Supreme Court Decision : 58 साल में रिटायरमेंट देने के मामले में कर्मचारी के हक में आया सुप्रीम का फैसला
Supreme Court Decision : गैरकानूनी तरीके से एक 58 वर्षीय कर्मचारी को आक्रोशमूलक तौर पर सेवानिवृत्त दे देना संस्था को महंगा पड़ा है। आइए इस पर नीचे खबर में जानते है सुप्रीम कोर्ट की ओर से फैसले को...
HR Breaking News, Digital Desk- एक अधिकारी का आक्रामक रवैया और सत्ता का दुरुपयोग न केवल कुछ कर्मचारियों के उत्पीड़न का कारण बनता है, बल्कि सरकार को भी नुकसान पहुंचाता है। ऐसा ही एक उदाहरण केंद्र सरकार के अधीन आने वाली ओडिशा ड्रग्स एंड केमिकल्स लिमिटेड (ओडीसीएल) के मामले में देखने को मिला है।
समय से पहले कर्मचारी को रिटायर करना संस्था को पड़ा महंगा-
गैरकानूनी तरीके से एक 58 वर्षीय कर्मचारी को आक्रोशमूलक तौर पर सेवानिवृत्त दे देना संस्था को महंगा पड़ा है। ओडीसीएल कर्मचारी संघ के पूर्व महासचिव दिनेश कुमार पात्रा को इस समयावधि में होने वाली पदोन्नति और अन्य सभी सरकारी लाभों के साथ 17 साल का पूरा वेतन प्रदान करने को ओडिशा हाईकोर्ट ने आदेश दिया है।
कंपनी के निदेशक ने रिटायरमेंट की आयु को दो साल घटाया-
ओडिशा ड्रग्स एंड केमिकल्स लिमिटेड कर्मचारी संघ के मुताबिक, 19 मई, 1998 की अधिसूचना के अनुसार, केंद्र सरकार के उर्वरक और रसायन विभाग और सरकारी उद्योग ओडिशा ड्रग्स एंड केमिकल्स लिमिटेड (ओडीसीएल) के सभी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष थी। लेकिन 2006 में निदेशक नंदकिशोर सिन्हा ने केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के बिना सेवानिवृत्ति की आयु सीमा दो वर्ष घटाकर 58 वर्ष करते हुए विज्ञप्ति जारी कर दी।
कर्मचारियों से नाराजगी पर उठाया ऐसा कदम-
उन्होंने कुछ कर्मचारियों पर आक्रोश रखकर ऐसा किया था। ऐसे में मामला उच्च न्यायालय में चला गया। उच्च न्यायालय ने 2006 में याचिकाकर्ता राजकिशोर शतपथी को तत्काल प्रभाव से 60 वर्ष तक काम करने का अवसर देने का आदेश दिया था।
कोर्ट ने कर्मचारी के पक्ष में सुनाया फैसला-
हालांकि, ओडीसीएल के अधिकारियों ने उच्च न्यायालय के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने भी अधिकारियों की याचिका खारिज कर दी थी और शतपथी के पक्ष में फैसला सुनाया था। इसी तरह वाणिज्य विभाग के अधिकारी कृष्ण कुमार पंडा ने भी उच्च न्यायालय का रुख किया। ओडीसीएल के अधिकारियों ने पंडा के पक्ष में उच्च न्यायालय के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
हर बार कर्मचारियों के हित में आया कोर्ट का फैसला-
सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी की याचिका खारिज कर दी थी और हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा था। ओडीसीएल कर्मचारी संघ के पूर्व महासचिव पात्रा भी अदालत गए। अदालत ने दोनों मामलों के आदेशों की जांच की और पात्रा के पक्ष में फैसला सुनाया।
अदालत पहले ही 60 कर्मचारियों को दो साल का वेतन देने का आदेश दे चुकी है। यह आदेश लागू है। यह मामला 1999 से अदालत में चल रहा था। इस आदेश के बाद अब 24 साल पुरानी अदालती लड़ाई समाप्त हो गई है।
इस वजह से निदेशक ने रची थी साजिश-
गौरतलब है कि सिन्हा रिश्वतखोरी के एक मामले में सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद विभागीय कार्रवाई का शिकार हुए थे। उनके एक अन्य सहयोगी कहे जाने वाले अधिकारी ताराकांत प्रधान भी सीबीआई द्वारा गिरफ्तार हुए थे।
कुछ वरिष्ठ अधिकारी एवं कर्मचारियों की शिकायत के तहत सीबीआई द्वारा कार्रवाई करने के संदेह में दोनों अधिकारियों ने मिलकर कर्मचारियों को समय से पहले सेवानिवृत्ति देने की साजिश रची थी, ऐसा आरोप लगा था।