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Delhi High Court : लोन रिकवरी मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी, लोन नहीं भर पाने वालों का राहत

Delhi High Court : दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक महत्तवपूर्ण फैसले में ये स्पष्ट किया कि धोखाधड़ी या पैसों की हेराफेरी के आरोप के बिना बैंक लोन रिकवरी के लिए लुक आउट सर्कुलर (LOC) जारी नहीं कर सकते.... कोर्ट की ओर से आए इस फैसले को विस्तार से जानने के लिए इस खबर को पूरा पढ़ लें-

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Delhi High Court : लोन रिकवरी मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी, लोन नहीं भर पाने वालों का राहत

HR Breaking News, Digital Desk- (Delhi High Court) दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धोखाधड़ी या पैसों की हेराफेरी के आरोप के बिना बैंक लोन रिकवरी के लिए लुक आउट सर्कुलर (LOC) जारी नहीं कर सकते. कोर्ट ने एक कंपनी के पूर्व निदेशक के खिलाफ जारी एलओसी को रद्द कर दिया. वह एक ऐसे लोन के लिए गारंटर थे, जिसे कंपनी चुका नहीं पाई थी.

 

 

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि एलओसी उस शख्स के लिए एक बड़ी बाधा है जो विदेश यात्रा करना चाहता है. कोर्ट ने कहा कि किसी शख्स को बहुत ही मजबूर करने वाले कारणों के अलावा विदेश जाने के उसके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.

'अगर धोखाधड़ी या गबन का आरोप नहीं...'

मद्रास हाईकोर्ट (Madras Highcourt) के न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने 28 तारीख को फैसला सुनाया कि बैंक, कानूनी रास्ते खत्म होने के बाद, किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर (lookout circular) जारी नहीं कर सकते जो लोन चुकाने में असमर्थ है. यह फैसला तब लागू होता है जब धोखाधड़ी या गबन का कोई आरोप न हो. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बैंकों को लोन वसूलने के लिए ऐसे कठोर कदम उठाने से बचना चाहिए, खासकर तब जब डिफॉल्ट (default) करने वाला व्यक्ति किसी भी आपराधिक गतिविधि में शामिल न हो.

69 करोड़ के लोन का मामला-

मौजूदा केस में कोर्ट (court) ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही (criminal proceedings) लंबित नहीं थी और न ही कोई आरोप था कि वह लोन की रकम के गबन में शामिल था. बैंक ने कहा कि उसने पहले ही उसके साथ-साथ कंपनी के खिलाफ SARFAESI अधिनियम और दिवाला और दिवालियापन संहित जैसे विभिन्न कानूनों के तहत कदम उठाए हैं. याचिकाकर्ता तब यूनियन बैंक (Union Bank) का निदेशक था, जिसने 69 करोड़ रुपये के लोन की गारंटी ली थी.

याचिकाकर्ता, यूनियन बैंक का पूर्व निदेशक, 69 करोड़ रुपये के लोन का गारंटर था. कोर्ट ने पाया कि उसके खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही या गबन का आरोप लंबित नहीं था. बैंक ने कहा कि उसने याचिकाकर्ता और कंपनी के खिलाफ पहले ही SARFAESI अधिनियम और दिवाला और दिवालियापन संहिता के तहत कार्रवाई की है. यह सब तब हुआ जब याचिकाकर्ता ने लोन के पैसे के गबन के आरोपों का विरोध किया था.

हाई कोर्ट ने और क्या कहा?

बाद में उसने कंपनी से इस्तीफा दे दिया और दूसरी संस्था में शामिल हो गया, लेकिन कंपनी ऋण चुकाने में विफल रही. बैंक ने उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू की और लुक आउट सर्कुलर जारी करने का अनुरोध किया. हालांकि, अदालत ने उसके विदेश यात्रा के अधिकार को बरकरार रखा, यह कहते हुए कि यह एक मनमाना और अवैध कृत्य (illegal act) है और इसे केवल कानूनी रूप से उचित प्रक्रिया के तहत ही छीना जा सकता है.