हरियाणा कांग्रेस में पक रही अलग खिचड़ी, जानिए किसको मिलेगी प्रधानगी

हरियाणा कांग्रेस में इन दिनों रोज नई चर्चाएं जन्म ले रही हैं। राज्य में कांग्रेस में बदलाव के संकेत मिल रहे हैं। सोनिया गांधी से कई दिग्गजों की मुलाकात इसका इशारा करती है। पढ़ें हरियाणा की और भी रोचक खबरें...
 
 

HR Breaking News, चंडीगढ़ ब्यूरो, हरियाणा कांग्रेस में आजकल कुछ अलग खिचड़ी पक रही है। प्रदेश अध्यक्ष पद पर बदलाव की अटकलों के बीच हर दिन नई चर्चाएं जन्म ले रही हैं। कांग्रेस प्रभारी विवेक बंसल दावा करते रहे कि प्रदेश अध्यक्ष बदलने का शीर्ष स्तर पर कोई विचार नहीं है, लेकिन सोनिया गांधी से दिग्गजों की मुलाकातें कुछ और ही इशारे करती हैं।

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जिस तरह प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए आलाकमान के समक्ष पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला, विधायक कुलदीप बिश्नोई और किरण चौधरी के नाम प्रस्तुत किए गए हैं, उसे देखकर लग रहा कि जल्द ही कोई न कोई बदलाव जरूर होगा।


हरियाणा में संगठन नहीं खड़ा होने का खामियाजा पिछले दो लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भुगतते आ रहे कांग्रेसी इस पर एकमत जरूर हैं कि हर हाल में संगठन बनना चाहिए। प्रदेश अध्यक्षा कुमारी सैलजा भी पिछले दिनों सोनिया गांधी से मुलाकात में यह मुद्दा उठा चुकी हैं।


कुआं जाएगा प्यासे के पास

पुरानी कहावत है कि प्यासे को कुएं पर जाना पड़ेगा। मुखियाजी इस कहावत को उलटा करने में जुटे हैं। यानी कि कुआं प्यासे के पास आएगा और उसकी जरूरत पूरी करेगा। अब आप पूछोगे कि ऐसा कैसे होगा। तो जनाब इसका भी मनोहर मंत्र है। व्यवस्था परिवर्तन में परिवार पहचान पत्र खासा कारगर साबित होने वाला है।

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एक बार पोर्टल पर रजिस्टर्ड हुए नहीं कि सारे काम आसान हो जाएंगे। 18 साल का होते ही अपने आपका वोट बनेगा तो 58 साल पर पेंशन। रिहायश और जाति प्रमाणपत्र के लिए कहीं भटकने की जरूरत नहीं। यह सब काम पोर्टल के जरिये आसानी से हो जाएंगे,

जिनके लिए पहले कई दिन या फिर यू कहें कि महीनों धक्के खाने पड़ते थे। मुखियाजी कहते हैं कि सही मायने में आजादी अब आई है। वरना तो अंग्रेजों के समय में भी अधिकार मांगते थे और आजादी के बाद भी। अब ऐसा नहीं होगा।

 


पेंशन दे रही टेंशन

पंजाब में पूर्व विधायकों को सिर्फ एक पेंशन देने का नियम बनाने के बाद अब आम आदमी पार्टी हरियाणा में इस मुद्दे को भुनाने में जुटी है। आप की टोपी पहनने वाले पूर्व मंत्री निर्मल सिंह ने तीन कार्यकाल की पेंशन छोड़कर उन पूर्व विधायकों पर नैतिक दबाव बना दिया है जो चार से पांच कार्यकाल की पेंशन ले रहे।

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खासकर रसूखदार राजनीतिक परिवारों से जुड़े माननीयों पर। हालांकि पूर्व मंत्री निर्मल सिंह के कदम को राजनीतिक तराजू में भी तोला जा रहा है। मनोहर कैबिनेट में मंत्री जेपी दलाल के समक्ष एक सज्जन ने इसका जिक्र किया तो उन्होंने तपाक से कहा कि आखिर लंबे समय तक चार-चार पेंशन लेते रहे पूर्व मंत्री का जमीर आखिर अब क्यों जागा है। उन्हें भी इस बात का जवाब देना चाहिए। रही बात पेंशन की तो कई पूर्व विधायक ऐसे भी हैं जिनके लिए मेहमानों के चाय का खर्च उठाना भी वास्तव में मुश्किल हो जाता है।

 


मिट्टी में रची बसी पहलवानी

पहलवानी हरियाणा की मिट्टी में रची-बसी है। यहां के पहलवानों का डंका पूरी दुनिया में यूं ही नहीं बजता। पहलवानी के प्रति शौक और जुनून का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में जब किसी युवक का नाम न पता हो तो संबोधन की शुरुआत पहलवान शब्द से होती है। किसी गांव में अलसुबह चले जाओ तो अखाड़े में छोटे बच्चों से लेकर किशोर और युवा पसीना बहाते नजर आएंगे।


जाहिर है कि राष्ट्रमंडल खेलों से कुश्ती को बाहर करने का सबसे बड़ा झटका हरियाणवियों को लगा है। ओलिंपिक हो या राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों सहित अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं, हरियाणा के पहलवानों ने देश की झोली में सर्वाधिक पदक डाले हैं। खेल राज्यमंत्री संदीप सिंह कहते हैं कि राष्ट्रमंडल खेलों से कुश्ती को बाहर करने का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। वह खुद इस मुद्दे को उचित मंच पर उठाएंगे। राष्ट्रमंडल खेल संघ को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए।