किसानों की दो टूक: न हम कोर्ट गए थे और न किसी कमेटी में शामिल होंगे, हमारी लड़ाई सरकार से है

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों के अमल पर मंगलवार को रोक लगा दी और किसानों से बातचीत के लिए 4 मेंबर्स की कमेटी बनाई है। पर, किसानों ने स्पष्ट कह दिया है कि यह कमेटी सरकार की पक्षधर है और इसके मेंबर्स कृषि कानूनों की वकालत करते रहे हैं। हम ऐसी कमेटी के सामने बातचीत के लिए नहीं जाएंगे। किसान नेता बलवीर सिंह राजेवाल ने कहा कि कानून वापसी तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा।
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किसान संगठनों ने 26 जनवरी के प्रोटेस्ट पर भी स्टैंड क्लियर कर दिया है। किसानों का कहना है कि 26 जनवरी को हम शांतिपूर्ण रैली निकालेंगे। इसमें हिंसा को लेकर कई अफवाहें फैली हैं। कोर्ट को भी इस मामले में गुमराह किया गया है। हम साफ कर दें कि हम शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं और किसी भी हिंसा के पक्ष में नहीं हैं। आंदोलन की दशा-दिशा केंद्र के साथ होने वाली अगली बातचीत के बाद तय की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किसानों के 4 ऐतराज
1. कानूनों के अमल पर रोक अंतरिम राहत है, पर ये हल नहीं है। किसान संगठन इस उपाय की मांग नहीं कर रहे थे, क्योंकि कानूनों को तो कभी भी लागू किया जा सकता है।
2. यह साफ है कि कई ताकतों ने कमेटी के गठन को लेकर कोर्ट को गुमराह किया है। कमेटी में शामिल लोग वो हैं, जो इन कानूनों को समर्थन करने के लिए जाने जाते हैं और लगातार इन कानूनों की वकालत करते रहे हैं। वो यह लिखते रहे हैं कि ये कानून किसानों के लिए किस तरह फायदेमंद हैं।
3. ये कृषि कानून कार्पोरेट्स को खेती और मंडियों पर कंट्रोल करने का रास्ता बनाएंगे। इन कानूनों से किसानों पर कर्ज बढ़ेगा, उपज के दाम कम होंगे, किसानों का घाटा बढ़ेगा, सरकार द्वारा खरीदी कम होगी, खाद्यान्न के दाम बढ़ेंगे, किसानों की खुदकुशी और भूख से मौतें बढ़ेंगी। कर्ज के कारण किसानों को अपनी जमीनों से बेदखल होना पड़ेगा। सरकार ने लोगों और अदालत, दोनों से इन कानूनों के सख्त पहलुओं को छिपाया है।
4. किसान सरकार से बातचीत करना चाहते हैं, वो सुप्रीम कोर्ट से बातचीत नहीं करना चाहते हैं। किसान सुप्रीम कोर्ट में खुद को रिप्रेजेंट नहीं कर सकते हैं। इसलिए हम इस पर कोई कमेंट नहीं कर रहे हैं और न ही इसका कोई विरोध कर रहे हैं।
48 दिन के आंदोलन में 57 की मौत, आज भी एक खुदकुशी
किसान आंदोलन के 48वें दिन पंजाब के फिरोजपुर में बाबा नसीब सिंह मान ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। वे 20 दिसंबर को प्रदर्शन में शामिल हुए थे, तभी कहा था कि किसानों के मुद्दे का हल नहीं निकला तो जान दे देंगे। बताया जा रहा है कि मान का भाई खालिस्तान आंदोलन से जुड़ा हुआ था। किसान आंदोलन में अलग-अलग वजहों से अब-तक 57 लोगों की मौत हो चुकी। इनमें से कुछ ने सुसाइड कर लिया, कुछ लोगों को हार्ट अटैक आया था। कई लोगों की जान बीमार होने की वजह से चली गई।