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Agro Tourism Center अफसर ने गांव को बना दिया टूरिस्ट स्पॉट, अब यहां होती है विदेशों वाली खेती

Agro Tourism Center किसानों को आर्थिक रुप से मजबूत करने और आत्मनिर्भर बनाने को लेकर एक अफसर द्वारा अच्छी पहल की शुरूआत करते हुए गांव को ही टूरिज्म सेंटर बना दिया गया है। अफसर के इस कदम ने गांव को एग्रो टूरिज्म सैंटर बना दिया है।
 
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HR Breaking News, डिजिटल डेस्क नई दिल्ली, उत्तराखंड का घाटी वाला इलाका सुन्दर वादियों से भरा है। लेकिन यहां के गावों में बसे लोग अपनी कमाई के लिए सिर्फ खेती, पशुपालन और टूरिज्म पर ही निर्भर हैं। इसलिए ज़रूरी है कि पहाड़ी भागों में पारम्परिक खेती के अलावा, खेती की बेहतर सुविधा और एग्रो टूरिज्म को विकसित किया जाए। इसी दिशा में काम करते हुए एक सरकारी अफसर ने किसानों को किवी फार्मिंग सिखाने का फैसला किया। 

 

अपनी सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी करते हुए ही उधम सिंह नगर (उत्तराखंड) में तैनात डिप्टी कमिश्नर (GST), रजनीश सच्चिदानंद यशवस्थी ने साल 2009 में नौकरी लगने के साथ-साथ, अपने गांव और पौड़ी गढ़वाल के कई और किसानों का एक समूह बनाकर खेती को विकसित करना शुरू किया। आज वह बागेश्वर जिले के भी कई किसानों को कीवी की खेती से जोड़ चुके हैं। साथ ही उन्होंने पिछले साल ही अपने खेती के मॉडल को सस्टेनेबल बनाने के लिए एक एग्रो टूरिज्म की शुरुआत भी की है। 

 

रजनीश ने अणां गांव में ‘अनत्ता होमस्टे’ नाम का एक स्टे बनवाया है, जिसे किसानों के समूह और गांववालों की मदद से चलाया जाता है। रजनीश कहते हैं, “यह सिर्फ एक होटल नहीं है, बल्कि इसके ज़रिए हम गांववालों को रोज़गार देने की कोशिश भी कर रहे हैं। यहां मिलने वाली ज्यादातर चीज़ें यहां के स्थानीय किसानों ने ही उगाई हैं। वहीं इस मिट्टी के घर को भी किसी बड़े आर्किटेक्ट ने नहीं, बल्कि गांववालों और हमने मिलकर बनाया है।” 


पहाड़ी लोगों के लिए कुछ करने की उम्मीद से शुरू की किवी फार्मिंग
दरअसल रजनीश, पौड़ी गढ़वाल के जिस गांव से आते हैं, वहां ज्यादातर लोग चरवाहा या किसान ही हैं। रजनीश कहते हैं कि उनके दादा-दादी, माता-पिता हम सभी भेड़ें चराने जाते थे। साथ ही वह मिर्ची की खेती भी करते थे। लेकिन रजनीश को पढ़ाई के लिए देहरादून भेज दिया गया, जिसके बाद उन्होंने दिल्ली में नौकरी की और सिविल सेवा की तैयारी करने लगे।

रजनीश बताते हैं, “साल 2009 में जब मेरी जॉइनिंग उत्तराखंड में हुई, तब मैंने फैसला कर लिया कि पहाड़ में बसनेवाले लोगों के लिए मुझे कुछ करना है।”

इसके बाद, उन्होंने छोटे किसानों के ग्रुप बनाकर खेती की नई तकनीकों को इस इलाके में लाना शुरू किया। उन्होंने विशेषकर कीवी की खेती पर ज्यादा ध्यान दिया। उन्होंने साल 2013 में सबसे पहले SAHARA (Sustainable Advancement of  Hilly Rural Area) नाम से कीवी की खेती के लिए किसानों का एक ग्रुप बनाया, जिससे घाटी के 500 किसान जुड़े थे।  


