मंदिर में शादी करने के बाद बनाये संबंध, फिर लड़की ने कर दिया केस , कोर्ट ने दिया ये फैसला
High court decision : हाल ही में कोर्ट ने एक अनोखे केस पर फैसला सुनाया है ,लड़का लड़की ने पहले मंदिर में शादी की और फिर दोनों ने संबंध बनाये, लडकी ने बाद में लड़के के ऊपर केस कर दिया | आइये विस्तार से जानते हैं पूरा मामला
HR Breaking News, New Delhi : मंदिर में शादी हुई. सात फेरे लिए गए. इसके बाद महिला ने अपने पति पर धोखा देकर शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगा दिया. दिल्ली की एक अदालत ने एक व्यक्ति को बलात्कार के आरोप से इस आधार पर बरी कर दिया कि पीड़िता कानूनी रूप से वैध विवाह के जरिए आरोपी की पत्नी बनी है. अदालत ने इस बात को भी रेखांकित किया कि ‘सात फेरे’ पूरे होने पर ‘‘विवाह कानूनी तौर पर पूरी तरह से वैध’’ होता है. हिंदू विवाह समारोहों का वर्णन करने वाली हिंदू विवाह अधिनियम, 1956 की धारा सात में कहा गया है कि दूल्हा और दुल्हन के पवित्र अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेने पर विवाह संपन्न और बाध्यकारी हो जाता है.
High Court ने बताया, अगर पति किसी दूसरी महिला के साथ रहता है तो ये गलत नहीं है
भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) 493 (किसी व्यक्ति द्वारा वैध विवाह का विश्वास दिलाकर धोखे से सहवास करना), 420 (धोखाधड़ी) और 380 (चोरी) के तहत आरोपी के खिलाफ दर्ज मामले की सुनवाई कर रहे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जगमोहन सिंह की अदालत ने हालिया आदेश में कहा, ‘‘मौजूदा मामले में बलात्कार का अपराध नहीं बनता है क्योंकि आरोपी और पीड़िता कानूनी रूप से विवाहित हैं.’’ उसने कहा कि पीड़िता ने बयान दिया है कि 21 जुलाई 2014 को एक मंदिर में एक पुजारी की मौजूदगी में आरोपी के साथ अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेने के बाद उसका विवाह संपन्न हुआ था.
अदालत ने कहा, ‘‘चूंकि पीड़िता और आरोपी दोनों हिंदू धर्म से संबंध रखते हैं और चूंकि उन्होंने अपनी शादी के समय सप्तपदी रस्म की थी, इसलिए जैसे ही पवित्र अग्नि के चारों ओर सातवां फेरा लिया गया, उनके बीच कानूनी रूप से वैध विवाह संपन्न हो गया.’’ पीड़िता ने कहा था कि उन्हें शादी के बाद विवाह प्रमाण पत्र नहीं दिया गया क्योंकि आरोपी अपना पहचान प्रमाण नहीं दे सका. इस पर अदालत ने कहा कि उसकी यह ‘‘धारणा गलत’’ है कि जब तक मंदिर प्राधिकारियों द्वारा प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जाता तब तक विवाह अमान्य रहता है.
High Court ने बताया, अगर पति किसी दूसरी महिला के साथ रहता है तो ये गलत नहीं है
अदालत ने कहा, ‘‘इस मामले में, चूंकि सप्तपदी रस्म पूरी हुई थी , इसलिए मंदिर प्राधिकारियों द्वारा तथाकथित विवाह पंजीकरण प्रमाण पत्र जारी न करने का कोई कानूनी प्रभाव नहीं है.’’ उसने कहा, ‘‘इसलिए आरेापी के खिलाफ धारा 493 के तहत आरोप नहीं बनता.’’ अदालत ने अभियोजन पक्ष के बयानों के अस्पष्ट होने और उनकी पुष्टि करने वाले सबूतों का अभाव होने के मद्देनजर आरोपी को धोखाधड़ी और चोरी के आरोपों से भी बरी कर दिया. दक्षिण रोहिणी पुलिस थाने में 2015 में आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी और जुलाई 2016 में उसके खिलाफ आरोप तय किए गए थे.
High Court ने बताया, अगर पति किसी दूसरी महिला के साथ रहता है तो ये गलत नहीं है