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Delhi High Court : ससुराल वाले घर में बहू का कितना अधिकार, हाईकोर्ट ने दिया महत्वपूर्ण फैसला

Delhi High Court : आमतौर पर प्रोपर्टी से जुड़े नियमों और कानूनों को लेकर लोगों में जानकारी का अभाव होता है. इसी कड़ी में आज हम आपको अपनी इस खबर में सुप्रीम कोर्ट की ओर से आए एक फैसले के मुताबिक बता दें कि आखिर ससुराल वाले घर में बहू का कितना अधिकार होता है-

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Delhi High Court : ससुराल वाले घर में बहू का कितना अधिकार, हाईकोर्ट ने दिया महत्वपूर्ण फैसला

HR Breaking News, Digital Desk- (Delhi High Court) दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले में स्पष्ट किया कि अगर पत्नी रोजगार कर रही है, तो पति से अलग होने के बाद उसे ससुरालवालों के घर पर रहने का अधिकार (Right to live in in-laws' house) नहीं है। यह निर्णय ससुरालवालों के घर पर निवास के अधिकारों को लेकर पारिवारिक कानूनों की व्याख्या करता है और वित्तीय स्वतंत्रता के आधार पर अधिकारों का निर्धारण करता है।

जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि अगर पत्नी नौकरी करती है और इतनी असहाय नहीं है कि उसके सिर पर छत भी ना हो तो उसे घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (डीवी एक्ट) के तहत ससुराल से बेदखल किया जा सकता है।

कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि पति से अलग होने के बावजूद पत्नी ससुराल में रह रही है। रिपोर्ट के अनुसार, महिला एमबीए है और नौकरी कर रही है, इसलिए वह इतनी मजबूर नहीं है कि उसे अपने वैवाहिक घर में रहना पड़े। 

कोर्ट ने आगे कहा, घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act) की धारा 19 में बहू के वैवाहिक घर में रहने के अधिकार को मान्यता दी गई है, लेकिन इसमें भी दो शर्ते हैं। पहली बात यह कि उसे कानून के अनुसार ही बेदखल किया जा सकता है और दूसरी बात यह कि उसे या तो वैकल्पिक आवास दिया जाए या वैकल्पिक आवास का किराया दिया जाए।

'बुजुर्ग ससुर को घर से दूर करना सही नहीं'-

हालांकि इस मामले में कोर्ट ने पाया है कि पत्नी नौकरी करती है और असहाय भी नहीं है। दूसरी तरफ घर के मालिक, यानी बुजुर्ग ससुर को उनके बुढ़ापे में उनके घर से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। बता दें, इस मामले में पत्नी ने घरेलू हिंसा मामले में मजिस्ट्रेट और सेशन जज के फैसले को चुनौती दी थी। कोर्ट इन फैसलों को रद्द करने की मांग (demand for cancellation) वाली पत्नी की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। शादी के एक साल बाद ही पति-पत्नी के बीच झगड़ा शुरू हो गया था जिसके बाद पति और ससुराल वाले अपना घर छोड़ दूसरे घऱ में रहने लगे। पत्नी ने घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसके साथ क्रूरता की गई। उसने वैवाहिक घर में अपने निवास की सुरक्षा भी मांगी।

शुरुआत में मजिस्ट्रेट ने पत्नी की याचिका को स्वीकार करते हुए पति और उसके ससुरालवालों को पत्नी को उनके घर से बेदखल करने से रोक दिया। इसके अलावा पति से मिलने वाले 5 हजार रुपए के अंतरिम भरण पोषण की इजाजत भी दी। हालांकि बाद में ससुर की याचिका पर मजिस्ट्रेट ने इस आधार पर अपना फैसला वापस ले लिया कि पत्नी को रोजगार मिल गया है। इसके बाद पत्नी ने फैसले को सेशन कोर्ट में चुनौती दी। हालांकि वहां से भी पत्नी को कोई राहत नहीं मिली जिसके बाद उसने हाई कोर्ट (High court) का दरवाजा खटखटाया।

हाई कोर्ट (High court) ने 21 अक्टूबर को पत्नी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि उसके ससुर को घर से नहीं निकाला जा सकता। कोर्ट ने पत्नी को उसी कॉलोनी (colony) में किराए पर एक घर दिलाने की अनुमति दी। न्यायालय (court) ने स्पष्ट किया कि पत्नी बेघर नहीं हुई, क्योंकि मजिस्ट्रेट ने पति को निर्देश दिया था कि वह पत्नी के लिए उसी क्षेत्र में वैकल्पिक किराए का घर उपलब्ध कराए। इस प्रकार, कोर्ट ने न्याय सुनिश्चित किया।