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supreme court decision : क़र्ज़ में डूबी प्रॉपर्टी खरीदने से पहले जान लें कोर्ट का फैसला

property dispute : अगर आप भी कोई प्रॉपर्टी खरीदने जा रहे है और वो प्रॉपर्टी क़र्ज़ में डूबी है तो उसे खरीदने से पहले सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को जरूर जान लें नहीं तो बाद में दिक्कत हो सकती है 

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सुप्रीम कोर्ट का फैसला

HR Breaking News, New Delhi :  जिस प्रोपर्टी (Property) पर विवाद होता है, उससे आम आदमी दूर भागते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे डेयरिंग होते हैं, जो इसी तरह की प्रोपर्टी खरीदते हैं। इसलिए कि सस्ते में रियल एस्टेट की डील (Property Deal) हो जाए। यदि आप भी इस तरह का सोचते हैं, सावधान हो जाइए। किसी प्रोपर्टी पर किसी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी (Housing Finance Company/Bank) से लोन का विवाद चल रहा है तो आप उससे दूर ही रहें। नहीं तो नुकसान आपका ही होगा, बिल्डर को कोई घाटा नहीं होगा। इस तरह का एक फैसला सुप्रीम कोर्ट से हाल ही में आया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कर्ज में डूबी संपत्ति खरीदने वाले Agreement To Sale (एटीएस होल्डर) को कोई राहत नहीं दी जा सकती। क्योंकि, वह बैंक का मूल कर्जदार नहीं है, चाहे वह संपत्ति का पूरा मूल्य चुकाने को तैयार ही क्यों न हो।

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क्या है मामला


यह मामला एक बिल्डर से जुड़ा है। उसने अपने एक मल्टी स्टोरी हाउसिंग प्रोजेक्ट के लिए स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद से लोन लिया था। वह उसे लौटाने में विफल रहा। इसके बाद बैंक ने Securitization and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act, 2002 (SARFAESI Act) की की धारा 13 के तहत लोन की रिकवरी कार्रवाई शुरू कर दी। साथ ही धारा 13(4) के तहत हाउसिंग प्रोजेक्ट के सभी फ्लैट तथा अन्य संपत्तियों को जब्त कर लिया। बिल्डर ने इस कार्रवाई को Debt Recovery Tribunal (DRT) में चुनौती दी। डीआरटी ने बिल्डर को मोहलत दी कि वह इच्छुक खरीदारों की सूची लेकर आए, जो उसके फ्लैट खरीदना चाहते हैं। ताकि कर्ज की भरपाई की जा सके। बिल्डर ने बैंक साथ एग्रीमेंट किया कि फ्लैट खरीदार के साथ वह कोई भी एग्रीमेंट बैंक से अनुमति लेकर ही करेगा। लेकिन बिल्डर ने बैंक से बिना अनुमति के खरीदार से Agreement to Sell (एटीएस) कर दिया।

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बैंक ने संपत्ति को किया नीलाम

इस बीच बैंक ने उक्त को नीलाम करने का नोटिस जारी कर दिया। इसके खिलाफ बिल्डर डीआरटी पहुंचा लेकिन डीआरटी ने बिल्डर की अर्जी खारिज कर एटीएस को व्यर्थ बताया। इस बीच संपत्ति को बैंक ने नीलाम कर दिया। नीलाम में इस संपत्ति को खरीदने वाले व्यकित ने 25 फीसदी राशि जमा कर दी। इस पर एटीएस होल्डर ने आंध्र हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर नीलामी नोटिस को चुनौती दी। उसने याचिका में यह नहीं बताया कि संपत्ति की नीलामी पहले ही हो चुकी है। हाईकोर्ट नीलामी को स्टे कर दिया और कहा कि यदि एटीएस होल्डर पूरी रकम जमा करवाता है तो संपत्ति उसे दी जाए। होल्डर ने राशि जमा करवा दी। इस मामले पर नीलामी में फ्लैट खरीदने वाले ने बैंक के साथ मिल कर सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी।

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा


सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एमआर शाह और सीटी रविकुमार Justice M.R. Shah and Justice C.T. Ravikumar की पीठ ने बीते दो मई को इस मामले पर फैसला सुनाया। पीठ ने यह आदेश देते हुए तीसरे खरीदार के पक्ष में दिए गए हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को नीलामी रोकने और एग्रीमेंट टू सेल होल्डर को फ्लैट देने का आदेश नहीं देना चाहिए था, क्योंकि सरफेसी एक्ट, 2002 की धारा 13 (4) के तहत बैंक अपने ऋण की वसूली कार्रवाई कर रहा था। पीठ ने कहा कि इस कार्रवाई को रोकने की कवायद बिल्डर ही कर सकता है, यदि वह धारा 13 (8) के तहत योजना की पूरी राशि का भुगतान करने को तैयार हो, एटीएस होल्डर नहीं। पीठ ने कहा कि कोई भी अदालत एटीएस होल्डर को इस बिना पर कि वह कर्ज का पूरा भुगतान कर रहा है, कब्जा नहीं दे सकती। पीठ ने कहा कि बैंक और डीआरटी के आदेशों के विरुद्ध हाईकोर्ट में रिट याचिका भी नहीं दायर की जा सकती, क्योंकि इसके लिए सरफेसी एक्ट की धारा 17 में राहतों का प्रावधान है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने नीलामी में फ्लैट खरीदने वाले के पक्ष में फैसला सुनाया।

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