Marriage Act, 1955 : पति द्वारा बिना किसी कारण छोड़ी पत्नी के लिए, ये है कानून
कई बार पति बिना किसी कारण भी अपनी पत्नी को दर दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ देता है तो ऐसे में पत्नी क्या करे, उसके लिए हमारे संविधान में ये कानून है। आइये जानते हैं
HR Breaking News, New Delhi : भारत में विवाह एक पवित्र संस्था है। हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act, 1955) के अंतर्गत विवाह को एक संस्कार के रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्राचीन काल से ही विवाह को एक संस्कार माना जाता रहा है। वर्तमान परिस्थितियों में विवाह के स्वरूप में परिवर्तन आए हैं। समाज के परिवेश में भी परिवर्तन आए हैं।
एक परिस्थिति ऐसी होती हैं जब किसी पति द्वारा पत्नी को बगैर किसी कारण के घर से निकाल दिया जाता है या छोड़ दिया जाता है। ऐसी स्थिति में यदि महिला कामकाजी नहीं है तो उसके सामने आर्थिक संकट भी खड़ा हो जाता है।
यह हालात अत्यंत संकटकारी है। इस स्थिति में महिला सर्वप्रथम अपने कानूनी अधिकारों को तलाशती है।
इस आलेख में वे कानूनी अधिकार उल्लेखित किए जा रहे हैं जो बगैर किसी वजह के पति द्वारा पत्नी को छोड़े जाने पर पत्नी को प्राप्त होते हैं।
भारतीय कानून ने महिलाओं को अनेक अधिकार दिए हैं। उन अधिकारों में कुछ अधिकार ऐसे हैं जो एक पत्नी को प्राप्त होते हैं। पत्नी को बिना किसी कारण के छोड़े जाने पर अपने पति के विरुद्ध निम्न अधिकार प्राप्त है:-
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भारतीय दंड संहिता IPC धारा 498 (ए):-
भारतीय दंड संहिता की धारा 498 (ए) पति और उसके नातेदारों द्वारा की जाने वाली क्रूरता के विरुद्ध एक पत्नी को अधिकार देती है। यह एक संज्ञेय धारा है जिस पर संबंधित पुलिस थाने से एफआईआर की जा सकती है। इस धारा के अंतर्गत 7 वर्ष तक के कारावास के दंड का प्रावधान सहिंता में किया गया है।
अगर किसी महिला के साथ किसी भी प्रकार की फिजिकल या मेंटल क्रूरता की गई है, उसे टॉर्चर किया गया है जैसे कि उसे गालियां दी गई हैं, मारा पीटा गया है, दहेज के लिए ताने दिए गए हैं, रसोई घर में खाने को लेकर ताने दिए गए हैं, गहनों के लिए ताने दिए गए हैं, उसके माता-पिता के बारे में गंदी और बुरी बातें कहीं गई है, यह सभी क्रूरता की श्रेणी में आता है।
किसी महिला के साथ यह सब कुछ हुआ है उसके पति ने उसे मारपीट कर घर से निकाल दिया है और दोबारा लेने नहीं आया ऐसी स्थिति में वह महिला पुलिस थाने जाकर इसकी शिकायत कर सकती है। दंड प्रक्रिया सहिंता, 1973 (CRPC) की धारा 154 के अंतर्गत एफआईआर (FIR) करवाई जा सकती है।
इसके लिए आवश्यक नहीं है कि महिला का पति जिस थाना क्षेत्र में रहता है वहीं रिपोर्ट की जाए बल्कि कोई भी ऐसी पीड़ित महिला अपने पिता के घर जाकर उस थाना क्षेत्र के अंतर्गत अपने पति की रिपोर्ट दर्ज करवा सकती है या अपने जिले के महिला थाने पर जाकर धारा 498(ए) के अंतर्गत मामला दर्ज़ करवा सकती है।
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हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 धारा 9:-
हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा-9 किसी घर से निकाली गई महिला को यह अधिकार देती है कि वह एक अर्जी अदालत में लगाकर अपने पति के घर वापस भेजे जाने का निवेदन कर सकती है।
अगर किसी महिला को बगैर किसी वजह के उसके पति द्वारा घर से निकाल दिया गया है या उसे छोड़ दिया गया है ऐसी स्थिति में महिला का यह अधिकार बन जाता है कि वह पति के घर यदि वापस जाना चाहती है तो न्यायालय को इस मामले से अवगत कराकर हिंदू विवाह अधिनियम,1955 की धारा-9 के अंतर्गत आवेदन देकर अपने पति के घर वापस जा सकती है।
न्यायालय ऐसी महिला के पति को यह आदेश करता है कि वह अपनी पत्नी को वापस अपने घर लेकर जाएं और एक पत्नी के रूप में वह उसे अपने साथ रखे और अपने दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना करे।
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इस अधिनियम में धारा 9 के होने के कारण अनेक टूटते हुए संबंधों को बचाया गया है। विवाह को बिगड़ने के पहले ही बचाया जाए इसके लिए हिन्दू विवाह अधिनियम में व्यवस्था की गई है।
