Chanakya Niti : औरत या पैसा इन दोनों में से किसे चुने ? जानिए महात्मा चाणक्य से
चाणक्य ने हम इंसानों को जीवन का ज्ञान देने के लिए जो बाते बताई है उन्हें समझ लेना हमारे लिए बहुत ज़रूरी है क्योंकि यही बातें हमे एक अच्छा जीवन व्यतीत करने में मदद करती है। अक्सर हम औरत या पैसे में से किसी एक को चुनने में मजबूर हो जाते हैं तो ऐसे में चाणक्य हमारा मार्ग दर्शन करते हैं। जाने है उनके इस बारे में क्या विचार हैं
HR Breaking News, New Delhi : प्रथम अध्याय के चतुर्थ श्लोक में चाणक्य ने लिखा है कि मूर्ख शिष्य को उपदेश देने दुष्ट व्यभिचारिणी स्त्री का पालन-पोषण करने, धन नष्ट होने तथा दुखी व्यक्ति के साथ व्यवहार रखने से बुद्धिमान व्यक्ति को भी कष्ट उठाना पड़ता है।
दुखी व्यक्तियों से व्यवहार रखने से चाणक्य का तात्पर्य हैं कि जो व्यक्ति अनेक रोगों से पीड़ित हैं और जिनका धन नष्ट हो चुका है, ऐसे व्यक्तियों से किसी प्रकार का संबंध रखना बुद्धिमान मनुष्य के लिए हानिकारक हो सकता है। इसी प्रकार दुष्ट और कुलटा स्त्री (अनेक पुरूषों से संबंध रखनेवाली स्त्री) का पालन-पोषण करने से सज्जन और बुद्धिमान व्यक्तियों को दुख ही प्राप्त होता है ।
दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः।
ससर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः ।।
प्रथम अध्याय के पंचम श्लोक में चाणक्य ने लिखा है कि बोलने वाली, दुराचारिणी स्त्री और धूर्त, दुष्ट स्वभाव नौकर और ऐसे घर में निवास जहां सांप के होने की दुष्ट स्वभाव वाली, कठोर वचन वाला मित्र, सामने बोलने वाला मुंहफट संभावना हो, ये सब बातें मृत्यु के समान हैं।
जिस घर में दुष्ट स्त्रियां होती हैं, वहां गृहस्वामी की स्थिति किसी मृतक के समान ही होती है, क्योंकि उसका कोई वश नहीं चलता और भीतर ही भीतर कुढ़ते हुए वह मृत्यु की ओर सरकता रहता है।
इसी प्रकार दुष्ट स्वभाव वाला मित्र भी विश्वास के योग्य नहीं होता, न जाने कब धोखा दे दें। जो नौकर अथवा आपके अधीन काम करने वाला कर्मचारी उलटकर आपके सामने जवाब देता है, वह कभी भी आपको असहनीय हानि पहुंचा सकता है। ऐसे सेवक के साथ रहना अविश्वास के घूंट पीने के समान है। इसी प्रकार जहां सांपों का वास हो, वहां रहना भी खतरनाक है। न जाने कब सर्पदंश का शिकार होना पड़ जाए।
इसी अध्याय में चाणक्य ने लिखा है कि किसी कष्ट अथवा आपत्तिकाल से बचाव के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए, जरूरत पड़े तो धन खर्च करके भी स्त्रियों की रक्षा करनी चाहिए। परंतु स्त्री और धन से भी आवश्यक है कि व्यक्ति स्वयं की रक्षा करें।