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Marriage Act : दूसरी जाति में शादी करने पर मुसीबत बना मैरिज एक्ट का ये नियम

Marriage Act - हमारे समाज में दूसरी जाति में शादी करने पर अधिकतर लोगों को बड़ी परेशानी होती है। साथ ही वे ऐसी शादियों को स्वीकार भी नहीं करते है। फिलहाल दूसरी जाति में शादी करने पर मैरिज ऐक्ट का ये नियम मुसीबत बन गया है। 

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HR Breaking News, Digital Desk- फरवरी 2020 में, जब दिल्ली की रहने वाली परवीन अंसारी और राम सिंह यादव ने स्पेशल मैरिज एक्ट (Special Marriage Act), 1954 के तहत शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन किया था, तो वे चाहते थे कि पारिवारिक हिंसा के डर से उनके अलग-अलग मजहब वाली शादी को गुप्त रखा जाए।

 

 

हालांकि, ऐसा होना संभव नहीं था। इसकी वजह है स्पेशल मैरिज एक्ट का एक खास नियम। स्पेशल मैरिज एक्ट भारतीयों को अपना धर्म बदले बिना शादी करने की अनुमति देता है। इसी अधिनियम की धारा 5 में कपल को अपनी शादी को लेकर 'आपत्तियां आमंत्रित करने' के लिए 30-दिन की सार्वजनिक सूचना देने की आवश्यकता होती है, यदि कोई हो।

घरवालों के पास भी जाता है नोटिस


अब यही नियम दूसरे धर्म या दूसरी जाति में शादी करने वाले कपल के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन रहा है। इस नियम को याद करते हुए परवीन बताताी हैं कि सब डिविजनल मजिस्ट्रेट ने पहले हमें हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शादी करने के लिए मनाने की कोशिश की। हमने कहा कि हम कोई धर्मांतरण नहीं चाहते। ऐसे में एसडीएम ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत सार्वजनिक नोटिस हमारे परिवारों के पास जाएगा। परवीन ने बताया कि यह गलत था। हमें पूरा यकीन था कि दिल्ली में यह नोटिस केवल कपल के संबंधित अधिकार क्षेत्र के एसडीएम कार्यालयों के बाहर ही प्रदर्शित किया जाना चाहिए।

हमारे मां-पिता को ना भेजें नोटिस-
परवीन और राम सिंह ने एसडीएम से विनती की कि वे इसे हमारे माता-पिता को न भेजें, लेकिन उन्होंने भेज दिया। आवेदन के 10 दिन के भीतर ही दोनों परिवारों को नोटिस मिल गए। परवनी अंसारी को उसके घर में बंद कर दिया गया। राम सिंह यादव पर आवेदन वापस लेने का दबाव डाला गया। परवीन ने बताया, राम को डर था कि मेरी हत्या की जा सकती है। उन्हें मेरी हिरासत सुरक्षित करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करनी पड़ी। आखिरकार उसी वर्ष मई में परवीन और राम की शादी हुई। शादी की।

सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस पर उठाया सवाल-
ऐसे कपल के लिए खुशी की खबर यह है कि समलैंगिक विवाहों के लिए कानूनी मंजूरी मांगने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत 30 दिनों का यह अनिवार्य नोटिस 'पितृसत्तात्मक' था। याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे 'आपदा और हिंसा को निमंत्रण' बताया। सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि "यह उन्हें (जोड़ों को) एसपी, जिला मजिस्ट्रेट आदि सहित समाज की तरफ से आक्रमण के लिए खुला रखने जैसा है।

क्यों जोड़ा गया था यह नियम-
स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 की धारा 5, 6, 7 के तहत विवाह अधिकारी की तरफ 30-दिन नोटिस अवधि और इसके कार्यान्वयन का इरादा शुरू में शामिल पक्षों की 'दिमागी हालत ठीक नहीं' होने से बचाव करना था। साथ ही यह था कि नाबालिग इसका प्रयोग नहीं कर पाएं। यह अधिनियम, 'एक जीवित जीवनसाथी' के अस्तित्व से संबंधित मुद्दों के अलावा, दोनों व्यक्तियों की सहमति सुनिश्चित करने के लिए जोड़ा गया था। धारा 7 के तहत प्रावधान 'किसी भी व्यक्ति' को सूचना मांगने और इच्छित विवाह के लिए आपत्तियां उठाने की अनुमति देता है। हालांकि, आज, नोटिस का प्रावधान डराने-धमकाने, मोरल पुलिसिंग और परिवार, कानून लागू करने वाली संस्थाओं और यहां तक कि निगरानी करने वालों के हस्तक्षेप का एक साधन बन गया है।

