेटरों के शोर में एक दूसरे से बात करना भी काफी मुश्किल होता था। यहां तक कि नहाने-धोने से लेकर खाने-पीने तक का सारा काम इसी छोटी से घर में करना पड़ता था। हालांकि, ऐसी  परिस्थिति में रहने के बाद भी गोविंद नें शुरू से पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया था।

कक्षा 8वीं में ही पढ़ाने लगे ट्यूशन 


घर की आर्थिक स्थिति के खराब होने के कारण गोविंद ने अपनी पढाई और किताबों का खर्च निकालने के लिए कक्षा 8वीं में ही अपने से छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया था। पिता के रिक्शा चालक होने और घर की आर्थिक के खराब होने के कारण लोग कई बार गोविंद को यह ताना भी देते थे कि "चाहे तुम जितना भी पढ़ लो चलाना तो तुम्हें रिक्शा ही है।" हालांकि, गोविन्द ने इन सब के बावजूद पढ़ाई से अपना ध्यान कभी नहीं भटकने दिया। गोविन्द कहते हैं कि "मुझे Divert करना असंभव था। अगर कोई मुझे Demoralize करता था, तो मैं अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के बारे में सोचने लगता था।"

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अक्सर मोमबत्ती या डिबिया जलाकर करते थे पढ़ाई


गोविंद कई बार घर के आस-पास के शोर से इतना परेशान हो जाते थे कि वे अपने कानों में रूई लगा कर पढ़ाई किया करते थे। जब उन्हें ज्यादा परेशानी होती थी तो वे मैथ्स के सवालों को हल करने में लग जाते थे। वहीं, रात के समय जब शांति होती थी तब वे बाकी सब्जेक्ट्स की पढ़ाई किया करते थे। इसके अलावा उनके यहां 12 से 15 घंटे के करीब बिजली की कटौती रहती थी, जिस कारण उन्हें अक्सर मोमबत्ती या डिबिया जलाकर पढ़ाई करनी पड़ती थी।  

 
मात्र इतने रुपए के कारण छोड़नी पड़ी इंजीनियरिंग


गोविंद अपने स्कूल के टॉपर रह चुके थे, जिस कारण लोगों ने उन्हें कक्षा 12वीं के बाद इंजीनियरिंग करने की सलाह दी थी। हालांकि, वो भी कुछ ऐसा ही चाहते थे, लेकिन जब उन्हें पता चला की एप्लिकेशन फॉर्म भरने की फीस 500 रुपए है, तो उन्होंने इंजीनियरिंग करने का आइडिया ड्रोप कर दिया और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) में एडमिशन ले लिया, जहां उन्हें मात्र 10 रुपए की औपचारिक फीस भरनी होती थी।

घर की जमीन बेचकर की UPSC की तैयारी


कॉलेज के दौरान ही गोविंद ने यूपीएससी परीक्षा का तैयारी करने की सोची और उसी समय से तैयारी में जुट गए। कॉलेज खत्म होने के बाद भी गोविंद अपने आईएएस ऑफिसर बनने के सपने को साकार करने के लिए पढ़ाई कर रहे थे।  परीक्षा की फाइनल और अच्छी तैयारी के लिए गोविंद जैसे-तैसे करके दिल्ली आ गए। हालांकि, उसी दौरान उनके पिता के पैर में एक गहरा घाव हो गया और वे पूरी तरह से बेरोजगार हो गए। ऐसे में परिवार ने अपनी एक मात्र सम्पत्ती, एक छोटी सी जमीन को मात्र 30,000 रुपए में बेच दिया ताकि उनका बेटा अपनी यूपीएससी की कोचिंग पूरी कर सके। गोविंद अपने परिवार द्वारा दिए गए इस बलिदान को समझते थे, इसलिए उन्होंने अपने परिवार को निराश भी नहीं किया और मात्र 24 साल की उम्र में साल 2006 में अपने पहले ही अटेंप्ट में 48वां रैंक हासिल कर आईएएस ऑफिसर बन गए।