NPS खाताधारकों के लिए बड़ी अपेडट, बदल गए एनपीएस के नियम
HR Breaking News, Digital Desk- एनपीएस (NPS) में निवेशकों को और ऊंचे रिटर्न मिलने की संभावना बढ़ गई है। पेंशन फंड नियामक पीएफआरडीए (PFRDA) के मुताबिक अब अंशधारक 51 साल की उम्र तक पहुंचने के बाद एक्टिव चॉइस के तहत टियर1 खाता में अपना 75 फीसदी निवेश शेयरों से जुड़े निवेश (इक्विटी) में डाल सकेंगे। साथ ही इसके लिए उन्हें अपना अंशदान कम करने जैसी कोई शर्त मानने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा।
पीएफआरडीए ने एक अधिसूचना में कहा है कि उसने टियर1 और टियर2 खाता के लिए इक्विटी में निवेश का नियम बदल दिया है। एक नए सर्कुलर में नए नियम की जानकारी दी गई है। उल्लेखनीय है कि एनपीएस के तहत अंशधारकों को इक्विटी में निवेश के लिए दो विकल्प मिलते हैं ऑटो चॉइस और एक्टिव चॉइस शामिल हैं। पीएफआरडीए की अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि टियर1 खाता में निवेश के नियमों में बदलाव के साथ अंशधारकों को एक्टिव चॉइस के तहत टियर2 खाता में 100 फीसदी राशि इक्विटी में ट्रांसफर करने का विकल्प भी दे दिया गया है। उल्लेखनीय है कि मौजूदा समय में एनपीएस अंशधारकों को कोई भी एक पंजीकृत पेंशन फंड चुनना होता है। इसके बाद एक्टिव चॉइस के तहत चार विकल्प इक्विटी, कॉरपोरेट बॉन्ड, सरकारी सिक्योरिटी , और अल्टरनेट असेट्स शामिल हैं।
टियर 1 और 2 खाते में क्या है अंतर-
एनपीएस में दो तरह के खाते खोले जाते हैं। इनमें टियर1 खाता अनिवार्य है और पेंशन इसी में जमा राशि के आधार पर तय होती है। इसमें सेवानिवृत्ति के बाद ही राशि निकालने की छूट है। जबकि टियर 2 खाता बचत खाता की तरह है और यह तभी खोलवा सकते हैं जब आपके पास टियर1 खाता हो। इसमें से कभी भी राशि निकाल सकते हैं।
जोखिम और रिटर्न के बीच संतुलन-
वित्तीय सलाहकारों का कहना है कि कोरोना काल में शेयरों और उससे जुड़े उत्पादों में निवेश को लेकर उत्साह काफी बढ़ा है। ऊंचा रिटर्न देखकर इसमें युवाओं के साथ अधिक उम्र के लोगों का भी आकर्षण बढ़ा है। उनका कहना है कि उम्र के साथ निवेश पर जोखिम घटना चाहिए। जबकि शेयरों में निवेश पर सबसे अधिक जोखिम होता है। हालांकि, इसमें ऊंचा रिटर्न भी मिलता है। यही वजह है कि पीएफआरडीए ने अंशधारकों के लिए निवेश और जोखिम के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की है।
सावधानी से करें विकल्प का चुनाव-
पेंशन फंड नियामक पीएफआरडीए ने सलाह दी है कि निवेश योजना या उसमें श्रेणी का चुनाव से पहले अंशधारकों को उसके पिछले प्रदर्शन और जोखिम का आकलन करना चाहिए। इसके बाद उसमें निवेश का फैसला करना चाहिए। वित्तीय सलाहकारों का कहना है कि एक या तो साल की बजाय कम से कम पांच साल के प्रदर्शन को आधार बनाना चाहिए। साथ ही उस श्रेणी में अन्य से तुलना भी करनी चाहिए।