8 महीने तक घर में बंद कर दिया-
केरल में अलग मजहब में शादी करने वाले कपल ए. सुजाता राधाकृष्णन और शमीम उस समय सदमे में आ गए जब उन्होंने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत जमा किए गए अपने विवाह आवेदन फेसबुक पर पोस्ट हो गया। 2019 में रजिस्ट्रेशन ऑफिस में जमा करने के तुरंत बाद वह वाट्सएप ग्रुप में फैल गया। सुजाता के माता-पिता का सपोर्ट था कि वे शादी कर पाए। 30 दिन के नोटिस ने राजस्थान में भी एक अंतर्धार्मिक जोड़े के लिए परेशानी बन गया।

उनकी शादी करने को लेकर जानकारी उनके परिवारों तक पहुंची, तो लड़की के परिवार ने उसे आठ महीने तक घर में बंद कर दिया। भावी दूल्हे को उसके पड़ोसियों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, जिन्होंने हिंदू-मुस्लिम विवाह का विरोध किया था। उन्होंने उनके पिता के कबाड़ और गारबेज प्रोसेसिंग गोदाम को जला दिया। इसके बाद वे भागकर एक छोटे से घर में रहने लगे। जब लड़की के परिवार को पता चला तो वे लोग उसे जान से मारने की धमकी दी। बाद में एक्टिविस्टों के दखल देने के बाद ही यह जोड़ा शादी कर सका।

30 दिन का नोटिस हटाने का प्रयास-
मुंबई में मैरिज एक्ट की प्रैक्टिस से जुड़ी एडवोकेट अनघा निंबकर ने कहा कि एसएमए, 1954 का यह विशिष्ट प्रावधान समलैंगिक जोड़ों के लिए चुनौती पेश करेगा। निंबकर ने कहा कि अगर LGBTQ+ समुदाय के सदस्यों को सामाजिक स्वीकृति के लिए वर्षों की लड़ाई के बाद जिससे वे प्यार करते थे, उससे शादी करने की अनुमति दी जानी थी, तो उन्हें फिर से जांच के अधीन क्यों किया जाना चाहिए? 30 दिन के सार्वजनिक नोटिस को जारी करने को हटाने की पैरवी करने के लिए अतीत में कई प्रयास किए गए हैं।

हालांकि, एक अंतर्धार्मिक जोड़े की चुनौती के जवाब में, कानून और न्याय मंत्रालय ने 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष दायर एक हलफनामे में कहा कि 30 दिन का सार्वजनिक नोटिस 'उचित और तार्किक' था। मंत्रालय ने तर्क दिया कि मौलिक अधिकार पूर्ण नहीं हैं और उन पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट में लंबित है PIL-
2020 में, केरल की कानून की छात्रा नंदिनी प्रवीण ने स्पेशल मैरिज एक्ट में 30 दिन के सार्वजनिक नोटिस के प्रावधान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। याचिका अभी भी लंबित है। यह बताते हुए कि विवाह समवर्ती सूची में है, प्रवीण की पैरवी करने वाले एडवोकेट तुलसी ने कहा, प्रावधान पर हर राज्य के अपने नियम हैं, भले ही स्पेशल मैरिज एक्ट एक केंद्रीय अधिनियम हो। कुछ राज्य वास्तव में स्पेशल मैरिज एक्ट के अनुकूल हैं जबकि अन्य नहीं हैं। हालांकि, अगर केंद्रीय अधिनियम के विवादास्पद प्रावधानों को ही खत्म कर दिया जाता है, तो राज्य के नियम व्यावहारिक रूप से नहीं बदले जा सकेंगे।


डोमोसाइल बन जाती है बड़ी परेशानी-
एनजीओ धनक फॉर ह्यूमैनिटी के को-फाउंडर आसिफ इकबाल अंतर-धार्मिक और अंतर्जातीय जोड़ों की मदद करते हैं। इकबाल का कहना है कि नोटिस का प्रावधान एक बड़ी बाधा है। उन्होंने कहा, जब कोई इमरजेंसी स्थिति होती है और एक कपल को तेजी से निर्णय लेना होता है। ऐसे में वे 30 दिनों के पब्लिक नोटिस का रिस्क नहीं लग सकते। इसलिए, वे पर्सनल मैरिज लॉ के तहत किसी तरह का हलफनामा पाने के लिए धर्मांतरण का रास्ता चुनते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 5 के तहत डोमोसाइल की जरूरत होती है। यह अनिवार्य करती है कि विवाह की सूचना केवल उस अधिकार क्षेत्र में दी जा सकती है जहां कोई भी पक्ष पिछले 30 दिनों से रह रहा हो। ऐसे में यह अलग-अलग राज्यों से भागे हुए कपल के लिए परेशानी बन जाता है। इकबाल की भी ऐसी ही याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में पेंडिंग है। इकबाल का कहना है कि हमारे जैसे लोगों के पास मामलों पर बहस करने के लिए सीनियर, महंगे वकील करने के लिए पैसे नहीं हैं।