Success Story : गरीबी में भूखे पेट भी पड़ा सोना, मां ने फटी साड़ी में लपेटे दिखाए मेडल
HR Breaking News (ब्यूरो) : हाल में राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले भारोत्तोलक अंचिता शेयुली (Achinta Sheuli weightlifting) की मां ने उनकी ट्रॉफियां और पदकों को अपनी अधफटी साड़ी में लपटेकर दो कमरों के घर में मौजूद एकमात्र बेड के नीचे रखा हुआ है। शेयुली का घर यहां से 20 किमी दूर हावड़ा जिले(Howrah District) देयुलपुर में हैं।
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जब यह भारोत्तोलक बर्मिंघम में समाप्त हुए राष्ट्रमंडल खेलों से 73 किग्रा वजन वर्ग का स्वर्ण पदक लेकर सोमवार सुबह को घर लौटा तो उनकी मां पूर्णिमा शेयुली ने एक छोटे से स्टूल पर इन ट्राफियों और पदकों को रखा हुआ था। उनकी मां ने अपने छोटे बेटे से अचिंता के अब तक जीते गए पदक और ट्रॉफियों को रखने के लिए एक अलमारी खरीदने के लिए कहा है।
पूर्णिमा शेयुली ने पीटीआई से कहा, ‘मैं जानती थी कि जब अचिंता आएगा तो पत्रकार और फोटोग्राफर हमारे घर आ रहे होंगे। इसलिए मैंने ये पदक और ट्रॉफियां एक स्टूल पर सजा दीं ताकि वे समझ सकें कि मेरा बेटा कितना प्रतिभाशाली है। मैंने सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि वह देश के लिए स्वर्ण पदक जीतेगा।’
उन्होंने अपने पति जगत शेयुली के 2013 में निधन के बाद अपने बेटों -आलोक और अचिंता- का पालन पोषण करने के लिए कितनी ही मुश्किलों का सामना किया है। उन्होंने कहा, ‘आज, मेरा मानना कि भगवान ने हम पर अपनी कृपा करना शुरू कर दिया है। हमारे घर के बाहर जितने लोग इकट्ठा हुए हैं, उससे दिखता है कि समय बदल गया है। किसी को भी अहसास नहीं होगा कि मेरे लिए दोनों बेटों को पालना कितना मुश्किल था।’
उन्होंने कहा, ‘मैंने उन्हें रोज खाना भी मुहैया नहीं करा पाती थी। ऐसे भी दिन थे जिसमें वे बिना खाए सो गए थे। नहीं पता कि मैं खुद को बयां कैसे करूं और क्या कहूं। ’ दोनों भाईयों ने इतनी मुश्किलों के बावजूद भारोत्तोलन जारी रखा। उनकी मां ने कहा, ‘मेरे पास अपने बेटों को काम पर भेजने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। वर्ना हमारे लिये जीवित रहना ही मुश्किल हो गया होता।'
20 साल के भारोत्तोलक अचिंता ने अपनी उपलब्धि के लिये मां और कोच अस्तम दास को श्रेय दिया था। उन्होंने नयी दिल्ली से पीटीआई से कहा, ‘अच्छा काम करके घर लौटना अच्छा महसूस हो रहा है। मैंने जो भी हासिल किया है, वो मेरी मां और मेरे कोच अस्तम दास की वजह से ही है। दोनों ने मेरी जिंदगी में अहम भूमिका निभाई है और मैं आज जो कुछ भी हूं, इन दोनों की वजह से ही हूं।’
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उन्होंने कहा, ‘जिंदगी मेरे और मेरे परिवार के लिए कभी भी आसान नहीं रही। पिता के निधन के बाद हमें ‘एक जून की रोटी’ के लिये कमाई करनी पड़ी। अब हम दोनों भाईयों ने कमाना शुरू किया है, लेकिन हमारी आर्थिक समस्या को सुलझाने के लिये इतना ही काफी नहीं है। अगर सरकार हमारी समस्या देखे और हमारी मदद करे तभी इसमें सुधार हो सकता है।’
