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Business - दो लोगों को कचरे ने बना दिया करोड़पति, 2010 में लगाई थी मशीन

 आजकल हर जगह प्लास्टिक के कचरे की भरमार है। जिधर देखो उधर कचरा ही कचरा है। जिसे रिसायकल करना ना सिर्फ मुश्किल है, बल्कि खर्लीचा भी है। भारत में हर साल 26000 हजार टन प्लास्टिक का कचरा पैदा होता है। इस वजह से भारत दुनिया में 15वां सबसे बड़ा प्लास्टिक प्रदूषक है। आज हम आपको एक ऐसे बिजनेस के बारे में बताने जा रहे है जिसने दो लोगों को करोड़पति बना दिया है। दरअसल ये बिजनेस कुछ और नही बल्कि कचरे का है। 
 
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HR Breaking News, Digital Desk- यूं तो प्लास्टिक कचरे में कई तरह की वैरायटी होती है लेकिन इनमे से सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली पतली प्लास्टिक या MLP (Multi layered plastic)की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है। भारत में MLP पर ध्यान नहीं दिया जाता अक्टूबर 2019 से बैन हुए single-use-plastic में जिन 12 चीजों को सबसे ज्यादा प्रदुषण फैलाने वाली लिस्ट में रखा गया उसमें इन MLP प्लास्टिक का नाम नहीं शामिल था।


इन प्लास्टिक कचरों से या तो प्रदुषण फैलता है या इन्हें गरीब घरों में खाना बनाते वक्त महिलाएं अपने चूल्हे में डाल देती थी। जिससे निकलने वाले धुंए से उनकों कैंसर और अस्थमा की बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता था। लेकिन 2009 में महाराष्ट्र के पुणे शहर में मेघा तड़पत्रिकर नाम की एक महिला उद्यमी और उनके बिजनेस पार्टनर शिरीष फड़कारे ने इस चीज पर ध्यान दिया।


मेधा और शिरीष ने रुद्र एनवायरनमेंट सोल्युशंस के नाम से कारोबार की शुरूआत 2010 में की और कड़ी के बाद एक एसी मशीन बनाई जो प्लासिक्ट वेस्ट से ईंधन बनाती हैं। प्लास्टिक की बोतल, रैपर, पॉलिथीन बैग, डिब्बे, कटलरी, इलेक्ट्रिक सॉकेट जैसे हर तरह के प्लास्टिक को पिघलाया जाता है और आखिरी में इसमें से एक तरल पदार्थ निकलता है जो बेहद ज्वलनशील है और जिसका इस्तेमाल इंधन की तरह किया जा सकता है। इस प्रक्रिया पर प्रति लीटर 24 रुपए की लागत आती है।


इस polyfuel को मिट्टी के तेल की तरह आराम से जलाया जा सकता है। यानी मशीन से निकलने के बाद इसे किसी भी तरह की प्रोसेसिंग की जरूरत नहीं पड़ती। मेघा बताती हैं की इसमें से निकलने वाली गैस (sulphur) की मात्रा काफी हद तक कम होती है जिससे प्रदुषण नहीं फैलता और घरों में महिलाएं गैस स्टोव में इस तेल का आसानी से इस्तेमाल कर सकती हैं।


किसी भी शहर में हर तरफ कचरें में प्लास्टिक का ढेर आसानी से दिखाई देता है लेकिन रिसाइकल के लिए प्लास्टिक इकठ्ठा करना कंपनी के लिए आसान नहीं था। इसलिए कंपनी ने सीता मेमोरियल ट्रस्ट के साथ करार किया है जो लोगों के घरों से प्लास्टिक इकठ्टा करती है।
इक्कठा किए हुए प्लास्टिक को पूरी प्रक्रिया से गुजार के उसे polyfuel में बदल दिया जाता है और फिर इसे आस पास के गांव और बहुत सारी कंपनियों को बेचा जाता है। इसकी कीमत प्रति लीटर 40 रुपए है।


रुद्र एनवायरनमेंट सोल्युशंस ने गुजरात और महाराष्ट्र में ऐसे 10 प्लांट लगाए है। कुछ बड़े इंडस्ट्रीज के लिए प्लांट लगाने के लिए कंपनी की बातचीत जारी है। रूद्र के कर्मचारी जो भी कचरा इन जगहों में इक्कठा करते हैं उसे पिघलाकर इसी तरह polyfuel में बदल दिया जाता है। अगर सरकार इस प्रक्रिया का विस्तार करने की कोई योजना तैयार करे तो भारत जैसे देश में प्लास्टिक कचरे की समस्या काफी हद तक कम हो सकती है।