home page

Disputed Land - सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन पर सुनाया फैसला, 90 साल से चल रहा था केस

Supreme Court Decision : विवादित जमीन को लेकर सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा फैसला सामने आ रहा है। विवादित जमीन का ये केस 90 साल से चल रहा था। आइए ऐसे में नीचे खबर में जानते है इस मामले पर क्या रहा सुप्रीम कोर्ट का फैसला। 

 | 

HR Breaking News, Digital Desk- सुप्रीम कोर्ट ने करीब 100 साल पुराने एक पारिवारिक संपत्ति विवाद का बुधवार को निपटारा कर दिया। यह विवाद उत्तर प्रदेश के तीन भाइयों सीताराम, रामेसर और जागेसर से जुड़ा हुआ है और जमीन के बंटवारे को लेकर जो 1928 से चला आ रहा था।

गजाघर मिश्र के तीन बेटों में से सीताराम की कोई संतान नहीं है, जबकि रामेसर का एक बेटा है भागी ती। वहीं, जागेसर के तीन बेटे वासदेओ, सरजू और शानू है। 

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर लगी मुहर-


जस्टिस हेमंत गुफ और जस्टिस वी रामासुब्रमणियन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए चकबंदी के उपनिदेशक के फैसले पर मुहर लगा दी। उपनिदेशक ने परिवार के की दो शाखाओं रामेसर और जागेसर में भूमि का स्वामित्व बराबर हिस्सों में बांट दिया।

पीठ ने कहा कि जागेसर का बंशज सीताराम की एक बड़े तीन हिस्से का स्वामी होगा, बशर्ते यह स्थापित हो जाए कि रामेसर की मौत सीताराम से पहले ही हो चुकी है और बंटवारे का मुंह सिविल कोर्ट में नहीं, बल्कि चकबंदी प्राधिकरण के समक्ष ही उठाया गया हो। 

मौत की तारीकों का प्रमाण नहीं, जमीन तीनों भाईयों में  बांटने का फैसला-


पीठ ने कहा कि इस मामले में यह कहना ठीक नहीं है कि चकबंदी अधिकारी ने सिविल कोर्ट के फैसले के पार जाकर कोई फैसला लिया। पीठ ने पाया कि क्योंकि मौत की तारीखों के कोई प्रमाण नहीं हैं, चकबंदी के उपनिदेशक ने सीताराम के एक बटे तीन हिस्से को समेसर और जागेसर के वंशजों को बराबर बराबर बांटने का फैसला सुनाया।

इसलिए उपनिदेशक के फैसले को बरकार रखने का हाईकोर्ट फैसला सही था और हमें इसमें दखल देने का कोई कारण नजर नहीं आता। अतः इस अपील को खारिज किया जाता है।

दरअसल, भगौती ने 1928 में संपत्ति के बंटवारे के लिए याचिका दाखिल की थी। जब अदालत के अधिकार क्षेत्र को लेकर आपत्ति दर्ज की गई तो शिकायत को उचित कोर्ट एडिशनल सिविल कोर्ट के पास भेज दिया गया।

पीठ ने कहा कि गजाधर मिश्र के तीन में से दो बेटे सीताराम और रामेसर की मौत डिक्री मिलने के बाद हुई, लेकिन इसकी ठीकठीक तारीखों का उल्लेख नहीं है।