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RBI Digital Currency : बदलने जा रहा है रूपए का रूप, लांच होने जा रहा है digital रूपया, ऐसे कर सकते है इस्तेमाल

हमारा देश लगातार ग्रोथ कर रहा है  जिससे देश की इकोनॉमी में फर्क हमे साफ नज़र आ रहा है और ऐसा ही एक और बेहतरीन कदम हमारे देश के रूपए को लेकर उठाने की तयारी चल रही है जहाँ हमारे देश के रूपए को digital रूप दिया जा रहा है।  कैसे करेगा काम और क्या होगे इसके फायदे, आइये जानते हैं। 
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HR Breaking News, New Delhi : आज से आठ वर्ष पहले 15 अगस्त, 2014 को लाल किले से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब देश में महत्वाकांक्षी कार्यक्रम ‘digital इंडिया’ के धमाकेदार आरंभ की घोषणा की थी, तब किसे पता था कि इस अभियान में करेंसी यानी रुपये के digitalीकरण का मुद्दा भी जुड़ जाएगा। इस घोषणा के दो वर्ष बाद आठ नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री ने पांच सौ और एक हजार रुपये के पुराने नोटों को खत्म करते हुए उनकी जगह नए नोट लाने की घोषणा की, तो देश का ध्यान ऐसी कैशलेस व्यवस्था बनाने की तरफ गया जिसमें कागज के नोटों की जरूरत नहीं होती। इसकी बजाय सारा लेनदेन digital  उपायों से या फिर डेबिट-Credit Card से होता है। इन तरीकों में धन हमें केवल संख्या के रूप में कंप्यूटर और मोबाइल आदि पर दिखता है और डेबिट, क्रेडिट कार्ड, मोबाइल वालेट आदि के जरिये उसका इस्तेमाल होता है।

यह असल में आनलाइन ट्रांजेक्शन  का तरीका है जिसमें भुगतान करने वाले पे-वालेट के रूप में digital मनी या digital करेंसी और साथ में प्लास्टिक मनी (क्रेडिट-डेबिट कार्ड) को प्रयोग में लाया जाता है। अब इसके एक और नए तरीके पर अमल की तैयारी है। दावा यह है कि देश की भुगतान प्रणाली (पेमेंट सिस्टम) को ई-रुपी की व्यवस्था एक नई ऊंचाई पर ले जा सकेगी और भारतीय बाजार इस किस्म की digital दीपावली की रोशनी में सराबोर हो सकेंगे। digital रुपये के संदर्भ से यदि देश में भुगतान के digital तौर-तरीकों की सफलता पर नजर दौड़ाएं, तो पता चलता है कि नोटबंदी और उसके बाद कोरोना काल में लगे लाकडाउन का digital भुगतान के मामले में सकारात्मक असर हुआ है।

वर्ष 2017 में देश में क्रेडिट-डेबिट कार्ड, चेक-ड्राफ्ट और मोबाइल वालेट आदि सभी तरीके मिलाकर केवल 22 प्रतिशत भुगतान कैशलेस हो रहे थे। लेकिन बाद के पांच वर्षों में यह तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। digital भुगतान प्रणालियों पर नजर रखने वाले संगठन ‘एसीआइ वर्ल्डवाइड’ की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2020-21 में भारत में 2550 करोड़ ट्रांजेक्शन (भुगतानों की संख्या) digital तरीकों से किए गए थे। इस मामले में भारत दुनिया के शीर्ष पर है और हमारे बाद चीन (1570 करोड़) और दक्षिण कोरिया (600 करोड़) का नंबर आता है। अमेरिका इस मामले में काफी पीछे यानी नौवें स्थान पर है, जहां वित्त वर्ष 2020-21 में ऐसे केवल 120 करोड़ ट्रांजेक्शन हुए थे। इलेक्ट्रानिक्स और सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार वित्त वर्ष 2020-21 के 5,554 करोड़ लेनदेन के मुकाबले वित्त वर्ष 2021-22 में भुगतान संबंधी 7422 करोड़ लेनदेन digital तरीकों से हुए। इंटरनेट गूगल और बोस्टन कंस्टलटेंसी ग्रुप (बीसीजी) के रिपोर्ट के अनुसार भारत के सकल घरेलू उत्पाद में इसकी भूमिका 15 प्रतिशत तक हो सकती है। प्लास्टिक मनी बनाम digital मनी : कागज के नोटों और धातु से बने सिक्कों से अलग प्लास्टिक मनी या digital मनी रूपी दो व्यवस्थाएं हमें रुपये-पैसे को जेब या बटुए में लेकर चलने से आजाद करती हैं।