कोई भी पीड़ित पत्नी यह आवेदन उस न्यायालय में लगा सकती है जहां वह निवास करती है। अगर वह अपने माता पिता के घर रह रही है तो वहां से भी यह आवेदन लगाया जा सकता है। जैसे अगर कोई महिला के माता पिता लखनऊ में रहते हैं और पति का घर चेन्नई में है ऐसी स्थिति में महिला लखनऊ जहां उसके माता-पिता के साथ निवास कर रही वहां की कुटुंब न्यायालय या जिला न्यायालय में यह वाद संस्थित कर सकती है।
घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005:-
विवाहित स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा के लिए यह अधिनियम भारत में मील का पत्थर साबित हुआ है। इस अधिनियम ने बहुत से लाभ विवाहित स्त्रियों के लिए किए हैं। विवाहित महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने में इस अधिनियम का महत्वपूर्ण स्थान है।
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घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के अंतर्गत कोई भी ऐसी महिला जिसे उसके पति द्वारा घर से निकाल दिया गया है वह घर में पुनः प्रवेश पाने की अर्जी लगा सकती है और साथ ही यदि अगर ऐसी महिला को दिए गए स्त्रीधन पर उसके पति ने कब्जा कर लिया है तब वह महिला आवेदन में अपने स्त्री धन को वापस पाने की गुहार भी लगा सकती है और यही नहीं बल्कि इस धारा के तहत वह भरण पोषण (Maintainance) भी हासिल कर सकती है। किसी भी महिला के पास यह अधिकार है कि अगर वह अपने पति से अलग रह रही है या उसका पति उसे साथ नहीं रखता है , बिना किसी कारण के उसके पति ने उसे छोड़ दिया है ऐसी स्थिति में पत्नी पति से भरण पोषण ले सकती है।
दंड प्रक्रिया सहिंता, 1973 धारा-125:-
बगैर किसी कारण के घर से निकाली गई महिला के पास में यह चौथा सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है जिसमें ऐसी महिला अगर पति से अलग रह रही है तथा पति ने ही उसे अलग किया है तब न्यायालय में आवेदन देकर दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 125 के तहत पति से भरण-पोषण मांग सकती है।
घरेलू हिंसा अधिनियम और भरण पोषण के लिए दंड प्रक्रिया सहिंता की धारा 125 का आवेदन महिला उस न्यायालय में लगा सकती है जहां वह निवास कर रही है। साधारणतः महिलाएं पति के घर से निकाले जाने पर अपने माता पिता के साथ ही निवास करती हैं इसलिए यह कहा जा सकता है कि ऐसी महिलाएं अपने माता पिता के निवास स्थान के क्षेत्र की अदालत में मेंटेनेंस के लिए आवेदन लगा सकती है।
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जिस दिनांक से ऐसा आवेदन लगाया जाता है न्यायालय महिला को उस दिनांक से भरण पोषण दिए जाने का आदेश करती है। जैसे किसी महिला ने अगर दिनांक 1 जनवरी 2021 को ऐसा कोई आवेदन लगाया है और मेंटेनेंस दिए जाने का आदेश 1 दिसंबर 2021 को दिया गया है तब उस आदेश के दिए जाते समय पति को पूरे 1 वर्ष का भरण पोषण देना होगा।
न्यायालय साधारणतः ₹3000 से ₹5000 तक प्रतिमाह के आदेश तो करती ही है पर इसके साथ महिला के स्टेटस को भी देखा जाता है। उसकी जीवन शैली को भी देखा जाता है और उसके साथ उसके पति की आय को भी देखा जाता है। इन सभी चीजों के अवलोकन के बाद अदालत भरण पोषण का आदेश कर देती है।
इस अधिनियम का मकसद महिलाओं को आर्थिक मोर्चे पर मजबूत करना है इससे पति द्वारा छोड़ी गई महिलाओं के आर्थिक पक्ष को मजबूत किया जाता है और उन्हें इतना रुपया दिलाया जाता है जिससे वह अपना जीविकोपार्जन कर सकें। अगर पति द्वारा भरण पोषण के रुपए नहीं दिए जाते हैं तब महिला उस पर वसूली का वाद संस्थित कर सकती है एवं न्यायालय गिरफ्तारी वारंट के जरिए पति को न्यायालय में उपस्थित कर पत्नी को रुपए दिलवाता है।
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यह सभी अधिकार एक भारतीय स्त्री को प्राप्त है। इसमें केवल हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 हिंदू महिलाओं के मामले में ही लागू होती है। शेष सभी कानून भारत के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते है। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के समान ही अन्य व्यवस्था ईसाई और मुस्लिम समुदाय में भी उपलब्ध है वे महिलाएं भी उसका लाभ ले सकती हैं।