
सावन के महीने में कांवर यात्रा करने वाले यात्रियों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जल ले जाते समय अगर उन्हें यह पेड़ दिख जाए तो उसके पास से नहीं गुजरना चाहिए, क्योंकि अगर आप इस पेड़ के नीचे से गुजरेंगे तो आपकी कांवर टूट सकती है। इससे आपकी पूजा अधूरी रह जाएगी.
सावन में भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए कांवर यात्रा शुरू हो गई है। हिंदू धर्म में कांवर यात्रा को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं हैं। इनके बीच ऐसी मान्यता है कि जब गूलर के पेड़ के नीचे से कांवर निकाली जाती है तो वह बिखर जाती है।
माना जाता है कि गूलर के पेड़ का संबंध यक्षराज कुबेर से भी है और कुबेर भगवान शिव के मित्र हैं। यही कारण है कि गूलर के पेड़ का सीधा संबंध भगवान शिव से माना जाता है। भगवान शिव की पूजा में गूलर के पेड़ का महत्व बेलपत्र के पेड़ के समान ही है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार गूलर के फल में असंख्य जीव-जंतु होते हैं। ये फल अक्सर पेड़ से टूटकर जमीन पर गिर जाते हैं। ऐसे में अगर पेड़ के नीचे से गुजरते समय किसी कावड़िए का पैर इस फल पर पड़ जाए तो उन जीवों की मौत हो सकती है। ऐसे में कावंड़िए पर हत्या का पाप लगता है
कांवर यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार का नशा, शराब, मांस और मसालेदार भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। और बिना स्नान किये कावड़ को नहीं छूना चाहिए। व्यक्ति को अपनी कावड़ को चमड़े से स्पर्श नहीं करने देना चाहिए। व्यक्ति को किसी भी प्रकार के वाहन का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
यदि गूलर के पेड़ के नीचे से निकले हैं और कांवड़ खंडित हो जाए तो घबराए नहीं. खंडित हुई कांवड़ को शुद्ध करने के लिए अपनी कावड़ के साथ पवित्र स्थान पर बैठकर 108 बार नम: शिवाय:, नम: शिवाय: का जाप करते हुए भगवान शिव और गुल्लर कंपेड को प्रणाम करें. इससे खंडित हुई कावड़ शुद्ध हो जाती है