कृषि अधिकारियों की बढ़ी चिंता, उत्पादक क्षमता कम होने से फसलों की पैदावार में गिरावट
HR Breaking News, हिसार ब्यूरो, दिनों दिन भूमि की उत्पादक क्षमता कम होने से कृषि विभाग के अधिकारियों की चिंता बढ़ गई है। बुधवार को चाैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में कृषि अधिकारियों की दो दिवसीय कार्यशाला (खरीफ) आयोजित हुई।
जिसमें उत्पादक क्षमता कम होने पर मंथन किया गया। कार्यशाला में कुलपति प्रो बीआर कांबोज मुख्य अतिथि रहे। उन्होंने बताया कि फसल उत्पादन बढ़ाने के चलते प्राकृतिक संसाधन दिन प्रतिदिन नष्ट हो रहे हैं।
कृषि के लिए जल के अंधाधुंध दोहन से जहां भृ-जल स्तर निंरतर घट रहा है वहां भूमि की उर्वरा शक्ति भी क्षीण हो रही है। इसलिए किसानों को ऐसी कृषि प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराने की आवश्यकता है जिससे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के साथ किसानों को अधिक आर्थिक लाभ हो सके।
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पैदावार स्थिर या कहीं घट रही
प्रो कांबोज ने बताया कि देश में हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप खाद्यान्न उत्पादन में आशतीत वृद्धि हुई है। खाद्यान्न उत्पादन जो 1966-67 में मात्र 2.59 मिट्रिक टन था वह बढक़र 36.77 मिट्रिक टन का आंकड़ा छू चुका है। परन्तु सघन खेती से भूमि की उत्पादन शक्ति नष्ट होने के कारण ज्यादातर फसलों की पैदावार में या तो स्थिरता आ चुकी है या गिरावट होने लगी है जो निरन्तर बढ़ रही जनसंख्या को खाद्य सुरक्षा प्रादन करने के लिए चुनौती पैदा कर रही है।
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विशेष रणनीति तैयार करने की जरूरत
उन्होंने कहा यह उपयुक्त समय है जब किसानों को उपरोक्त स्थिति के लिए जिम्मेवार धान-गेंहू फसल चक्र बारे पुन: विचार करने की जरूरत है। फसल विविधिकरण, समन्वित खेती, अनुबंध खेती, प्राकृतिक खेती या जैविक खेती ऐसे विकल्प है जो किसानों की आमदनी दोगुणा करने के लिए उपयोगी साबित हो सकते है।
वर्तमान समय में बदलते मौसम पर भी चिंता व्यक्त करने की आवश्यकता है। इससे कृषि उत्पादन बहुत प्रभावित हो रहा है। इस स्थिति से निपटने के लिए कृषि विज्ञानियों को विशेष रणनीति तैयार करने की जरूरत है।
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प्राकृतिक खेती के लिए 2500 एकड़ भूमि पर प्रदर्शन होंगे
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, हरियाणा के अतिरिक्त कृषि निदेशक डॉ. रोहताश सिंह ने कृषि विभाग की ओर से खरीफ फसलों के लिए तैयार की गई विस्तृत रणनीति की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए प्रदेश में फसल विविधिकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है।
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इसी प्रकार धान की पराली को जलाने की बजाए इसका प्रबंधन करने वाले किसानों को एक हजार रूपए प्रति एकड़ सहायता राशि के रूप में प्रदान किए जा रहे है। उन्होंने कहा इस वर्ष प्रदेश में प्राकृतिक खेती को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से 2500 एकड़ भूमि में प्रदर्शन लगाए जाएंगे।