बताते हैं कि अब से करीब 75 साल पहले प्लास्टिक के Credit Card का आविष्कार इस उद्देश्य के साथ किया गया था कि नोटों को अपने साथ रखने की बजाय लोग चोरी हो जाने के भय से मुक्त होकर एक या अधिक कार्ड अपनी जेब में रखें और उनका प्रयोग रकम को एक खाते से दूसरे खाते में भेजने (ट्रांसफर करने) के लिए इस्तेमाल करें। Credit Cardमें उपभोक्ताओं को यह सुविधा भी दी गई कि आवश्यकता पड़ने पर वे अपने खाते में जमा धन से ज्यादा रकम खर्च कर सकें और बाद में ली गई अतिरिक्त रकम पर ब्याज समेत चुका दें। आगे चलकर Credit Cardके नए रूप सामने आए, जैसे डेबिट कार्ड, ट्रैवल कार्ड, गिफ्ट कार्ड, पेट्रोल कार्ड, फूड कार्ड आदि।

हमारे देश में रुपे नामक प्रीपेड कार्ड भी लाया जा चुका है जिसका प्रयोग कैशलेस लेनदेन में किया जाता है। किसी सरकारी बैंक द्वारा जारी की जाने वाली कागजी मुद्रा (करेंसी) की बजाय digital मनी धन का ऐसा रूप है जिसका मूल्य आम तौर पर उससे संबंधित करेंसी जितना ही होता है, पर इसे कागज या सिक्कों या कार्ड की बजाय इलेक्ट्रानिक रूप में मोबाइल फोन, कंप्यूटर-लैपटाप या अन्य किसी इलेक्ट्रानिक वालेट में ही रखा जाता है।

भले ही इस digital मनी या वर्चुअल करेंसी को अपनी जेब में नहीं रख सकते, इसे छूकर महसूस नहीं कर सकते, परंतु इसे उसी सरकारी करेंसी के बदले ही हासिल किया जा सकता है जिसे सरकारी बैंक (भारत के मामले में रिजर्व बैंक आफ इंडिया) कागज के नोटों और धातु के सिक्कों के रूप में जारी करती है। इसलिए digital मनी का मूल्य सरकारी मुद्रा के बराबर होता है और उसे आसानी से स्वीकार किया जाता है। इस करेंसी की विशेषता यह है कि यह इंटरनेट पर आधारित लेनदेन का माध्यम है, इसलिए इससे कभी भी और कहीं भी सामान-सेवा आदि खरीदने में कोई परेशानी नहीं होती। इसके लेनदेन के लिए बैंक या एटीएम की भी आवश्यकता नहीं पड़ती, इसलिए इससे अर्थव्यवस्था में धन के प्रवाह में तेजी आती है।

वर्ष 2016 में नोटबंदी के बाद जिस तरह से पांच सौ और एक हजार रुपये के पुराने नोटों पर पाबंदी लगी उससे नकद रुपयों की कमी पैदा हुई। लिहाजा digital करेंसी से जुड़े कारोबार को प्रोत्साहन मिला। ऐसी सुविधा देने वाली कंपनियों के कामकाज में भी इस दौरान काफी तेजी आई। एक दावा है कि digital मनी की शुरुआत सबसे पहले 1990 में हुई थी। दुनिया में उस वक्त डाट काम बबल ने इसका उपयोग मुद्रा के रूप में किया था। इसके कुछ वर्षों बाद 2006 में लिबर्टी रिजर्व नामक एक कंपनी ने digital करेंसी सेवा की शुरुआत की। इसके उपभोक्ता अपने पास मौजूद अमेरिकी डालर या यूरो को लिबर्टी रिजर्व डालर या लिबर्टी रिजर्व यूरो में बदलवा सकते थे। इसके बदले उन्हें एक प्रतिशत शुल्क देना पड़ता था। हालांकि बाद में आरोप लगा कि इस digital करेंसी का इस्तेमाल कुछ लोग काला धन सफेद करने के लिए कर रहे हैं।

ऐसे समाचारों के सामने आने पर अमेरिकी सरकार ने digital करेंसी की इस व्यवस्था को बंद कर दिया था। इन दिनों दुनिया में digital करेंसी के रूप में बिटकाइन का अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है। बिटकाइन पूरी दुनिया में बहुत तेजी से फैलता जा रहा है और सरकारी पाबंदियों के दौर में इसके प्रशंसक और उपयोगकर्ता बढ़ते जा रहे हैं। वैसे बीते कुछ अरसे में सरकारों द्वारा बिटकाइन और ऐसी करेंसियों को मान्यता नहीं देने के कारण उनके कारोबार व मूल्य में कमी आई है। ऐसे में सरकारी बैंकों (जैसे रिजर्व बैंक) द्वारा जारी की जाने वाली digital करेंसी (ई-रुपी) का रास्ता खुलता प्रतीत हो रहा है।