OPS vs NPS : केंद्रीय कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना को लेकर बड़ा अपडेट

OPS vs NPS : केंद्रीय कर्मचारियों के लिए एक बड़ा अपडेट सामने आया है। दरअसल, सरकारी कर्मचारी लंबे समय से पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने की मांग कर रहे हैं। एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार आपको बता दें कि केंद्रीय कर्मचारी संगठनों का कहना है कि 85 लाख केंद्रीय एवं राज्य सरकारों के कर्मियों का आंदोलन जारी रहेगा।
 

HR Breaking News, Digital Desk- लोकसभा चुनाव में 'पुरानी पेंशन बहाली' को लेकर एक बार फिर से कर्मचारी संगठन एक्टिव मोड में आ गए हैं। केंद्रीय कर्मचारी संगठनों का कहना है कि 85 लाख केंद्रीय एवं राज्य सरकारों के कर्मियों का आंदोलन जारी रहेगा। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (National Movement for Old Pension Scheme) के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु का कहना है, सरकार को NPS खत्म करना ही होगा।

 

 

कांग्रेस पार्टी द्वारा अपने चुनावी घोषणा पत्र में 'पुरानी पेंशन बहाली' के मुद्दे को शामिल नहीं किया गया है, ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। पार्टी ने एनएमओपीएस (NMOPS) को आश्वासन दिया था कि ओपीएस को घोषणा पत्र में जगह मिलेगी। अब इस संघर्ष को और ज्यादा तेजी से आगे बढ़ाया जाएगा। लंबे समय से गारंटीकृत पेंशन सिस्टम के लिए आंदोलन कर रहे नेशनल मिशन फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (Old Pension Scheme) भारत के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मंजीत सिंह पटेल ने कहा, नाम कुछ भी रखो, कर्मियों को गारंटीकृत पेंशन सिस्टम चाहिए। एनपीएस को ओपीएस में बदला जा सकता है। केंद्र सरकार, NPS को स्क्रैप करे तो ठीक, नहीं तो ओपीएस में बदल दे।

गत वर्ष दिल्ली के रामलीला मैदान में ओपीएस को लेकर बड़ी रैली करने वाले विजय कुमार बंधु कहते हैं, खुद अनेक कांग्रेसी नेताओं को यह भरोसा नहीं था कि पार्टी के घोषणा पत्र में ओपीएस को जगह नहीं मिलेगी। अधिकांश नेता यह मानकर चल रहे थे कि कांग्रेस पार्टी, पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा घोषणा पत्र में शामिल करेगी।

कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व तक यह बात पहुंचाई गई है कि OPS को घोषणा पत्र में शामिल न करना, इसका पार्टी को बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। बंधु ने ओपीएस के लिए आंदोलन करने वाले सभी कर्मियों से कहा है कि वे निराश न हों। कई कर्मचारी सोच रहे हैं कि अब आंदोलन की दिशा क्या होगी। ऐसे सभी सवालों का एक ही जवाब है कि आंदोलन जारी रहेगा। इस राह में कितने अवरोध आएंगे, कर्मियों को विचलित नहीं होना है। ओपीएस बहाली, कर्मियों का संकल्प है।

कर्मियों को OPS चाहिए-
जो भी राजनीतिक दल, कर्मियों की इस मांग का विरोध करेगा, हम उसके विरोध में खड़े होंगे। कुछ दलों को राजनीतिक नुकसान झेलना होगा। सभी कर्मी अपने संपर्कों के माध्यम से शीर्ष नेतृत्व तक अपनी बात पहुंचाएं। विजय बंधु ने 'एक्स' पर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के अलावा कांग्रेस पार्टी का ईमेल एड्रेस भी जारी किया है। बंधु ने कहा, देश के विभिन्न हिस्सों में ओपीएस का संघर्ष जारी रहेगा। 'नेशनल मिशन फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम भारत' के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मंजीत सिंह पटेल ने बताया, हम आंदोलन में विश्वास रखते हैं। सत्ता किसकी होगी, हमें इसकी परवाह नहीं है।

चुनाव के बाद केंद्र में जिस भी दल की सरकार बने, उससे OPS की मांग की जाएगी। OPS के मुद्दे पर आंदोलन जारी रहेगा। ओपीएस में जीपीएफ काटे जाने की व्यवस्था थी। उसमें प्रति माह बेसिक सेलरी तक जमा सकते थे। सभी कर्मियों के लिए अपने वेतन का कम से कम सात फीसदी हिस्सा जमा कराना जरूरी था। NPS में कर्मियों का जो हिस्सा कटता है, उस पर ब्याज की गारंटी नहीं है। मौजूदा समय में कर्मियों का दस फीसदी हिस्सा कटता है। जीपीएफ में सरकार का हिस्सा नहीं होता था, लेकिन एनपीएस में 14 फीसदी हिस्सा, सरकार भी जमा कराती है। ये कर्मचारी की बेसिक सेलरी और डीए के आधार पर रहता है।

हम नई सरकार के गठन का इंतजार कर रहे हैं-
केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर रिपोर्ट देने के लिए वित्त सचिव की अध्यक्षता में जो कमेटी गठित कर रखी है, उसकी बैठक में हमने दो बार हिस्सा लिया है। कमेटी के समक्ष, प्रभावी तरीके से कर्मियों की मांग रखी गई है। कांग्रेस पार्टी की तरफ से भी यही कहा गया है कि अभी कमेटी की रिपोर्ट आने का इंतजार करना चाहिए। बतौर डॉ. पटेल, कर्मियों को हर सूरत में गारंटीकृत पेंशन सिस्टम चाहिए।

अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के महासचिव सी. श्रीकुमार ने कहा, 'पुरानी पेंशन' बहाल न करना, भाजपा के लिए सियासी जोखिम का सबब बन सकता है। लोकसभा चुनाव से पहले पुरानी पेंशन लागू नहीं होती है, तो भाजपा को उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। ओपीएस पर राष्ट्रीय हड़ताल वापस ली गई है, उसे रद्द नहीं किया गया है। सरकार ने रिपोर्ट आने तक इंतजार करने के लिए कहा है। कर्मियों के पक्ष में रिपोर्ट नहीं आती है, तो संघर्ष होगा।

पीएफआरडीए का पैसा राज्यों को नहीं लौटाएगा केंद्र-
कन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एंप्लाइज एंड वर्कर्स के महासचिव एसबी यादव ने कहा, नए सिरे से आंदोलन शुरू करने पर चर्चा होगी। केंद्र की नई सरकार के समक्ष मजबूती से ओपीएस व दूसरे लंबित पड़े मुद्दे रखे जाएंगे। केंद्र सरकार में रिक्त पदों को नियमित भर्ती के जरिए भरना, निजीकरण पर रोक लगाना, आठवें वेतन आयोग का गठन करना और कोरोनाकाल में रोके गए 18 महीने के डीए का एरियर जारी करना, ये बातें भी कर्मचारियों की मुख्य मांगों में शामिल हैं। सरकारी कर्मचारियों की लंबित मांगों को लेकर चरणबद्ध तरीके से प्रदर्शन किया जाएगा।

कर्मियों की मांगों में पीएफआरडीए एक्ट में संशोधन करना या उसे पूरी तरह खत्म करना, भी शामिल है। जब तक इस एक्ट को खत्म नहीं किया जाता, तब तक ओपीएस की राह मुश्किल ही बनी रहेगी। वजह, एनपीएस के तहत कर्मियों का जो पैसा कटता है, वह पीएफआरडीए के पास जमा है। केंद्र सरकार, कह चुकी है कि वह पैसा राज्यों को नहीं लौटाया जाएगा। ऐसे में जहां भी ओपीएस लागू हो रहा है, वहां पर सरकार बदलते ही दोबारा से एनपीएस लागू हो जाए, इसे लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता।

आठवें वेतन आयोग और पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर सरकार का रूख- 

केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि वह आठवे वेतन आयोग के गठन पर फिलहाल कोई विचार नहीं कर रहा है। वित्त सचिव टीवी सोमनाथन ने कहा है कि अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले केंद्र सरकार के करीब 54 लाख कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए आठवें वेतन आयोग (8th Pay Commission) के गठन की सरकार की कोई योजना नहीं है। उन्होंने कहा, "आठवें वेतन आयोग के गठन पर कोई चर्चा नहीं हो रही है।

सोमनाथन ने गुरुवार को कहा यह वर्तमान में देय नहीं है।" पूर्व में चुनावों से पहले, सरकारों ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों, सशस्त्र बलों के कर्मियों और पारिवारिक पेंशनभोगियों को लुभाने के लिए एक प्रभावी उपकरण के रूप में वेतन आयोग की स्थापना या कार्यान्वयन का उपयोग किया है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने सितंबर 2013 में राज्य और आम चुनावों से कुछ महीने पहले सातवें वेतन आयोग का गठन किया था।

नई पेंशन योजना की समीक्षा पर किया जा रहा ध्यान केंद्रित

हालांकि, भाजपा ने इस तरह के कदम से किनारा कर लिया है, इसके बजाय नई पेंशन योजना की समीक्षा पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है जो नए राज्य और केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए विवाद का मसला है।

मौजूदा योजना के तहत कर्मचारी अपने मूल वेतन का 10 प्रतिशत योगदान करते हैं, जबकि सरकार 14 प्रतिशत का भुगतान करती है। यह राजनीतिक रूप से विवादास्पद हो गया है, क्योंकि कई विपक्षी शासित राज्यों ने पुरानी पेंशन योजना का रुख कर लिया है। जो पेंशनभोगियों को बिना किसी कर्मचारी योगदान के उनके अंतिम आहरित वेतन का 50 प्रतिशत पेंशन की मासिक गारंटी देता है। सरकार ने व्यवस्था की समीक्षा के लिए वित्त सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया।

सोमनाथन बोले- नई पेंशन योजना पर संबंधित पक्षों से किया गया विचार-विमर्श


सोमनाथन ने कहा, "हमने सभी संबंधित पक्षों के साथ विचार-विमर्श पूरा कर लिया है और हमारी रिपोर्ट जल्द सौंपी जाएगी।" सरकार नई पेंशन व्यवस्था में यह सुनिश्चित करने के लिए बदलाव ला सकती है कि कर्मचारियों को उनके अंतिम वेतन का कम से कम 40 से 45 प्रतिशत पेंशन मिले।"

चुनाव नजदीक आने के साथ ही वित्त मंत्रालय पर 8वें वेतन आयोग की घोषणा करने और उसे अधिसूचित करने का राजनीतिक दबाव बढ़ रहा है, भले ही पांच राज्यों के चुनावों के नतीजे कुछ भी हों। रविवार को घोषित होने वाले राज्य चुनाव परिणामों को व्यापक रूप से 2024 के आम चुनाव से पहले सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए मैदान में होंगे।