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Bank Loan: लोन न भरने पर रिकवरी एजेंट करें परेशान तो ऐसे करें उसका समाधान

कई बार बैंकों के नाम पर रिकवरी एजेंट (recovery agent) लोन लेने वालों को परेशान करते हैं और धमकाते हैं। लोन की वसूली के लिए किसी ग्राहक को सार्वजनिक ढंग से लज्जित नहीं कर सकते, ग्राहक के परिवार, दोस्त या नाते-रिश्तेदार की निजी जिंदगी में दखल नहीं दे सकते या उनको फोन नहीं कर सकते. आइये जानते है इसके बारे में पूरी जानकारी।
 
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Bank Loan: लोन न भरने पर रिकवरी एजेंट करें परेशान तो ऐसे करें उसका समाधान

HR BREAKING NEWS (ब्यूरो)। कई बार बैंकों के नाम पर रिकवरी एजेंट (recovery agent) लोन लेने वालों को परेशान करते हैं और धमकाते हैं। ऐसी स्थिति तब आती है जब लोन लेने वाले किसी वजह से वक्त पर किस्त नहीं भर पाते। ऐसी घटनाएं भी सामने आती हैं जब रिकवरी एजेंट लोन लेने वाले की गाड़ी भी उठा लेते हैं। रिकवरी एजेंट (recovery agent) जब कानून अपने हाथ में लें तो हम क्या कर सकते हैं, आइए जानते हैं ऐसी स्थिति में आपके सामने क्या-क्या विकल्प होते हैं।


ग्राहक के पास क्या है रास्ता?


दिल्ली हाई कोर्ट के वकील नवीन शर्मा बताते हैं कि ऐसे मामले आते हैं जब बैंक, फाइनैंस कंपनी या लोन देनदार समय पर किस्त न मिलने पर ग्राहक या उसके रिश्तेदार को धमकाने लगते हैं। उनके पास रिकवरी एजेंट के फोन आते हैं, मानसिक प्रताड़ना या धमकी से गुजरना पड़ता है। ऐसी स्थिति में ग्राहक यानी लोन लेनदार सीधे पुलिस में शिकायत कर सकता है, जिसके बाद रिकवरी एजेंट के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है।

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सिविल कोर्ट के आदेश पर होती है कार्रवाई


ऐडवोकेट शर्मा बताते हैं कि लोन गाड़ी के लिए हो या फिर क्रेडिट कार्ड पर लिया गया हो। लोन लेने से पहले एग्रीमेंट पर दस्तखत करते वक्त ग्राहक को यह सुनिश्चित करना चाहिए किस एग्रीमेंट की सभी शर्तें पढ़ ली गई हैं। पढ़कर ही दस्तखत करें या फिर किसी कानूनी जानकार से सलाह ले लें। जब लोन लिया जाता है तो पेमेंट के लिए जिस अकाउंट की डिटेल बैंक दी जाती है, यह सुनिश्चित करें कि उस अकाउंट में तय तारीख पर किस्त के पैसे रहें।


जब बैंक आदि से लोन लिया जाता है तो बैंक और ग्राहक के बीच आर्बिट्रेशन ऐक्ट के तहत भी करार होता है कि उसकी धारा-9 के तहत किसी विवाद की स्थिति में मामला आर्बिट्रेटर के सामने जाएगा। ऐसी स्थिति में अगर किसी की किस्त का पेमेंट नहीं होता है तो बैंक या लोन देनदार संस्थान को अधिकार है कि वह आर्बिट्रेशन में मामला ले जाए और कॉम्पिटेंट अथॉरिटी के आदेश के तहत कानूनी कार्रवाई करे। आदेश के मुताबिक वह पुलिस की मदद से कार आदि उठा सकते हैं। साथ ही भुगतान न होने की स्थिति में बैंक व वित्तीय संस्थान रिकवरी के लिए सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

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आरबीआई की गाइडलाइंस भी अहम


सीनियर ऐडवोकेट के.के. मनन ने बताया कि बैंक और रिकवरी एजेंट के लिए आरबीआई ने गाइडलाइंस भी जारी कर रखी हैं। इसके तहत अगर कोई भी बैंक किसी रिकवरी एजेंट की नियुक्ति करता है तो उसके पीछे मकसद यह होता है कि वह ग्राहक को किस्त देने के लिए मनाए। लेकिन किसी ग्राहक को फोन पर या सामने आकर धमकी नहीं दे सकते। इसके अलावा वह एजेंट ग्राहक के रिश्तेदार या दोस्त या पड़ोसी को भी फोन नहीं कर सकता। अगर वह धमकाए तो शिकायत संबंधित थाने में या फिर आरबीआई में की जा सकती है।


जबरन गाड़ी उठाए तो क्या करें?


ऐडवोकेट मनन ने बताया कि जब भी कोई लोन दिया जाता है तो उसके लिए एग्रीमेंट व शर्त होती है। उसके तहत नॉन पेमेंट की स्थिति में कानूनी रास्ते बनाए गए हैं। कोर्ट का आदेश होगा तो वाहन या फिर मकान ही क्यों न हों उसका पजेशन बैंक ले सकता है। फिर उसे निलाम कर सकता है। लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि कोई एजेंट आकर गाड़ी उठा ले जाए।

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अगर किसी ने किराये पर घर लिया है तो किराया न देने पर उसे घर से जबरन नहीं निकाला जाता बल्कि कानून के तहत की किरायेदार से मकान खाली कराया जाता है। ठीक उसी तरह लोन पर कोई वाहन या मकान है तो उसे कोर्ट या कॉम्पिटेंट अथॉरिटी के आदेश के तहत ही कब्जा लिया जा सकता है। कोई खुद को रिकवरी एजेंट बताकर धमकाता है या फिर प्रताड़ित करता है तो उसके खिलाफ जबरन वसूली, धमकी और वाहन बिना बताए ले जाने पर चोरी तक का केस दर्ज हो सकता है।


पेमेंट के बाद नो ड्यूज लेना जरूरी


कानूनी जानकार करण सिंह बताते हैं कि नियम के मुताबिक बैंक जिन्हें रिकवरी एजेंट बनाते हैं उनके बारे में जानकारी ग्राहक को भी दी जानी चाहिए। साथ ही रिकवरी एजेंट के फोन नंबर आदि की डिटेल भी ग्राहक को दी जाती है। जिससे उस नंबर पर ग्राहक बात कर सके। रिकवरी के सिलसिले में एजेंट ग्राहक के बताए समय और स्थान पर ही आ सकता है।

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साथ ही तय समय सीमा में ही वह फोन कर सकता है। रिकवरी एजेंट को अपने साथ आईकार्ड और अथॉरिटी लेटर लाना होता है। अगर एजेंट को पेमेंट करने की बात हो तो भी ग्राहक को ऑनलाइन या फिर चेक से पेमेंट करनी चाहिए। साथ ही अगर किसी बैंक या फाइनैंस संस्थान में लोन अमाउंट चुका दिया गया हो तो उसका नो ड्यूज क्लियरेंस सर्टिफिकेट जरूर लें।