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यदि Tata न करता ये काम तो हम सम्राट अशोक के इस खजाने को न देख पाते

Tata Group Discovered Ashoka: क्या आपको पता है कि आज लोग मौर्य वंश के शासक सम्राट अशोक को ‘अशोक महान’ के नाम से जानते हैं उसका श्रेय भी टाटा ग्रुप को ही जाता है। जानिए इसके बारे में पूरी जानकारी..

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HR Breaking News, New Delhi: टाटा ग्रुप के बारे में भला कौन नहीं जानता। नमक से लेकर हवाई जहाज तक आज हर जगह पर टाटा का डंका बजता है। टाटा ट्रस्ट अपने भलाई कार्यों के लिए भी जाना जाता है। कैंसर मरीजों के लिए अस्पताल से लेकर टाटा के हिस्से मे इतने भलाई कार्य हैं, जिनकी गिनती करने लग जाओ, वे भी कम है। क्या आपको पता है कि आज लोग मौर्य वंश के शासक सम्राट अशोक को ‘अशोक महान’ के नाम से जानते हैं उसका श्रेय भी टाटा ग्रुप को ही जाता है।  

 

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इस बात को 100 साल से भी ज्यादा हो चुके हैं, जब टाटा समूह ने दुनिया को मौर्य वंश के गौरवशाली इतिहास से मिलाने का महान काम किया। इसमें टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा के छोटे बेटे सर रतनजी टाटा का बहुत बड़ा योगदान था। अपने पिता के निधन के बाद रतनजी टाटा ने ही कंपनी की बागडोर संभाली। आजतक की एक स्टोरी के अनुसार Tata Stories: 40 Timeless Tales to Inspire You किताब में इस पूरी कहानी के बारे में बताया गया है। 

Sir Ratanji Tata


दरअसल, उन दिनों भारत में लंबे समय से मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र और आधुनिक पटना के बीच संबंध स्थापित करने के प्रयास किए जा रहे थे। साल 1900 से पहले इसे पाटलिपुत्र की खोज के लिए आसपास के क्षेत्रों में थोड़ी बहुत खुदाई की गई लेकिन इससे कुछ खास सफलता नहीं मिली। 1903 तक ये सब ब्रिटिश सरकार के सहयोग से हो रहा था लेकिन इसके बाद सरकार ने पाटलिपुत्र की खोज के लिए और राशि देने से मना कर दिया। 

सर रतनजी टाटा ने उठाया था बीड़ा 

इसके बाद साल 1912-13 में पाटलिपुत्र को खोजने का जिम्मा सर रतनजी टाटा ने उठाया। पुरातत्व महानिदेशक से राय-विचार करने के बाद। रतनजी टाटा ने ये वादा किया कि वह इस खोज के लिए हर साल 20,000 रुपये की सहयोग राशि देंगे। उन्होंने ये भी कहा कि वह ये सहयोग राशि तब तक देंगे जब तक ये खोज पूरी नहीं हो जाती। उनके इसी सहयोग के कारण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को पाटलिपुत्र की खोज करने में मदद मिली। 

इसके बाद पुरातत्वविद  DB Spooner ने 1912-13 की सर्दियों के दौरान इस खोज को शुरू किया। सर रतनजी टाटा ने अपने देहांत तक इस खोज के लिए 75,000 रुपये का योगदान दिया। 1918 में उनका निधन हो गया। उनके इसी योगदान से आज देश सम्राट अशोक के वैभव से परिचित है। 

स्पूनर के नेतृत्व में की गई इस खुदाई की शुरुआत पटना के कुमराहार से हुई। सबसे पहले इस खुदाई में 10 फुट जमीन के अंदर से ईंटों की एक पुरानी दीवार मिली। 7 फरवरी 1913 को एक बड़ी सफलता तब हाथ लगी जब खुदाई में अशोक के सिंहासन कक्ष के खंभे खुदाई में मिले। सम्राट अशोक के इस दरबार की क्या शोभा रही होगी।

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कुमराहार पर खुदाई- ASI

 इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि खुदाई में दरबार के 100 स्तंभ मिले थे। इस तरह खुदाई से कई सिक्के, पट्टिकाएं और टेराकोटा की मूर्तियां बरामद की गईं। और अगले चार साल में पाटलिपुत्र का इतिहास सामने आता रहा।  इस खोज के लिए Sir Ratanji Tata ने कुल 75,000 रुपये का योगदान दिया। हालांकि 1918 में  Sir Ratanji Tata का देहांत हो गया, लेकिन उनके इस योगदान से सम्रा शोक के वैभव को ये देश देख पाया।