Base and Top Mode Car : कंफ्यूज हैं बेस और टॉप वेरिएंट में , हम दूर करते है आपकी कन्फूशन
HR Breaking News, New Delhi : फेस्टिवल सीजन है और बड़ी संख्या में लोग इस दौरान कार खरीदने का प्लान करते हैं. अपनी पसंद की गाड़ी लेने के लिए जब आप शोरूम पहुंचते हैं तो सबसे बड़ा सवाल जो सामने आता है वो होता है कि आखिर कार का बेस वेरिएंट खरीदें या फिर टॉप वेरिएंट. इस दौरान कीमत का फर्क बेस वेरिएंट की तरफ झुकाता है तो फीचर्स की भरमार आपको टॉप वेरिएंट लेने पर मजबूर करने लगती है. लेकिन इस कंफ्यूजन को दूर करने की जरूरत है. क्योंकि कंफ्यूजन में लिए गए निर्णय से फायदा तो कभी नहीं होता है.
दरअसल टॉप वेरिएंट और बेस वेरिएंट में हर कंपनी कुछ अलग तरह से अपनी गाड़ियों को शोकेस करती है. कहीं पर ये फर्क फीचर्स का या ये कहें कि कॉस्मेटिक होता है, तो कहीं पर ये फर्क इंजन से लेकर परफॉर्मेंस तक का होता है. ऐसे में आइये आपको बताते हैं कि टॉप वेरिएंट या बेस वेरिएंट में से अपनी जरूरत को कैसे समझें|
कॉस्मेटिक फर्क
आप किसी गाड़ी को पसंद करते हैं और उसके टॉप व बेस वेरिएंट में केवल कॉस्मेटिक फर्क है, या फिर कुछ फीचर्स का फर्क है. साथ ही आपका बजट सीमित है तो ऐसे में बेस वेरिएंट या मिडिल वेरिएंट की गाड़ी आपके लिए उपयुक्त रहेगी. क्योंकि बेस वेरिएंट और टॉप वेरिएंट में 1 लाख रुपये से लेकर 4 लाख तक का फर्क देखा जा सकता है. हालांकि ऐसा नहीं है कि टॉप वेरिएंट में जो फीचर्स दिए जाते हैं वो काम के नहीं होते या केवल वो कार की कीमत को बढ़ाते हैं. टॉप वेरिएंट के फीचर्स बड़े काम के होते हैं लेकिन सीमित बजट में गाड़ी खरीद के दौरान आपको देखना है कि आपकी जेब पर क्या भार आएगा.
इंजन का फर्क
टॉप वेरिएंट और बेस वेरिएंट में कुछ कंपनी अपनी कारों की इंजन पावर और परफॉर्मेंस में भी फर्क रखती हैं. ये फर्क इंजन कैपेसिटी से लेकर टेक्नोलॉजी तक का हो सकता है. इस दौरान आपको अपनी ड्राइविंग नीड्स को देखना है. यदि आप एक सामान्य कार चाहते हैं और आपको परफॉर्मेंस से ज्यादा सरोकार नहीं है तो आपको बेस वेरिएंट लेना चाहिए. लेकिन यदि आपका बजट अच्छा है तो आपको टॉप वेरिएंट के लिए जाना चाहिए. क्योंकि ऐसी कारों के टॉप वेरिएंट परफॉर्मेंस के साथ ही लेटेस्ट टेक्नोलॉजी से भी लैस होते हैं जो आपको माइलेज से लेकर कई अन्य बातों का फायदा करवाते हैं.
बेस लेकर वेंडर से न बदलवाएं
कुछ लोग बेस वेरिएंट लेने के बाद एक्सेसरीज वेंडर से कम दामों में वैसी ही एक्सेसरी कार में फिट करवाते हैं जैसी कंपनी ऑफर कर रही होती है. हालांकि ये काफी सस्ता पड़ता है लेकिन ये आपको बड़ा नुकसान करवाता है. इसका कारण ये है कि यदि आपने कंपनी से न करवाकर किसी लोकल वेंडर से कार में एक्सेसरी फिट करवाई हैं तो गाड़ी की वारंटी वॉइड हो जाती है. ऐसे में आपकी गाड़ी में कुछ भी तकनीकी समस्या होने पर कंपनी उसकी जिम्मेदारी नहीं लेती है.
क्या है कारण
इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि आप गाड़ी में कोई भी एक्सेसरी, खासकर इलेक्ट्रिक यदि फिट करवाते हैं तो उसके लिए कार की वायरिंग को छेड़ना पड़ता है. ऐसे में शॉर्ट होने के चलते कार के कई सॉफ्टवेयर मालफंक्शन कर सकते हैं. कुछ वेंडर्स कपलर फिटिंग का दावा करते हैं और तार को काटने की बात से इनकार करते हैं. लेकिन ये भी वॉरंटी को खत्म करता है क्योंकि उनके कपलर कंपनी नॉर्म्स में नहीं आते हैं.