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Supreme Court Decision : कर्मचारियों के हक में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, सरकार की याचिका कर दी खारिज

Supreme Court Decision :  सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारियों की पेंशन से जुड़ा मामले में अहम फैसला दिया है। वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की याचिका खारिज करते हुए 4 महीने के अंदर पूर प्रक्रिया निपटाने का आदेश दिया है।  हाईकोर्ट की ओर से भी सरकार को आदेश दिए गए थे लेकिन इसके बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया था।

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HR Breaking News, Digital Desk- सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश (Himachal Pardesh) के मामले में दिये अपने एक अहम फैसले में कहा है कि पेंशन (pension) के लिए संविदा कर्मचारी यानी कांट्रेक्ट वर्कर (contract worker) के रूप में की गई सेवा को ध्यान में रखा जाएगा।

 

 


SC ने हिमाचल प्रदेश सरकार को दिया निर्देश-


कोर्ट ने नियम कानूनों की व्याख्या करके हिमाचल प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह नौकरी में नियमित किये गए संविदा कर्मचारियों (employees) को नियम के मुताबिक विकल्प अपनाने का मौका देगी और सारी प्रक्रिया चार महीने में पूरी करके शिक्षा और आयुर्वेदिक विभाग के ऐसे कर्मचारियों की पेंशन या परिवार पेंशन जैसा भी मामला हो, आदेश जारी करे।

हिमाचल सरकार की याचिका को SC ने किया खारिज-


न्यायमूर्ति एस रविन्द्र भट व अरविन्द कुमार की पीठ ने गत सात अगस्त को हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दाखिल हिमाचल प्रदेश सरकार की याचिका खारिज करते हुए और बहुत सी अन्य याचिकाएं निपटाते हुए दिया। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट (Himachal Pradesh High Court) ने संविदा कर्मचारी के रूप में पिछली सेवा को पेंशन के लिए ध्यान में रखने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट में केस का नाम हिमाचल प्रदेश राज्य व अन्य बनाम शीला देवी था।

HC के फैसले को हिमाचल सरकार ने दी थी चुनौती


हिमाचल प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सीसीएस पेंशन नियम 1972 के नियम 2(जी) को आधार बनाते हुए दलील दी थी कि इसमें संविदा कर्मचारियों को पेंशन नियमों के दायरे से बाहर रखा गया है। सरकार का कहना था कि नियम 17 जो पेंशन गणना के लिए संविदा कर्मचारी के रूप में सेवा अवधि को शामिल करने की इजाजत देता है वो नियम 2 (जी) में दिए बहिष्करण खंड के कारण लागू नहीं होगा।

पिछली सेवा को रखा जाना चाहिए ध्यानः कोर्ट-
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की दलील खारिज करते हुए कहा कि अगर राज्य सरकार के मुताबिक इस नियम को पढ़ा जाएगा तो नियम 17 निरर्थक बन जाएगा। कोर्ट ने कहा कि यह केवल पेंशन प्रयोजनों के लिए है कि संविदा कर्मचारी के रूप में पिछली सेवा को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

राज्य सरकार की दलीलें को किया दरकिनार-
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की दलीलें दरकिनार करते हुए आदेश दिया है कि राज्य सरकार तत्काल प्रभाव से नियमित किये सभी संविदा कर्मचारियों को चाहें वे 2003 से पहले नियमित किये गए हों या उसके बाद, को तय समय आठ सप्ताह में विकल्प अपनाने का मौका दिये जाने के तौर तरीके तय करने के लिए कदम उठाएगी।

कोर्ट ने कहा है कि नोटिस में दिये गए समय के भीतर विकल्प प्राप्त होने पर वह राशि नोटीवाई की जाएगी जो उन्हें उनके अंशदान की वापस (रिमिट) करने की जरूरत होगी। उसमें भुगतान की समय सीमा सीमा भी बताई जाएगी। सारी प्रक्रिया चार महीने के भीतर पूरी कर ली जाएगी और पेंशन या परिवार पेंशन जैसा भी केस हो के आदेश जारी कर दिये जाएंगे।

क्या था मामला?
शिक्षा और आयुर्वेदिक विभाग में अनुबंध या संविदा के आधार पर काम कर रहे कर्मचारियों को नौकरी में नियमित (पक्का) किया गया था। कई की नियुक्ति पेंशन नियम 2004 बनने से पहले हुई थी जिसमें पेंशन की पात्रता को समाप्त कर दिया गया था, उसके बाद वे नियमित हुए थे। कुछ पहले ही नियमित हो गए थे।

कर्मचारियों ने मांग की थी कि नियमित होने के बाद पेंशन की गणना में उनकी संविदा कर्मचारी के रूप में की गई सेवा अवधि को भी जोड़ा जाना चाहिए लेकिन राज्य सरकार ने उनके दावे को खारिज कर दिया था।

कर्मचारियों ने हाई कोर्ट में याचिका डाली। उच्च न्यायलय ने राज्य सरकार को पेंशन में संविदा अवधि की पिछली सेवा को भी ध्यान में रखने का आदेश दिया तब राज्य सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। मामले पर सुनवाई के दौरान हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा गत चार मई को लागू की गई नयी पेंशन स्कीम (new pension scheme) की भी चर्चा हुई।