कीवी की बेहतर खेती के तरीके जानने के लिए, वह हिमाचल के कई किसानों से मिले। उन्होंने कई कृषि यूनिवर्सिटीज़ का दौरा किया। साथ ही उन्होंने न्यूजीलैंड में रहनेवाले अपने एक मित्र से सम्पर्क किया, जो बागवानी से जुड़ा था।

रजनीश कहते हैं, “हमने कई किसानों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम भी शुरू किया, जिसके लिए हमने बागेश्वर के एक गांव में मेरे एक मित्र की ज़मीन पर काम करना शुरू किया। मुझे पूरी उम्मीद है कि आने वाले समय में यह जिला कीवी के उत्पादन में काफी मशहूर हो जाएगा।”

40 साल पुराने घर को बदला होमस्टे में, किसानों को सिखाई किवी फार्मिंग
रजनीश ने बताया कि यहां साल 2024 में 200 टन से ज्यादा कीवी के उत्पादन की उम्मीद है। अणां गांव में जहां उन्होंने खेती की शुरुआत की थी, वह एक बेहद ही छोटा गांव था। उन्होंने स्थानीय किसानों की मदद से साल 2014 में यहां कीवी के पौधे लगाना शुरू किया और समय-समय पर वहां जाते रहते थे।  


वह बताते हैं, “मैं गांव में एक ऐसे घर की तलाश में था, जहां मैं कुछ दिन बिता सकूँ और खेती कर सकूँ। तभी किसी ने मुझे 40 साल से खाली पड़े इस घर की जानकारी दी।” रजनीश ने उस घर को एक होमस्टे में बदलने का फैसला किया, ताकि यहां उनके साथ दूसरे लोग भी आकर रह सकें । 

रजनीश ने बताया कि उन्होंने खुद ही गांववालों के साथ मिलकर इस घर को नया लुक दिया है। यहां ज़रूरत का सारा सामान गांव से ही आता है और इसकी देखभाल की जिम्मेदारी भी गांव के लोगों को ही दी गई है।  

उत्तराखंड की लोक कथा बयां करता है मिट्टी का यह घर 
रजनीश कहते हैं, “यह चार कमरों वाला घर है, जिसमें कुछ बदलाव के साथ हमने एक छोटा सा होम स्टे तैयार करवाया।” उन्होंने एक मीटिंग एरिया और हर कमरे के साथ बाथरूम बनवाया और अंदर बाहर दोनों ओर से इसमें मिट्टी का प्लास्टर लगवाया। 

मिट्टी की दीवारों पर उत्तराखंड की ट्रेडिशनल पेंटिंग बनाई गई हैं। इसके अलावा,  हर कमरे में उन्होंने एक लाइब्रेरी भी बनाई है, जिसमें मेहमानों को उत्तराखंड का साहित्य और संस्कृति पढ़ने को मिलता है।  इसके साथ-साथ उन्होंने यहां कुछ पारम्परिक बर्तन और फर्नीचर भी रखे हैं।

इन चार कमरों के साथ उन्होंने कुछ टेंट हाउस भी बनवाए हैं। यहां आए मेहमानों को ऑर्गेनिक खाना परोसने के लिए एक किचन गार्डन भी बनाया गया है। रजनीश को उम्मीद है कि किवी फार्मिंग के चलते कुछ सालों में यहां आने वाले मेहमान ताज़ी किवी का भी आनंद ले सकेंगे।

वह कहते हैं, “हम पहले ही मेहमानों को बता देते हैं कि आपको यहां कोई फैंसी खाना नहीं मिलेगा, जो गांव से या खेतों से ताज़ा मिलता है, होमस्टे में वही बनता है।”