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Supreme Court : विवाहित बहन की संपत्ति में भाई का कितना अधिकार, सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में किया साफ

rights in property : संपत्ति की बढ़ती कीमतों के साथ-साथ इस पर हो रहे विवादों की संख्या भी हर रोज बढ़ती ही जा रही है। कोर्ट में संपत्ति विवाद से जुड़े सैकड़ों मामले अब तक पैंडिग पड़े है। आज की इस खबर में हम आपकों बताने जा रहे है सुप्रीम कोर्ट के एक फैसलें के बारे में जिसमें साफ-साफ बताया गया है कि विवाहित बहन की संपत्ति में भाई का कितना हक होता है।
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Supreme Court : विवाहित बहन की संपत्ति में भाई का कितना अधिकार, सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में किया साफ

HR Breaking News : (Supreme Court Decision) संपत्ति बंटवारे को लेकर बनाए गए नियमों की बेहद कम लोगो को जानकारी है। जिसकी वजह से प्रोपर्टी विवादों की संख्या हर रोज बढ़ती ही जा रही है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भी अबतक संपत्ति से जुड़े कई केसों पर फैसलें सुनाए गए है। 


आज की इस कड़ी के माध्यम में हम आपको बताने जा रहे कोर्ट के उस फैसलें के बारे में जिसमें क्लीयर किया गया है कि विवाहित बहन की संपत्ति में भाई का कितना (right in sister's property) हक होता है।


उच्चतम न्यायालय  का कहना है कि कोई भी पुरुष अपनी बहन की संपत्ति, जो उसे उसके पति से प्राप्त हुई हो, पर अधिकार का दावा नहीं (Brother's right in sister's property) कर सकता। ऐसा इसलिए क्योंकि भाई को बहन की संपत्ति का वारिस या उसके परिवार का सदस्य नहीं माना जाएगा। शीर्ष अदालत ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के एक प्रावधान का हवाला भी दिया। यह प्रावधान कानूनन वसीयत नहीं बनाने वाली महिला की मौत के बाद उसकी संपत्ति के उत्तराधिकार (inheritance of property) से जुडा है, बशर्ते महिला की मौत इस नियम के लागू होने के बाद हुई हो।


न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति और भानुमति की पीठ ने कहा, 'अनुच्छेद 15 में प्रयुक्त भाषा के मुताबिक महिला को पति या ससुर अथवा ससुराल पक्ष से प्राप्त संपत्ति (property received from in-laws) पति ससुर के वारिसों को ही हस्तानांतरित होगी।' शीर्ष अदालत ने एक व्यक्ति की याचिका को खारिज करते हुए यह कहा। 


याचिकाकर्ता ने मार्च 2015 के उत्तराखंड उच्च न्यायालय (Uttarakhand High Court) के आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उसे उसकी विवाहित बहन के देहरादून स्थित संपत्ति में अनाधिकृत निवासी बताया गया था। इस घर में उसकी बहन किराए पर रहती थी और बाद में उसकी मौत हो गई थी।


इस संपत्ति को वर्ष 1940 में व्यक्ति की बहन के ससुर ने किराए पर लिया था, बाद में महिला का पति यहां का किराएदार बन गया। पति की मौत के बाद संपत्ति की किराएदार (tenant of property) महिला बन गई। 


पीठ ने कहा कि पहली अपीली अदालत और उच्च न्यायालय का फैसला (High Court decision) सही है कि अपीलकर्ता दुर्गाप्रसाद कानून के तहत न तो वारिस है और न ही परिवार है। अपीलकर्ता की बहन ललिता की मौत की स्थिति में अगर बहन का कोई बच्चा नहीं है तो हिंदू उत्तराधिकार कानून की धारा 15 (2) (बी) के तहत किराएदारी उनके पति के वारिस के पास स्थानांतरित हो जाएगी।