Success Story : 100 रुपये से शुरू किया था कारोबार, अब 100 करोड़ पर पंहुचा, पढ़िए बुजुर्ग महिला की दिलचस्प कहानी

Startup Idea : गरीबी इंसान की सफलता में अड़चन बन जाती है लेकिन कुछ लोग इससे प्रेरणा लेकर जिंदगी में कुछ बड़ा कर जाते हैं। आज की कहानी इसी बात का जीता-जागता उदाहरण है। इस बुजुर्ग महिला ने खेती को जरिया बनाकर करोड़ों रुपये कमा लिए।

 

HR Breaking News (नई दिल्ली) : हम जब भी खेती की चर्चा करते हैं तो पुरुषों की बात सबसे अधिक होती है. दिन रात मेहनत और तमाम परेशानियों का जिक्र करते हैं, लेकिन गांवों की महिलाओं को तो खेती बचपन से ही सौगात के रूप में मिलती है. वे खेतों और मवेशियों के साथ ही बड़ी होती हैं और उसी में समा जाती हैं. बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का आनंदपुर गांव अचार वाली किसान चाचरी की वजह से अब सबके जुबान पर आ गया है. कभी 100 रुपये से अचार बनाकर बेचने वाली चाची आज कल एक साल में एक करोड़ रुपये तक कमा लेती हैं. सैकड़ों महिलाओं और बुजुर्गों के साथ मिलकर आज वे अपना व्यापार देश-विदेश तक बढ़ा चुकी हैं.

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गरीबी ने खेती करने को मजबूर किया


मुजफ्फरपुर जिले के आनंदपुर गांव की राजकुमारी गरीब परिवार में पली बढ़ीं. गरीबी ज्यादा होने की वजह से हर वक्त परिवार में पैसे की तंगी बनी रहती थी. फिर राजकुमारी देवी ने अपनी खेतों में खैनी यानी तंबाकु की खेती शुरू की. उससे कुछ फायदा हुआ तो फिर पपीता की खेती करने लगीं. इसके लिए पास के ही डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय विश्वविद्यालय पूसा समस्तीपुर से बीज लाती थीं.

टीवी9 डिजिटल को वह बताती हैं कि पपीता 1990 में 5 रुपये किलो तक बिक जाता था, इसलिए एक बीधा जमीन पर खेती कर दिया. एक पेड़ से 70 से 80 किलो निकल जाता था और अच्छी कमाई हुई. फिर और दूसरी सब्जियों की खेती भी करने लगीं. उसी वक्त यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के कार्यक्रम में जाने लगीं. खेती की समझ बढ़ी तो कृषि मेला खेती की प्रदर्शनी में शामिल होने का दौर शुरू हो गया. वहां उनकी बेहतरीन सब्जियों के लिए पुरस्कार मिलने लगा. अब वो फेमस होने लगीं. कृषि क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित भी किया गया.

साइकिल चलाना समाज में पाप समझा जाता था


पद्मश्री राजकुमारी चाची बताती हैं कि 90 के दशक में कहीं भी आने जाने में दिक्कत होती थी. आनंदपुर गांव से बस की सुविधाएं नहीं थी, इसलिए सरैया जाना पड़ता था. मैने साइकिल सीखने की ठान ली, साइकिल सिखना शुरू किया तो गांव के लोग क्या क्या नहीं कहे. गांव में महिलाओं के लिए साइकिल चलाना पाप समझा जाता था, लेकिन जब साइकिल चलाने के दौरान गिर पड़ी, तब मुजफ्फपुर डॉक्टर से दीखाने गई. डॉक्टर ने कहा कि 40 साल की उम्र में हड्डी टूट जाएगी तो परेशानी होगी, इसलिए मत चलाइए. लेकिन मैंने हार नहीं मानी और सीखकर सामान लेकर शहर तक बेचने के लिए जाने लगी.

अचार क्यों बनाने लगी?


किसान चाची बताती हैं कि कृषि विज्ञान केंद्रो पर किसान से मिलते थे. उस समय किसान यही कहते रहते थे कि खेती में कोई फायदा नहीं है. मुझे यही बुरा लगा, फिर 2002 में हमने स्वयं सहायता समूह के जरिए अचार बनान शुरू किया. उव वक्त हमारे साथ 350 से अधिक महिलाओं का समूह बन गया. हम अचार बनाने लगे और मैं बेचने के लिए साइकिल पर लेकर जाने लगी. प्रत्येक सप्ताह थाना, अस्पताल, रेलवे स्टेशन, सभी जगहों पर 5-5 रुपये में बेचने लगी. लोग बहुत मजाक उड़ाते थे. फिर हमने अपनी टीम में से महिलाओं को अचार बेचने के लिए प्रशिक्षित करने लगे. क्योंकि यह घर का अचार है तो लोगों को अच्छा स्वाद लगने लगा और बिक्री शुरू हो गई. बाद में जीविका कार्यक्रम के तहत जुड़ गए.

दो कंपनियों के साथ एग्रीमेंट किया


वे बताती हैं कि आज दो कंपनियों के साथ हमारा एग्रीमेंट है. एक खादी ग्रामोद्योग विभाग से  और दूसरा बिहार सरकार के बिस्कोमान से प्रत्येक महीन 5 से 10 लाख रुपये की कमाई हो जाती है. हम आज भी हाथ से ही अचार बनाते हैं. इसमें गरीब और बुजुर्ग महिलाएं जुड़ी हुई हैं. इस समय 20 से 25 तरह के अचार बनाकर सप्लाई कर रहे हैं. 2019 में दिल्ली में इंडिया गेट पर भी शामिल हुए. उससे पहले सभी सरकारी आयोजन में अपनी स्टॅाल लगाकर बेचा करते थे.

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पद्मश्री कब मिला?


वे कहती हैं कि 11 मार्च 2019 को हमारे इसी काम के लिए पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया. बिहार सरकार ने भी भरपूर सहयोग दिया. अब हमारे पास हजारों में महिलाएं आकर प्रशिक्षण लेकर इसे व्यवसाय बना चुकी हैं और उनकी गरीबी अब दूर हो चुकी है.