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पहली बार राजपथ की बजाए इस स्थान पर हुई थी गणतंत्र दिवस की परेड

HR BREAKING NEWS. आज अगर किसी भी क्विज प्रतियोगिता में यह पूछा जाए कि देश की राजधानी में पहली गणतंत्र दिवस परेड कहां हुई थी, तो सबसे पहले घंटी दबाने वालों का उत्तर राजपथ ही होगा और दर्शकों का भी यही मानना होगा कि कितना आसान सवाल है!

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पर हक़ीक़त इससे बिल्कुल जुदा है।

दिल्ली में 26 जनवरी, 1950 को पहली गणतंत्र दिवस परेड, राजपथ पर न होकर इर्विन स्टेडियम (आज का नेशनल स्टेडियम) में हुई थी। तब के इर्विन स्टेडियम के चारों तरफ चहारदीवारी न होने के कारण उसके पीछे पुराना किला साफ नज़र आता था।

राजपथ पर साल 1955 में पहली बार गणतंत्र दिवस परेड शुरू हुई। यह सिलसिला आज तक बना हुआ है। अब आठ किलोमीटर की दूरी तय करने वाली यह परेड रायसीना हिल से शुरू होकर राजपथ, इंडिया गेट से गुजरती हुई लालकिला पर ख़त्म होती है।

इसी दिन, जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित हुआ था, जिसमें कहा गया था कि अगर ब्रिटिश सरकार ने 26 जनवरी, 1930 तक भारत को उपनिवेश का दर्जा (डोमीनियन स्टेटस) नहीं दिया, तो भारत को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर दिया जाएगा।

ब्रिटिश सरकार के इस ओर ध्यान न देने की सूरत में कांग्रेस ने 31 दिसंबर, 1929 की आधी रात को भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा करते हुए सक्रिय आंदोलन शुरू किया। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पहली बार तिरंगा फहराया गया। इतना ही नहीं, हर साल 26 जनवरी के दिन पूर्ण स्वराज दिवस मनाने का भी निर्णय लिया गया।

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इस तरह, आजादी मिलने से पहले ही 26 जनवरी, अनौपचारिक रूप से देश का स्वतंत्रता दिवस बन गया था। यही कारण था कि कांग्रेस उस दिन से 1947 में आज़ादी मिलने तक, 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाती रही।

साल 1950 में देश के पहले भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने 26 जनवरी बृहस्पतिवार के दिन सुबह दस बजकर अठारह मिनट पर भारत को एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया।

फिर इसके छह मिनट के बाद डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को भारतीय गणतंत्र के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई गई।

तब के गवर्मेंट हाउस और आज के राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में शपथ लेने के बाद राजेंद्र बाबू को साढ़े दस बजे तोपों की सलामी दी गई।

तोपों की सलामी की यह परंपरा 70 के दशक से कायम रही है। और आज भी यह परंपरा बदस्तूर कायम है। राष्ट्रपति का कारवां दोपहर बाद ढाई बजे गवर्मेंट हाउस से इर्विन स्टेडियम की तरफ रवाना हुआ।

यह कारवां कनॉट प्लेस और उसके करीबी इलाकों का चक्कर लगाते हुए करीब पौने चार बजे सलामी मंच पर पहुंचा। तब राजेंद्र बाबू पैंतीस साल पुरानी पर विशेष रूप से सजी बग्घी में सवार हुए, जिसे छह ऑस्ट्रेलियाई घोड़ों ने खींचा।

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इर्विन स्टेडियम में हुई मुख्य गणतंत्र परेड को देखने के लिए 15 हज़ार लोग पहुंचे थे। आधुनिक गणतंत्र के पहले राष्ट्रपति ने इर्विन स्टेडियम में तिरंगा फहराकर परेड की सलामी ली। उस समय हुई परेड में सशस्त्र सेना के तीनों बलों ने भाग लिया था। इस परेड में नौसेना, इन्फेंट्री, कैवेलेरी रेजीमेंट, सर्विसेज रेजीमेंट के अलावा सेना के सात बैंड भी शामिल हुए थे।

