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Supreme court ने दे दिए आदेश, पति अपनी प्रॉपर्टी बेचकर, पत्नी को दे गुज़ारा भत्ता

supreme court decision : सुप्रीम कोर्ट के पास चल रहे इस तलाक केस पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने आदेश दिए हैं की पति का फ़र्ज़ है की वो पत्नी को गुज़ारा भत्ता दे, भले ही उसे अपनी  प्रॉपर्टी ही क्यों ने बेचनी पड़ जाए, क्या है ये केस, आइये नीचे खबर में विस्तार से जानते हैं 

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HR Breaking News, New Delhi : सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में महिला के पति की पुश्तैनी संपत्ति की कुर्की कर उसे बेचने और बकाया गुजाराभत्ता के भुगतान का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महिला के बकाया एक करोड़ 25 लाख रुपये के गुजाराभत्ते का भुगतान किया जाए। इस मामले में महिला ने पति के खिलाफ अर्जी दाखिल कर बकाया गुजाराभत्ते के भुगतान का निर्देश देने की गुहार लगाई। महिला का कहना था कि वह अपनी विधवा मां के साथ रह रही है और भरण पोषण के लिए उन्हीं पर निर्भर है। गुहार लगाई कि फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया जाए कि वह छह महीने के भीतर गुजारा भत्ता संबंधित CRPC की धारा-125 (3) की अर्जी का निपटारा करे।

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महिला का आरोप है कि पति ऑस्ट्रेलिया चला गया और वहां के फैमिली कोर्ट से उसने 2017 में तलाक ले लिया। इसमें महिला की पेशी भी नहीं हुई। बिलासपुर के फैमिली कोर्ट में महिला ने तलाक कैंसल करने के लिए 8 नवंबर 2021 को अर्जी दाखिल की जो पेंडिंग थी। इसी दौरान पति ने ऑस्ट्रेलिया में दूसरी शादी कर ली।

अदालत में पेश मामले के मुताबिक, शादी के बाद पति-पत्नी में अनबन रहने लगी। पति के खिलाफ महिला ने कई आरोप लगाए। महिला का पति कानूनी कार्यवाही में पेश नहीं हुआ। बाद में उसके खिलाफ कई क्रिमिनल चार्ज लगे। ससुर और सास के खिलाफ भी आरोप लगाए गए। इस दौरान कोर्ट ने उन्हें निर्देश दिया कि वे भरण पोषण के एवज में 40 लाख रुपये एरियर का भुगतान करें लेकिन यह भुगतान नहीं किया गया। महिला का आरोप है कि फैमिली कोर्ट ने प्रति महीने एक लाख रुपये गुजारा भत्ता 2016 में तय किया और बाद में उसे बढ़ाकर एक लाख 27 हजार 500 प्रति महीने किया गया। लेकिन, पति ऑस्ट्रेलिया चला गया और ससुर ने भी भत्ते के भुगतान से इनकार कर दिया।

 

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'संपत्ति न बिके तो महिला को दे दी जाए'


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट के तमाम निर्देशों के बावजूद महिला के पति और ससुर गुजारा भत्ते का भुगतान नहीं कर पाए। इस मामले में तथ्य है कि आरोपी पति ने पत्नी को छोड़ दिया और ऑस्ट्रेलिया चला गया। महिला का कहना है कि पति अपनी पुश्तैनी संपत्ति का इकलौता वारिश है। उसके पास 11 दुकानें हैं। महिला का उस पर 1.25 करोड़ गुजारा भत्ता बकाया है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि दिल्ली हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार छह दुकानों को बेचने के लिए लगाएं और इस बात को सुनिश्चित करें कि उसका सही और वाजिब दाम मिले। दुकानों को बेचकर छह महीने के लिए उसका फिक्स डिपॉजिट हो और ब्याज महिला याची को दिया जाए। अगर दुकानों की बिक्री संभव नहीं हो पाती है तो संपत्ति याची महिला के फेवर में किया जाए। एक अन्य प्रॉपर्टी, जो पति और उनके पिता के नाम है, उसके रेंट की कुर्की जारी रहेगी, जब तक 1.25 करोड़ रुपये का भुगतान महिला को नहीं हो जाता है। SC ने कहा, अगर एक साल में इस निर्देश का पालन नहीं होता है तो रजिस्ट्रार को निर्देश दिया जाता है कि वह उसके तीन महीने के भीतर यदि महिला चाहे तो प्रॉपर्टी का मालिकाना हक उसके नाम किया जाए। यदि ऐसा नहीं तो प्रॉपर्टी को 18 महीने में ऑक्शन किया जाए और रकम से महिला के बकाये का भुगतान किया जाए।
 

सुप्रीम कोर्ट ने किया विशेषाधिकार का इस्तेमाल


सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस रवींद्र भट्ट की अगुवाई वाली बेंच ने अनुच्छेद-142 (विशेषाधिकार) का प्रयोग किया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामले में शक्तिहीन नहीं है। वह ऐसे मामले में निर्देश जारी कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि संपूर्ण न्याय के लिए यह आदेश पारित किया जा रहा है।

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