High Court का बड़ा फैसला, इस पैतृक संपत्ति पर बेटियां नहीं कर सकतीं दावा

High Court :संपत्ति पर हर दिन कोर्ट में नए मामले सामने आते हैं। बात करें पैतृक संपत्ति की तो पैतृक संपत्ति पर अधिकार जन्म से ही मिल जाता है और इस संपत्ति पर बेटे-बेटी को समान अधिकार मिल जाता है, लेकिन अब हाल ही में कोर्ट (High Court Orders) में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसके अनुसार कुछ पैतृक संपत्ति पर पर बेटियों को दावा करने का अधिकार नहीं है। आइए खबर में जानते है इस पूरे मामले के बारे में।

 

HR Breaking News (High Court) पैतृक संपत्ति पर बेटे की तरह ही बेटियां भी पिता की संपत्ति में अपना हक मांगती हैं। अब हाल ही में पैतृक संपत्ति पर आए मामले पर हाईकोर्ट ने सब क्लियर कर दिया है। कोर्ट ने यह क्लियर किया है कि बेटी पिता की किस पैतृक संपत्ति पर दावा नहीं कर सकती है। आइए खबर के माध्यम से जानते हैं कि हाईकोर्ट (High Court news) के फैसले के मुताबिक बेटियां किस पैतृक संपत्ति पर क्यों दावा नहीं कर सकती है।

 

 

बेटियों के अधिकार को किया स्पष्ट


अब हाल ही में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट (Chhattisgarh High Court) में एक ऐसा मामला सामने आया था, जिसके तहत पैतृक संपत्ति में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बेटियों के अधिकार को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला दिया है। कोर्ट की बेंच का कहना है कि अगर बेटी के पिता की मौत 17 जून 1956 से पहले हो गई है, तो पिता की संपत्ति पर बेटी (daughters inheritance rights) दावा नहीं कर सकती है। कोर्ट ने क्लियर किया है कि ऐसे में यानी हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम,1956 लागू होने की तिथि से पहले पिता की मृत्यु हुई हो तो बेटी अपने पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सा या दावा नहीं कर सकती है।

ऐसे मामलो पर लागू होता है हिंदू मिताक्षरा कानून 


छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में यह ऐतिहासिक फैसला न्यायमूर्ति की एकल पीठ की ओर से सुनाया है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की ओर से लिया गया यह फैसला निचली अदालतों के फैसले को बरकरार रखा गया है। हाई कोर्ट का कहना है कि 1956 से पहले हुए उत्तराधिकार के मामलों पर गौर करें तो उसमे हिंदू मिताक्षरा कानून (Mitakshara law) लागू होता है।


इस फैसले के मुताबिक अगर किसी हिंदू पुरुष की मृत्यु 1956 से पहले हुई थी, तो उसकी संपत्ति पूरी तरह से उसके बेटे को ट्रांस्फर कर दी जाती थी, फिर चाहे वो संपत्ति पैतृक संपत्ति (ancestral property rights) हो या स्व-अर्जित संपत्ति हो। मिताक्षरा कानून के तहत जब पिता का कोई पुरुष वारिस यानी बेटा जीवित न हो तो ऐसे में बेटी सिर्फ तभी संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकती थी।

इस केस का मिला रेफरेंस


कोर्ट का कहना है कि उनकी ओर से लिया गया ये फैसला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के अरुणाचला गौंडर बनाम पोन्नुसामी सहित अन्य फैसलों पर आधारित बताया है, उनका कहना है कि उन्होंने इस कानूनी स्थिति को एक बार फिर रिपिट किया है। बता दें कि बिलासपुर हाई कोर्ट का यह फैसला पैतृक संपत्ति और 1956 से पहले हुई मृत्यु के रिफरेंस में है।

दो तरह की होती है संपत्ति


संपत्ति दो तरह की होती है, जिसमे से एक स्व-अर्जित संपत्ति (self-acquired property) और दूसरी पैतृक संपत्ति होती है। स्व-अर्जित संपत्ति की बात करें तो इस मामले में पिता वसीयत के जरिए किसी को भी संपत्ति (CG News) दे सकते हैं। 2005 के नियमों के संशोधन के बाद बेटियां भी पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर हक रखती हैं, लेकिन बता दें कि नियमों के मुताबिक यह संशोधन 1956 के बाद हुए उत्तराधिकार पर लागू किया जाता है।