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High court decision : महिला होना चाहती थी प्रेग्नेंट पर जेल में बंद था पति, फिर महिला ने हाई कोर्ट को लिखी ये चिट्ठी

Kerala High Court : हाई कोर्ट के पास ये अजीब मामला आया है जहाँ एक महिला प्रेग्नेंट होना चाहती है पर उसका पति जेल में बंद है फिर महिला ने अपने पति के लीये हाई कोर्ट को ये चिट्ठी लिख दी।  आइये डिटेल में जानते हैं पूरा मामला 

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महिला ने इस काम के लिए हाई कोर्ट को लिखी चिट्ठी

HR Breaking News, New Delhi : एक महिला के बच्चे की चाहत को पूरा करने के लिए केरल हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक कैदी को पैरोल पर बाहर जाने की इजाजत दे दी. दरअसल, केरल हाईकोर्ट ने विय्यूर स्थित केंद्रीय जेल सुधार गृह में आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक कैदी को आईवीएफ/आईसीएसआई उपचार के लिए छुट्टी दे दी है. बताया गया कि कैदी की पत्नी ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और पति के जेल से छुट्टी दिए जाने की मांग की थी, ताकि वह आईवीएफ प्रक्रिया से संतान पैदा करने की उपचार प्रक्रिया पूरी कर सके.

Delhi high Court ने कह दी ये बड़ी बात, पति का पराई महिला के साथ रहना गलत नहीं

 दोषी पिछले 7 साल से जेल में बंद है. दोषी की पत्नी ने पति के लिए पैरोल की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जो पिछले 7 सालों से कारावास की सजा काट रहा है, ताकि वह आईवीएफ/आईसीएसआई (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन/इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन) प्रक्रिया के माध्यम से बच्चा पैदा करने के लिए उपचार प्रक्रिया पूरी कर सके. इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस पी.वी. कुन्हीकृष्णन की सिंगल जज बेंच ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि कोर्ट केवल तकनीकी पहलुओं के आधार पर ऐसे वास्तविक अनुरोधों को कैसे नजरअंदाज कर सकता है.

Delhi high Court ने कह दी ये बड़ी बात, पति का पराई महिला के साथ रहना गलत नहीं

उन्होंने कहा, ‘जब एक पत्नी इस अनुरोध के साथ इस अदालत के समक्ष आती है कि वह अपने पति के साथ रिश्ते में एक बच्चा चाहती है जो सेंट्रल जेल में कारावास की सजा काट रहा है, तो यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है. आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और उनका पुनर्वास करने के लिए होती है. राज्य और समाज अपराधी को जेल से बाहर आकर एक सुधरे हुए पुरुष/महिला के रूप में देखना चाहते हैं, जो हमारे समाज का हिस्सा होगा. जो व्यक्ति किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे बाहर आने पर अलग व्यक्ति के रूप में व्यवहार करने की जरूरत नहीं है. उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है.’

दरअसल, कोर्ट के सामने कैदी की पत्नी ने यह दलील दी कि उन दोनों का बच्चा पैदा करने का सपना था और वे हर तरह से अपना इलाज करा रहे थे, लेकिन अब तक कोई फायदा नहीं हुआ. याचिकाकर्ता ने कहा कि जब उनके पति को जेल से सामान्य छुट्टी मिली तो उन्होंने एलोपैथी के तहत अपना इलाज शुरू किया. यह दिखाने के लिए कि उनके पति की 3 महीने तक उपस्थिति आवश्यक है, उन्होंने उस अस्पताल से प्राप्त एक पत्र भी प्रस्तुत किया, जहां दंपति का इलाज चल रहा था.

Delhi high Court ने कह दी ये बड़ी बात, पति का पराई महिला के साथ रहना गलत नहीं

महिला ने कोर्ट से आगे कहा कि जब उसने अपने पति को इलाज जारी रखने के लिए 3 महीने की अवधि के लिए पैरोल देने के लिए केरल जेल और सुधार सेवा (प्रबंधन) अधिनियम, 2010 की धारा 73 को लागू करने का अनुरोध करते हुए राज्य अधिकारियों से संपर्क किया तो इस संबंध में उक्त अधिकारियों से उसे कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली. इसके बाद याचिकाकर्ता के वकील ने उसे यह सुझाया कि संतानोत्पत्ति करने का अधिकार उसका मौलिक अधिकार है और याचिकाकर्ता का पति आईवीएफ/आईसीएसआई प्रक्रिया से गुजरने के उद्देश्य से छुट्टी का हकदार है. इसके बाद महिला ने हाईकोर्ट का रुख किया, जहां से उसे राहत मिल गई.