अमिताभ बच्चन ने 23 करोड़ में बेचा दिल्ली का सोपान, पिता और माता से जुड़ी थी बहुत सी यादें

सोपान से हरिवंश राय बच्चन और तेजी बच्चन की यादें जुड़ी थी। कहा जा रहा है कि अमिताभ ने सोपान 23 करोड़ रुपये में निजोन ग्रुप के सीईओ अवनी बदेर को बेच दिया है। गत वर्ष सात दिसंबर को उन्होने इस प्रापर्टी का रजिस्ट्रेशन करवाया था।
 

सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने दक्षिणी दिल्ली के गुलमोहर पार्क स्थित अपना आवास बेच दिया है। यह आवास अमिताभ बच्चन की मां तेजी बच्चन के नाम पर था। सोपान से हरिवंश राय बच्चन और तेजी बच्चन की यादें जुड़ी थी। कहा जा रहा है कि अमिताभ ने सोपान 23 करोड़ रुपये में निजोन ग्रुप के सीईओ अवनी बदेर को बेच दिया है।

गत वर्ष सात दिसंबर को उन्होंने इस प्रापर्टी का रजिस्ट्रेशन करवाया था। आवास बिकने की खबर सामने आने के बाद गुलमोहर पार्क में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है।

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418.05 वर्ग में फैला है आवास

सोपान 418.05 वर्ग मीटर में फैला है। यह बच्चन परिवार का पहला मकान था। यह बंगला तेजी बच्चन के नाम पर पंजीकृत था। आकाशवाणी में काम करते हुए तेजी बच्चन को यहां प्लाट मिला था।

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काव्य गोष्ठी होती थी आयोजित

1970 के आसपास अमिताभ बच्चन बालीवुड में सक्रिय थे। हरिवंश राय बच्चन और तेजी बच्चन के साथ वो यहीं रहते थे। कहा जाता है कि उन दिनों सोपान में काव्य गोष्ठी खूब आयोजित होती थी। हरिवंश बच्चन खुद कविता पाठ करते थे। उन दिनों की मेहमाननवाजी के कई किस्से आज भी गुलमोहर पार्क में सुने-सुनाए जाते हैं।

बताया जाता है कि दिवाली समेत अन्य त्योहार अमिताभ बच्चन यहीं मनाते थे। खूब धूमधाम से त्योहार मनाए जाते थे।


अमिताभ बच्चन की डान फिल्म सन 1978 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म ने अमिताभ को सुपरस्टार बना दिया। फिल्म के सफल होने के बाद अमिताभ, अपने मां-पिता को मुंबई लेकर गए। इसके बाद उनका यहां आना बहुत कम हो गया। कभी लंबे समय के लिए अमिताभ यहां नहीं रहे।

आत्मकथा का आखिरी अध्याय यहीं लिखा था

हरिवंश राय बच्चन ने अपनी आत्मकथा का आखिरी चैप्टर इसी सोपान में रहते हुए लिखा था। खुद अमिताभ बच्चन ने इसकी जानकारी साझा की थी। 2016 में सुजीत सरकार की फिल्म पिंक की शूटिंग के सिलसिले में अमिताभ बच्चन दिल्ली आए थे।

उस समय अमिताभ यहीं सोपान में रहते थे। उन्होने एक फोटो ट्वीट की थी, जिसमें लिखा कि पिता जी की कुर्सी पर बैठा हूं। चारो तरफ उनकी किताबें रखी हुई हैं। यहीं पिता ने अपनी आत्मकथा का आखिरी चैप्टर और कई अन्य कविताएं लिखी थी।