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सास ससुर को High Court ने दिया तगड़ा झटका, बहू के पक्ष में सुनाया बड़ा फैसला

Delhi High Court News : सास ससुर और बहू के झगड़ों को लेकर आए दिन कोर्ट में नए-नए के सामने आते रहते हैं। आज की इस खबर के माध्यम से हम आपको बताने जा रहे हैं बहू के पक्ष में लिए गए दिल्ली हाई कोर्ट के एक अहम फैसले के बारे में जिससे सास ससुर को तगड़ा झटका लगा है। आइए खबर में जानते हैं दिल्ली हाई कोर्ट के इस महत्वपूर्ण फैसले के बारे में विस्तार से।
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सास ससुर को High Court ने दिया तगड़ा झटका, बहू के पक्ष में सुनाया बड़ा फैसला

HR Breaking News, Digital Desk - घरेलू झगड़ों से जुड़े नए-नए के कोर्ट में आते रहते हैं। हाल ही में पति-पत्नी और ससुराल के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने एक अहम टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act) के तहत महिला को ससुर के घर में रहने का हक है, भले ही वह वैवाहिक अधिकारों की बहाली (Restoration of marital rights)के लिए दाखिल पति की याचिका का विरोध कर रही है। 


मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि ससुराल में निवास पाने का अधिकार हिंदू विवाह अधिनियम के तहत उत्पन्न होने वाले किसी भी अधिकार से अलग है। इसी के साथ हाईकोर्ट ने महिला के सास-ससुर की उस दलील को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि जब बहू उनके बेटे के साथ रहने के लिए तैयार नहीं है तो उसे मकान में रहने का भी कोई अधिकार नहीं है।


ससुराल में निवास का हक अन्य अधिकारों से अलग


जस्टिटस ... ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दंपति की याचिका खारिज कर दी। दंपति ने याचिका में निचली अदालत के घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act)के तहत महिला को ससुराल के घर में रहने का अधिकार दिए जाने के आदेश को चुनौती दी थी। दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court News) ने कहा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत निवास का अधिकार, हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 9 (वैवाहिक अधिकारों का पालन) के तहत उत्पन्न होने वाले किसी भी अधिकार से अलग है।


दोनों पक्षों ने दाखिल कर कोर्ट में रखे हैं 60 मुकदमे


याचिकाकर्ता ने बताया था कि उनकी बहू ने विवाद के बाद सितंबर 2011 में अपना ससुराल छोड़ दिया था। याचिकाकर्ता ने कहा था कि दोनों पक्षों के बीच एक-दूसरे के खिलाफ 60 से अधिक दीवानी मुकदमे दायर किए गए हैं। इनमें से एक मामला महिला ने घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत दायर किया था और कार्यवाही के दौरान महिला ने संबंधित (property related law) संपत्ति में निवास के अधिकार का दावा किया था।


मामले में निचली अदालत ने महिला की मांग को स्वीकार करते हुए कहा था कि वह मकान में पहली मंजिल पर रहने (निवास करने) की हकदार है। इस आदेश को सेशन कोर्ट ने भी सही ठहराया। इसके खिलाफ सास-ससुर दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court Decision) ले गए, जहां उन्होंने कहा कि बहू ने साथ रहने से इनकार कर दिया है और वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए दाखिल याचिका का विरोध किया है। जब वह उनके बेटे के साथ रहने के लिए तैयार नहीं है तो उसे मकान में रहने का भी अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट (High Court Decision) ने इन दलीलों को खारिज कर दिया।