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बेटी को पढाने के लिए स्कूटी पर राजमा चावल बेचतीं हैँ सरिता, पैसे नहीं होने पर मुफ्त देती हैं खाना

चंडीगढ़। सरिता कश्यप अपनी बेटी को पालने के लिए स्कूटी पर राजमा चावल भेजती हैं और इनकी दरियादिली देखिए कि अगर किसी के पास खाने के पैसे नहीं है तो सरिता उसे मुफ्त में खाना भी देती हैं। दरअसल सरिता कश्यप दिल्ली की रहने वाली हैं। आईएस अफसर अवनीश ने सोशल मीडिया अकाउंट पर इनकी
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बेटी को पढाने के लिए स्कूटी पर राजमा चावल बेचतीं हैँ सरिता, पैसे नहीं होने पर मुफ्त देती हैं खाना

चंडीगढ़। सरिता कश्यप अपनी बेटी को पालने के लिए स्कूटी पर राजमा चावल भेजती हैं और इनकी दरियादिली देखिए कि अगर किसी के पास खाने के पैसे नहीं है तो सरिता उसे मुफ्त में खाना भी देती हैं। दरअसल सरिता कश्यप दिल्ली की रहने वाली हैं। आईएस अफसर अवनीश ने सोशल मीडिया अकाउंट पर इनकी एक तस्वीर शेयर की है और लिखा है कि यह पश्चिम विहार की सरिता है। जो पिछले 20 सालों से स्कूटी पर राजमा चावल बेच रही हैं। यदि किसी के पास पैसे नहीं है तो भी यह भूखा नहीं जाने देती।

साथ ही यह जब टाइम मिलता है तो गरीब बच्चों को भी वही पढातीं भी हैं। जानकारी के अनुसार सुनीता कश्यप एक ऑटोमोबाइल कंपनी में काम करती थी लेकिन कुछ सालों से नौकरी छोड़ कर उन्होंने राजमा चावल बेचना शुरू किया। वहीं जिनके पास पैसे नहीं होते सुनीता मुफ्त भोजन भी देती हैं। सरिता कहती हैं खा लो पैसे जब होंगे तब लौटा देना। सरिता गरीब बच्चों को साथ में पढ़ाते भी हैं। उनका कहना है कि कमाई तो होती रहेगी लेकिन कोई भूखा नहीं सोना चाहिए। वह खुशी किसी और काम में नहीं होती जो एक भूखे को खिलाकर होती है। यह बात सही भी है कि एक भूखे को भोजन कराना जो सुख और शांति मिलती है वह शायद ही किसी अन्य काम में मिलती हो।

सरिता इस काम को शुरू करने के बारे में कहतीं हैं कि 1 दिन वह राजमा चावल बनाकर स्कूटी पर पीरागढ़ी बेचने के लिए चली गईं। शुरू में उन्होंने सोचा यदि कोई खरीदार आएगा तो ठीक है नहीं तो वह वापस आ जाएगी लेकिन पहले ही दिन सरिता को अच्छा रिस्पांस मिला। लोगों ने खाना पसंद किया और साथ ही पैक करवा कर भी लेकर गए।

वहां से इनका मन बदला और उन्होंने इस काम की शुरुआत कर दी। सरिता रोजाना पीरागढ़ी मेट्रो स्टेशन के पास राजमा चावल की स्टाल लगाती हैं फिर सरिता ने देखा कि बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो पैसे न होने के चलते भूखे भी रहते हैं। ऐसे लोगों को मुफ्त खाना खिलाने का फैसला किया। सरिता इस काम से पैसे कमाकर अपनी बेटी को भी पढा रहीं हैं। सरिता आसपास के गरीब बच्चों के लिए किताबें और उनकी स्कूल ड्रेस भी खरीद कर देतीं हैं। सरिता कहती है कि मुझे ये काम अच्छा लगता है। लोगों को खाना खिलाकर जो सुख मिलता है वा अन्य काम में नहीं मिल सकता।