पहले गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो थे।

इतना ही नहीं, इस दिन पहली बार राष्ट्रीय अवकाश घोषित हुआ। देशवासियों की अधिक भागीदारी के लिए आगे चलकर साल 1951 से गणतंत्र दिवस समारोह किंग्स-वे (आज का राजपथ) पर होने लगा। "सैनिक समाचार" पत्रिका के पुराने अंकों के अनुसार, 1951 के गणतंत्र दिवस समारोह में चार वीरों को पहली बार उनके अदम्य साहस के लिए सर्वोच्च अलंकरण परमवीर चक्र दिए गए थे।

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उस साल से समारोह सुबह होना शुरू हुआ और उस साल परेड गोल डाकखाना पर ख़त्म हुई। साल 1952 से बीटिंग रिट्रीट का कार्यक्रम शुरू हुआ। इसका एक समारोह रीगल सिनेमा के सामने मैदान में और दूसरा लालकिले में हुआ था। सेना बैंड ने पहली बार महात्मा गांधी के मनपसंद गीत 'अबाइड विद मी' की धुन बजाई और तभी से हर साल यही धुन बजती है।

साल 1953 में पहली बार गणतंत्र दिवस परेड में लोक नृत्य और आतिशबाजी को शामिल किया गया। तब इस अवसर पर रामलीला मैदान में आतिशबाजी भी हुई थी। उसी साल त्रिपुरा, असम और नेफा (अब अरुणाचल प्रदेश) के आदिवासी समाज के नागरिकों ने गणतंत्र दिवस समारोह में भाग लिया। साल 1955 में दिल्ली के लाल किले के दीवान-ए-आम में गणतंत्र दिवस पर मुशायरे की परंपरा शुरू हुई। तब मुशायरा रात दस बजे शुरू होता था।

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उसके बाद के साल में हुए 14 भाषाओं के कवि सम्मेलन का पहली बार रेडियो से प्रसारण हुआ। साल 1956 में पहली बार पांच सजे-धजे हाथी गणतंत्र दिवस परेड में सम्मिलित हुए। विमानों के शोर से हाथियों के बिदकने की आशंका को ध्यान में रखते हुए सेना की टुकड़ियों के गुजरने और लोक नर्तकों की टोली आने के बीच के समय में हाथियों को लाया गया। तब हाथियों पर शहनाई वादक बैठे थे।

साल 1958 से राजधानी की सरकारी इमारतों पर बिजली से रोशनी करने की शुरूआत हुई। साल 1959 में पहली बार गणतंत्र दिवस समारोह में दर्शकों पर वायुसेना के हेलीकॉप्टरों से फूल बरसाए गए। साल 1960 में परेड में पहली बार बहादुर बच्चों को हाथी के हौदे पर बैठाकर लाया गया जबकि बहादुर बच्चों को सम्मानित करने की शुरुआत हो चुकी थी।

उस साल, राजधानी में लगभग 20 लाख लोगों ने गणतंत्र दिवस समारोह देखा, जिसमें से पांच लाख लोग राजपथ पर ही जमा हुए थे। गणतंत्र दिवस परेड और बीटींग रिट्रीट समारोह देखने के लिए टिकटों की बिक्री साल 1962 में शुरू हुई।

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उस साल तक गणतंत्र दिवस परेड की लंबाई छह मील हो गई थी यानी जब परेड की पहली टुकड़ी लाल किला पहुंच गई तब आखिरी टुकड़ी इंडिया गेट पर ही थी।

उसी साल भारत पर चीनी हमले से अगले साल परेड का आकार छोटा कर दिया गया। साल 1973 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में पहली बार इंडिया गेट पर स्थित अमर जवान ज्योति पर सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। तब से यह परंपरा आज तक जारी है।