Delhi High court judgement : मकान मालिकों के हक में दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया अहम फैसला, किराएदारों को तगड़ा झटका
Delhi High Court : किरायेदार और मकान मालिक के बीच वाद विवाद के मामले आए दिन ही सुनने को मिल जाते हैं। हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने मकान मालिक के अधिकारों (landlord rights) की रक्षा करते हुए अहम फैसला सुनाया है, कोर्ट के इस महत्वूपर्ण फैसले के बाद किरादार अपनी मनमर्जी नहीं चला पाएंगे। चलिए विस्तार से जानते हैं -
HR Breaking News - (Delhi High court judgement) मकान मालिक और किरादार के बीच नौक-झौंक के मामले आए दिन सामने आते हैं। कई बार किरायेदार मकान पर कब्जा जमा लेते हैं। तो वहीं, मकान मालिक द्वारा भी किरायेदार के साथ मनमर्जी करने के भी मामले सामनते आते हैं। इसके अलावा, न जाने कोर्ट में कितने ही मामले पेंडिंग है। हाल ही में मकान मालिक और किराएदार का एक नया मामला सामने आया है, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए अहम फैसला सुनाया है।
दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने सुनवाई करते हुए कहा है कि दिल्ली किराया नियंत्रण (डीआरसी) अधिनियम, 1958 एक पुराने कानून का दुरुपयोग किया गया है। इस अधिनियम के तहत रेंट देने में संपन्न किरायेदार ने किराया देकर गलत तरीके से मकान पर कब्जा कर लिया। वहीं, मकान मालिकों (Landlords Rights) को निर्धन व निराशाजनक परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर किया जाता है। कोर्ट का कहना है कि यह पूरी तरह से अनुचित है। मकान मालिक को उसका हक मिलना चाहिए।
हाईकोर्ट (High Court Decision) ने अतिरिक्त किराया नियंत्रक (एआरसी) के 2013 के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार कर रहा था। इसमें सदर बाजार में एक संपत्ति के ब्रिटेन व दुबई में रहने वाले मालिकों की बेदखली याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था और किरायेदारों के पक्ष में फैसला सुनाया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से की मांग -
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से परिसर को खाली कराने की मांग की थी। उनका कहना था कि वे लंदन में दो रेस्तरां चलाते हैं। अब वह भारत में अपना बिजनेस बढ़ाना चाहते हैं इसके लिए उन्हें परिसर की जरूरत है। अतिरिक्त किराया नियंत्रक (ARC) ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ फैसला सुनाते हुए दर्ज किया था कि वे लंदन और दुबई में रहते हैं और अपना बिजनेस चलाते हैं।
उन्हें अपना जीवन यापन करने के लिए इस परिसर की ज्यादा जरूरत नहीं है, इसलिए उनकी वास्तविक आवश्यकता नहीं है। अतिरिक्त किराया नियंत्रक (ARC) ने सफाई देते हुए कहा था कि सिट-इन रेस्तरां (sit-in restaurant) चलाने के लिए वह परिसर काफी छोटा था।
कोर्ट ने मकान मालिक के हक में सुनाया फैसला -
जस्टिस अनूप भंभानी की बेंच (High Court Decision) ने एआरसी के आदेशों को रद्द करते हुए कहा कि मकान मालिक की आर्थिक स्थिति और किरायेदार की आर्थिक अस्वस्थता, डीआरसी अधिनियम (DRC Act) की धारा 14(1)(ई) के तहत बेदखली याचिका पर फैसला करते समय प्रासंगिक विचार नहीं हैं।
कोर्ट ने कहा कि अतिरिक्त किराया नियंत्रक (ARC) का यह विचार याचिकाकर्ताओं की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सही नहीं है। याचिकाकर्ता की अगर आर्थिक स्थिति सही है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उनकी संपत्ति को किराएदार को दे दी जाएग। यह तो पूरी तरह से अवैध है। मकान मालिक (Landlord rights) को उसका हक मिलना चाहिए। फिर चाहे वह विदेश में रहता है या कहीं भी। कोर्ट ने कहा कि इस परिसर के किराए के रूप में मकान मालिकों को सिर्फ 40 रुपये प्रति महीना मिल रहा था।